आगरा: डॉक्टर भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की जांच टीम ने 2005 बीएड फर्जी डिग्री मामले में 814 प्रत्यावेदनों की जांच के बाद 812 फर्जी मामलों को पकड़ा है.
एसआईटी ने की जांच
बीएड सत्र 2005 में 84 कॉलेज शामिल हुए थे. 2006 में विश्वविद्यालय ने परीक्षा परिणाम जारी किया था. 2013 में एक छात्र की शिकायत पर एसआईटी ने फर्जीवाड़े की जांच शुरू की. 2017 में एसआईटी ने विवि को फर्जी रोल नंबर की सूची सौंपी. 2019 में विश्वविद्यालय के कार्य परिषद ने डिग्रियों को निरस्त करने का फैसला लिया.
एसआईटी की सूची में 4766 रोल नंबर संदेह के घेरे में थे. जिसके बाद 2020 में कार्य परिषद ने एसआईटी की जांच पर माना कि 3637 रोल नंबर फर्जी हो सकते हैं. जबकि 1084 रोल नंबर टैंपर्ड के दायरे में और 45 रोल नंबर डुप्लीकेट के दायरे में थे. फेक सूची में शामिल 814 विद्यार्थियों ने प्रत्यावेदन जमा किया था. 487 प्रति उत्तर मिले टैंपर्ड सूची में शामिल रोल नंबर पर और छह प्रति उत्तर मिले थे.
हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय को दिया था 3 महीने का समय
डुप्लीकेट सूची में शामिल रोल नंबर की जांच के लिए उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय को तीन महीने का समय दिया था. इसमें विश्वविद्यालय को अपने स्तर से जांच कर प्रत्यावेदन के लिए आई डिग्रियों की जांच करनी थी. पिछले एक महीने से जांच कमेटी जांच रिपोर्ट तैयार कर रही थी. 29 जुलाई को कार्य परिषद में रिपोर्ट देने के बाद उच्च न्यायालय में भी भेज दी गई हैं. इसमें 814 में से 812 डिग्रियों को फर्जी माना गया है.
एक रोल नंबर पर जमा हुई कई एप्लीकेशन
जांच कमेटी के सामने परत दर परत फर्जीवाड़ा खुला है. सूत्र बताते हैं कि नकली अंकतालिका से लेकर नकली ब्रोशर तक तैयार कर प्रत्यावेदन में जमा कराया गया था. यही नहीं, जिन कॉलेजों को 2006-07 में मान्यता मिली है, उनके एडमिट कार्ड, रोल नंबर और कॉलेज प्रतिनिधि के हस्ताक्षर किए कागजात जमा किए थे. सरकारी कॉलेज में मैनेजमेंट कोटा दिखाकर रोल नंबर जनरेट कर दिया. दर्जनों केस में फर्जी फीस रसीद, अलॉटमेंट लेटर, प्राचार्य के फर्जी हस्ताक्षर और नकली मोहर लगा कर प्रत्यावेदन दिए गए. एक-एक रोल नंबर पर चार-चार एप्लीकेशन जमा की गई.
जांच के दौरान कमेटी ने हर तह में जाकर छानबीन की और अपनी रिपोर्ट तैयार की. कॉलेजों की मान्यता से लेकर नकली ब्रोशर और अंकतालिकाओं से लेकर नकली मोहर तक की बारीकी से जांच की गई. कई-कई बार लिस्ट खंगाली गई. कॉलेजों की लिस्ट, विश्वविद्यालय की लिस्ट और मैनेजमेंट कोटा की लिस्ट को भी खंगाला गया. इसके बाद रिपोर्ट तैयार की गई. जिसे हाईकोर्ट को भेजा गया है.