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आखिर महिलाओं को टिकट देने में क्यों कतराते हैं राजनीतिक दल

सभी राजनैतिक दल महिलाओं को टिकट देने के नाम पर पीछे हटते दिखाई देते हैं. बामुश्किल ही महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया जाता है. यह हालत तब है, जबकि हर बार महिला आरक्षण को लेकर मुद्दा बनाया जाता है और महिलाओं को बराबर भागीदारी देने की बात कही जाती है.

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Published : May 11, 2019, 10:35 AM IST

Updated : May 11, 2019, 11:02 AM IST

महिलाओं को टिकट देने में क्यों कतराते हैं राजनीतिक दल ?

चन्दौली: यूं तो महिलाओं के सम्मान में सभी राजनीतिक दल बराबर की भागीदारी का नारा बुलंद करते हैं, लेकिन यही राजनीतिक दल आधी आबादी यानी महिलाओं को टिकट देने में उनको दरकिनार करती दिखाई देती है. चंदौली का हाल भी इससे अलग नहीं है. इस जिले से एक मात्र महिला सांसद के रूप में चंद्रा त्रिपाठी चुनी गई हैं, जो कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कमलापति त्रिपाठी की बहु हैं.

महिलाओं को टिकट देने में क्यों कतराते हैं राजनीतिक दल ?
  • चन्दौली में अब तक एकमात्र महिला सांसद के रूप में कांग्रेस से चंद्रा त्रिपाठी रही हैं.
  • वह भी राजनीतिक संघर्ष के बलबूते नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री की बहू के नाते उन्हें टिकट मिला और चुनाव जीती है.
  • इसके अलावा कोई भी महिला चंदौली से चुनकर लोकसभा की दहलीज तक नहीं पहुंच सकी.
  • हालांकि इस बार कांग्रेस समर्थित जन अधिकार पार्टी ने शिवकन्या कुशवाहा को जरूर मैदान में उतारा है, लेकिन उनके साथ भी पूर्व मंत्री और जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी होने की मुहर लगी है.
  • वहीं प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी के रूप उनके सामने यूपी बीजेपी अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय और सपा से गठबंधन प्रत्याशी डॉ. संजय चौहान है.


राजनीतिक जानकारों का कहना है कि
आज भी समाज महिलाओं की नेतृत्व क्षमता पर शंका करता है और वे जिताऊ प्रत्याशी के तौर पर उभर नहीं पाती हैं. ऐसे में कोई भी पार्टी महिला प्रत्याशियों की तुलना में ज्यादा पुरुष प्रत्याशी पर दांव लगाना उचित समझते हैं.
लेकिन अगर सड़क से लेकर से संसद तक आधी आबादी को प्रतिनिधित्व सौंपना है तो इसके लिए सभी पार्टियों को एकमत होकर कानून बनाने की जरूरत है.
जहां एक निश्चित सीटों को महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित करने की जरूरत है ताकि सदन में महिलाओं को बराबरी का मौका मिल सके.

चन्दौली: यूं तो महिलाओं के सम्मान में सभी राजनीतिक दल बराबर की भागीदारी का नारा बुलंद करते हैं, लेकिन यही राजनीतिक दल आधी आबादी यानी महिलाओं को टिकट देने में उनको दरकिनार करती दिखाई देती है. चंदौली का हाल भी इससे अलग नहीं है. इस जिले से एक मात्र महिला सांसद के रूप में चंद्रा त्रिपाठी चुनी गई हैं, जो कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कमलापति त्रिपाठी की बहु हैं.

महिलाओं को टिकट देने में क्यों कतराते हैं राजनीतिक दल ?
  • चन्दौली में अब तक एकमात्र महिला सांसद के रूप में कांग्रेस से चंद्रा त्रिपाठी रही हैं.
  • वह भी राजनीतिक संघर्ष के बलबूते नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री की बहू के नाते उन्हें टिकट मिला और चुनाव जीती है.
  • इसके अलावा कोई भी महिला चंदौली से चुनकर लोकसभा की दहलीज तक नहीं पहुंच सकी.
  • हालांकि इस बार कांग्रेस समर्थित जन अधिकार पार्टी ने शिवकन्या कुशवाहा को जरूर मैदान में उतारा है, लेकिन उनके साथ भी पूर्व मंत्री और जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी होने की मुहर लगी है.
  • वहीं प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी के रूप उनके सामने यूपी बीजेपी अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय और सपा से गठबंधन प्रत्याशी डॉ. संजय चौहान है.


राजनीतिक जानकारों का कहना है कि
आज भी समाज महिलाओं की नेतृत्व क्षमता पर शंका करता है और वे जिताऊ प्रत्याशी के तौर पर उभर नहीं पाती हैं. ऐसे में कोई भी पार्टी महिला प्रत्याशियों की तुलना में ज्यादा पुरुष प्रत्याशी पर दांव लगाना उचित समझते हैं.
लेकिन अगर सड़क से लेकर से संसद तक आधी आबादी को प्रतिनिधित्व सौंपना है तो इसके लिए सभी पार्टियों को एकमत होकर कानून बनाने की जरूरत है.
जहां एक निश्चित सीटों को महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित करने की जरूरत है ताकि सदन में महिलाओं को बराबरी का मौका मिल सके.

Intro:चन्दौली - यूं तो महिलाओं के सम्मान में उनकी पार्टी मैदान में का नारा देश के सभी राजनीतिक दल बुलंद करते है. लेकिन यहीं राजनीतिक दल आधी आबादी यानी महिलाओं को टिकट देने में दरकिनार कर देती है. चंदौली का हाल भी इससे अलग नहीं है. इस जिले से एकमात्र महिला सांसद के रूप में चंद्रा त्रिपाठी चुनी गई है. जो कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कमलापति त्रिपाठी की बहु है.


Body:कमोबेश टिकट बंटवारे को लेकर सभी दलों के और सभी सीटों पर यहीं हालात है. जहां महिला प्रत्यासियों को टिकट नहीं मिलता है. ये हाल तब है जब हर बार महिला आरक्षण को लेकर मुद्दा बनाया जाता है. लेकिन 20 सालों में महज ये राजसभा की दहलीज ही पार कर सका है.

एक नजर चन्दौली से जीते सांसदों पर...

1952 त्रिभुवन नारायण सिंह (कांग्रेस)
1957 त्रिभुवन नारायण सिंह (कांग्रेस)
1962 बालकृष्ण सिंह (कांग्रेस)
1967 निहाल सिंह (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1971 सुधाकर पांडेय (कांग्रेस)
1977 नरसिंह यादव (जनता पार्टी)
1980 निहाल सिंह (कांग्रेस)
1984 चंद्रा त्रिपाठी (कांग्रेस)
1989 कैलास नाथ सिंह (जनता पार्टी)
1991 आनंद रत्न मौर्य (भाजपा)
1996 आनंद रत्न मौर्य (भाजपा)
1998 आनंद रत्न मौर्य (भाजपा)
1999 जवाहर जायसवाल (सपा)
2004 कैलाश नाथ सिंह यादव (बसपा)
2009 रामकिशुन यादव (सपा)
2014 डॉ महेंद्र पांडेय (भाजपा)

चन्दौली में अबतक एकमात्र महिला सांसद के रूप में कांग्रेस से चंद्रा त्रिपाठी रही है. वो भी राजनीतिक संघर्ष के बलबूते नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री की बहू के नाते उन्हें टिकट मिला और चुनाव जीती है. इस अपवाद के अलावा कोई भी महिला चंदौली से चुनकर लोकसभा की दहलीज तक नहीं पहुँच सकी.

हालांकि इस बार कांग्रेस समर्थित जन अधिकार पार्टी ने शिवकन्या कुशवाहा को जरूर मैदान में उतारा है. लेकिन उनके साथ भी पूर्व मंत्री और जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी का मुहर लगा है. वहीं प्रतिद्वंद्वी प्रत्यासी के रूप उनके सामने यूपी बीजेपी अध्यक्ष डॉ महेंद्र नाथ पांडेय और सपा से गठबंधन प्रत्यासी डॉ संजय चौहान है. ऐसे में एक बार फिर लगता है कि दिल्ली अभी दूर है.

विशेषज्ञों की माने तो आज भी समाज महिला को सिर्फ नुमाईश की चीजें ही मानती है. इनका नेतृत्व क्षमता पर शंका करती है. और वे जिताऊ प्रत्यासी के तौर पर उभर नहीं पाती है. ऐसे में कोई भी पार्टी महिला प्रत्याशियों की तुलना में ज्यादा पुरुष प्रत्यासी पर दांव लगाना उचित समझते है.

लेकिन अगर सड़क से लेकर से संसद तक आधी आबादी को प्रतिनिधित्व सौंपना है, तो इसके लिए सभी पार्टियों को एकमत होकर इसके लिए कानून बनाने जरूरत है. जहां एक निश्चित सीटों को महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित करने की जरूरत है ताकि सदन में बराबरी का मौका मिल सकें

कमलेश गिरी
चन्दौली
7080902460















Conclusion:
Last Updated : May 11, 2019, 11:02 AM IST
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