वाराणसी: पश्मीना का नाम सुनते ही कश्मीर का जिक्र सबसे पहले जहन में आता है लेकिन अब यह बदलने वाला है क्योंकि पश्मीना के साथ अब महादेव की नगरी काशी का भी नाम जुड़ गया है. जी हां अब पश्मीना सिर्फ कश्मीर की नहीं बल्कि काशी की भी हो गई है. बड़ी बात यह है कि काशी में यह सिर्फ शॉल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अब इसके जरिए अलग-अलग तरीके की अत्याधुनिक परिधान बनाए जाएंगे. जहां एक ओर बुनकरों के हुनर को और आगे बढ़ाएंगे तो वहीं, दूसरी ओर उनकी आय के जरिया को भी और मजबूत करेंगे. आप सोच रहे होंगे कि काशी से कैसे यह मुमकिन हो पाएगा है, तो बता दें कि अब यह काशी में ही मुमकिन होने जा रहा है, कैसे देखें हमारे इस रिपोर्ट में.
अब काशी के भी नाम से जानी जाएगी पश्मीनाः प्रधानमंत्री की सोच है कि कोई भी कला एक शहर तक सीमित न हो बल्कि पूरे देश में उसका फैलाव हो. इसकी तस्वीर उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दिखाई दे रही है. जहां कश्मीर से चलकर पश्मीना का धागा सिर्फ काशी में नहीं पहुंचा है बल्कि वह हुनर भी यहां आ गया है, जो अब काशी को विश्व स्तर पर एक नया नाम देगा.
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बनारस में इसके लिए बकायदा सेवापुरी में बुनकरों को ट्रेनिंग भी दी गई है और अब तक इससे पांच से ज्यादा बुनकर जुड़े हुए हैं. अभी हाल ही में बुनकरों ने मिलकर 16 पश्मीना की शालें तैयार की है. अब ये अलग-अलग तरीके के अत्याधुनिक परिधान भी बनाएंगे. इसके साथ ही अन्य बुनकरों को भी इस योजना के तहत जोड़ा जाएगा, जिससे वह पश्मीना की डोर के जरिए खुद को सशक्त बना सके.
बुनकरों में हर्ष, होगा रोजगार सृजनः इस बाबत बुनकरों का कहना है कि वह बेहद उत्साहित हैं कि अब उन्हें बनारस में पश्मीना बनाने को मिलेगा, क्योंकि यह न सिर्फ उनके हुनर को बढ़ाएगा बल्कि उनको आर्थिक रूप से मजबूत भी करेगा. उन्होंने बताया कि एक बनारसी साड़ी की बुनाई 350 रुपये मिलती हैं और एक हफ्ते से ज्यादा का समय लगता है. लेकिन पश्मीना शॉल बनाने में ढाई दिन लगते हैं और उसका मेहनताना 1,350 रुपये मिलता है.
इसके साथ ही हम दूसरा काम करके लगभग पांच सौ से 700 रुपये कमा लेते हैं. उन्होंने बताया कि अभी इसमें महज 5 से 10 बुनकर ही लगे हुए हैं, लेकिन जैसे-जैसे उसके फायदे की सूचना लोगों को मिलेगी बनारस में बुनकरों का बड़ा तबका इससे जुड़ेगा और रोजगार के साथ आर्थिक रूप से भी मजबूत बनेगा.
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