वाराणसी: अयोध्या में राम मंदिर पर फैसले के बाद अब द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. ज्ञानवापी मस्जिद सहित विश्वनाथ मंदिर परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से की गई अपील पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में प्रार्थना पत्र दिया गया है.
पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण की मांग गलत
कोर्ट की ओर से अगली सुनवाई की तारीख 9 जनवरी 2020 को रखी गई है, लेकिन कोर्ट में आपत्ति दाखिल करने के पहले ही मस्जिद पक्ष की ओर से पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण की मांग को गलत बताया जा रहा है. काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में ज्ञानवापी मस्जिद भी स्थित है, जिसका मुकदमा 1991 से स्थानीय अदालत में चल रहा है.
1991 से दायर मुकदमे में यह मांग की गई थी कि मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है, जहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ, दर्शन का अधिकार है. कोर्ट से यह मांग प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास और अन्य ने दायर की थी. मुकदमे में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद तथा अन्य विपक्षी भी हैं.
वादियों की हो चुकी है मौत
मुकदमा दाखिल करने वाले दो वादियों डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित सोमनाथ व्यास की मौत हो चुकी है, जिसके बाद वादी पंडित सोमनाथ व्यास की जगह पर प्रतिनिधित्व कर रहे वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थना पत्र में कहा है कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है.
यह देश के बारह ज्योतिर्लिंग में से है और मंदिर परिसर पर कब्जा करके मुसलमानों ने मस्जिद बना दी है. 15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था. अब वादी ने कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से अपील की है कि विभाग रडार तकनीक से सर्वेक्षण और परिसर की खुदाई कराकर रिपोर्ट मंगाए, जिस पर कोर्ट ने विपक्षियों से आपत्ति भी मांगी है.
वादी विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि
मुस्लिम पक्ष की ओर से यह विवाद उठाया गया था कि विवादित स्थल यानी ज्ञानवापी मस्जिद की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मस्जिद की थी और चल रहे मुकदमे को इसी आधार पर निरस्त कर दिया जाए, जिसके विरुद्ध हिंदू पक्ष की ओर से पक्ष रखते हुए कोर्ट में बताया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद पूरे विश्वनाथ मंदिर परिसर का ही एक विवादित अंश है और धार्मिक स्थिति निर्धारण साक्ष्यों के आधार पर होना चाहिए.
इसे भी पढ़ें- CAB : पुलिस फायरिंग में दो प्रदर्शनकारियों की मौत, असम के बाद मेघालय में भी इंटरनेट बैन
वादी पक्ष की ओर से पुरातात्विक सर्वे कराने की मांग गलत है. उन्होंने कहा कि जब 1936 में फैसला कोर्ट सिविल जज ने कर दिया है कि ज्ञानवापी मस्जिद ऊपर से नीचे तक हल्फी मुस्लिम वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है. 1942 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस फैसले को बहाल रखा तो अब सर्वे का कोई मतलब नहीं है. यह सब कुछ फिजा खराब करने की कोशिश के तहत किया जा रहा है.
-सैयद मोहम्मद यासीन, ज्वाइंट सेक्रेटरी, अंजुमन इतजामिया मस्जिद