सहारनपुर: कोरोना काल के दो साल बाद सहारनपुर में ऐतिहासिक मेला गुगाल लगने जा रहा है. राजस्थान के बाद भारत में यह ऐतिहासिक मेला माना जाता है. गोगा महाड़ी पर लगने वाले ऐतिहासिक मेले में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली तक के श्रदालु जाहरवीर गोगा जी के दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि यहां करीब 800 साल पहले जाहरवीर गोगा जी यहां आकर रुके थे. सरसावा में उनका ननिहाल रहा है. यही वजह है कि 800 सालों से मेले की यह परम्परा लगातार जारी है. गोगा महाड़ी के दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है. बताया जाता है कि अंग्रेजी शासन में एक अधिकारी ने मेले पर प्रतिबंध लगाया था. लेकिन, सांपों ने उस अधिकारी को इतना परेशान किया कि दो दिन के बजाए उसे तीन दिन मेला लगाने की अनुमति देनी पड़ी थी.
आपको बता दें कि भादव महीना आते ही राजस्थान के बागड़ में लगने वाले गोगा जाहरवीर के विशाल मेले के बाद सहारनपुर की गोगा महाड़ी पर ऐतिहासिक मेला लगता है. यहां गुरु गोरखनाथ और जाहरवीर गोगा जी की पूजा की जा जाती है. गोगा म्हाड़ी पर तीन दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है. दूर दराज से आने वाले श्रदालु प्रसाद के साथ छड़ी चढ़ाते हैं. इसके चलते इस मेले को छड़ी मेला भी कहा जाता है. मेले से पहले भक्त छड़ियों को हर गांव शहर में घुमाकर लोगों से छड़ी का पूजन कराते हैं. इसके बाद छड़ियों को ढोल नगाड़ों, बैंड बाजों के साथ धूमधाम से गोगा महाड़ी पर बने मुख्य मंदिर पर ले जाया जाता है. इस दौरान भक्त महाड़ी पर छोटी-छोटी छड़ियां और प्रसाद चढ़ाकर बाबा गुरु गोरखनाथ और जाहरवीर गोगा मन्नते मांगते हैं. ऐसी मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ और गोगा जी महाराज सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
सहारनपुर में भादव माह में छड़ी पूजन के ऐतिहासिक मेले के साथ नगर निगम की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम कराए जाते हैं. गोगा महाड़ी पर लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले की यह परंपरा 800 साल से चली आ रही है. गोगा महाड़ी सुधार समिति प्रधान अनिल प्रताप सैनी ने बताया कि ब्रिटिश शासन में अंग्रेज अधिकारी ने छड़ी पूजन रोकने की कोशिश की थी. उस दौरान गुरु गोरखनाथ जी और जाहरवीर गोगा जी ने ऐसा चमत्कार दिखाया था कि उसे अंग्रेज अधिकारी को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था. अंग्रेज अधिकारियों के घर, दफ्तर, बिस्तर हर जगह सांप ही सांप दिखने लगे थे. इसके बाद उन्होंने क्षमा याचना कर छड़ी पूजन की अनुमति देनी पड़ी थी.
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उन्होंने बताया कि करीब 800 साल पहले जाहरवीर गोगा जी महाराज सहारनपुर में आकर रुके थे. जाहरवीर गोगा जी का ननिहाल सरसावा में रहा है. कोरोना काल के 2 साल बाद मेला गुगाल आयोजित किया जा रहा है. इससे श्रदालुओं और भक्तों में खासा उत्साह देखा जा रहा है. बैंड बाजों और ढोल नगाड़ों के साथ छड़ियों को म्हाड़ी पर ले जाया जाएगा. छड़ियों पर ड्रोन से पुष्प वर्षा की जाएगी. मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए प्रशासन भी तैयारी कर चुका है. तीन दिवसीय मेले के लिए रूट डायवर्ट कर दिया जाएगा.