सहारनपुर: कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ दायर सभी याचिकाएं खारिज कर दीं. हाईकोर्ट ने कहा है कि इस्लाम धर्म में हिजाब पहनना जरूरी नहीं है. स्टूडेंट्स स्कूल यूनिफॉर्म को पहनने से मना नहीं कर सकते. 5 फरवरी के सरकारी आदेश को अमान्य करने का कोई मामला नहीं बनता है. माना जा रहा है कि कर्नाटक हाईकोर्ट के इस निर्णय का विश्लेषण करने के बाद छात्राएं सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती हैं.
ईटीवी भारत की टीम ने इस मामले में सहारनपुर निवासी सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता फराह फ़ैज़ ने खास बातचीत की. उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया और हिजाब को शिक्षा के खिलाफ करार दिया. उन्होंने कहा कि इस्लाम में युवतियों पर हिजाब जबरन थोपा जा रहा है, जो आर्टिकल 25 के खिलाफ है.
फराह फ़ैज़ ने कहा कि 2018 में पहले भी केरल हाईकोर्ट ने 2 छात्राओं की याचिका को खारिज की थी. इस बार कर्नाटक हाईकोर्ट ने छात्रा मुस्कान की हिजाब वाली याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने साफ कर दिया कि फंडामेंटल राइट्स दो तरह के होते हैं. एक रिलेटिव राइट्स जिसमें धार्मिक अधिकार कवर होते हैं, जबकि दूसरे अधिकार सब्जेक्टेड होते हैं. यह मामला स्कूल कॉलेज की वेशभूषा से जुड़ा है. स्कूलों को यूनिफॉर्म के लिए कोड ऑफ कंडक्ट तय करने का अधिकार है. इस कोड ऑफ कंडक्ट को मानना छात्र-छात्राओं के लिए अनिवार्य होता है.
उन्होंने कहा कि अगर हिजाब इस्लाम धर्म का एकीकृत हिस्सा होता, तो आर्टिकल 25 में उसी तरह संरक्षित होता जैसे कि सिखों की पगड़ी. इस्लाम के मूलभूत हिस्सा हज, रोज़ा, नमाज़, ज़कात और तौहीद हैं. ये सब आर्टिकल 25 में संरक्षित हैं. हिजाब, तलाक-ए-बिद्दत, निकाह हलाला, बहुविवाह आदि जबरन संस्थाओं द्वारा मुसलमान समुदाय पर थोपी जाती हैं. कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है. पर्सनल लॉ भारत के संविधान के ऊपर हावी नहीं हो सकता.
वहीं ईटीवी भारत की टीम ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को लेकर मुरादाबाद के लोगों से बात की. उन्होंने कहा कि हिजाब इस्लाम धर्म का हिस्सा है, जिसका जिक्र कुरान में किया गया है कि घर की महिलाओं को पर्दे में रहना चाहिए.
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