लखनऊ : उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक बहुमत लेकर दोबारा सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार में इस बार सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. पिछले 5 वर्षों तक भाजपा ने सरकार चलाई. पांच वर्षों में योगी सरकार में कोई बड़े मामले सामने नहीं आए. यह आरोप जरूर लगते रहे कि सरकार में जनप्रतिनिधियों की सुनवाई नहीं हो रही है, पहले कार्यकाल में कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं हुआ. पिछले कार्यकाल में मंत्रियों की नाराजगी, इस्तीफा देने, केंद्रीय नेतृत्व को पत्र लिखकर सरकार की फजीहत कराने जैसे घटनाक्रम नहीं हुए.
वहीं योगी सरकार पार्ट-2 में चार महीने के कार्यकाल के अंदर ही तमाम तरह के घटनाक्रम हुए. जिससे सरकार की फजीहत भी हो रही है. ट्रांसफर पोस्टिंग में गड़बड़ी, अफसरों की मनमानी सहित कई तरह की अनियमितताओं को लेकर योगी सरकार घिरी हुई है और केंद्रीय नेतृत्व इस पूरे मामले में नजर बनाए हुए है. योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल के जब 100 दिन पूरे हो रहे थे तो सबसे पहला मामला स्वास्थ्य विभाग के ट्रांसफर में गड़बड़ियों का आया. आरोप लगा कि स्वास्थ्य विभाग में अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले में स्थानांतरण नीति का अनुपालन नहीं किया गया है. कई मृतक कर्मचारियों के भी तबादले कर दिए गए. कई अस्पतालों से डॉक्टरों के तबादले किए गए, लेकिन उनके स्थान पर किसी अन्य चिकित्सकों की तैनाती नहीं की गई. इससे तमाम तरह की समस्याओं का सामना मरीजों को करना पड़ा. ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद को पत्र लिख कर जवाब मांगा और पूरी रिपोर्ट तलब की.
इसके बाद लोक निर्माण विभाग, माध्यमिक शिक्षा विभाग, जल शक्ति विभाग जैसे विभागों में ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर तमाम तरह की अनियमिततायें सामने आईं. यह मामला चल ही रहा था कि जल शक्ति विभाग के राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने अपना त्याग पत्र राज्यपाल को दे दिया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र भी लिख दिया. पत्र लिखकर इस्तीफे की पेशकश की. जब यह पत्र वायरल हुआ तो लखनऊ से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मच गया. भाजपा सरकार अब पूरे मामले को देखते हुए पटाक्षेप करते हुए शांत करने में जुटी हुई है. जिससे सरकार की छवि को नुकसान न होने पाए.
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पांच साल बेदाग सरकार चलाने की मिसाल कायम की है. इसके पहले प्रदेश सरकारों पर अनेक आरोप लगा करते थे. जिसके चलते सत्ता में उनकी वापसी नहीं हो सकी थी. जबकि, योगी आदित्यनाथ को दोबारा जनादेश मिला था. उनकी सरकार ने सौ दिन में पिछली बार के मुकाबले अधिक तेजी से कार्य किया है.
वह कहते हैं कि यह सही है कि कुछ विभागों में ट्रांसफ़र को लेकर आरोप लगे हैं. योगी आदित्यनाथ ने इस पर सख्ती भी दिखाई है. पूर्ववर्ती और योगी सरकार के बीच फर्क साफ दिखाई दे रहा है. योगी कार्यवाही कर रहे हैं. उनको किसी भी दशा में अनियमितता बर्दाश्त नहीं है. किसी भी सरकार के लिए यह नाजुक मौका होता है. खासतौर पर ईमानदारी के लिए विख्यात योगी आदित्यनाथ के लिए. सम्बन्धित मंत्रियों को भी अपनी जिम्मेदारी जबाबदेही समझनी चाहिए.
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वे कहते हैं कि भाजपा में मंत्रियों को अपनी बात उचित फोरम पर रखने का अधिकार है, लेकिन चार महीने की खामोशी के बाद अपने को लाचार दिखाना अजीब लगता है. मुख्यमंत्री सरकार का मुखिया होता है. इसलिए नाजुक समय में सम्बन्धित मंत्रियों को मुख्यमंत्री के संपर्क में रहना चाहिए था. पत्र वायरल करना या प्रदेश की राजधानी छोड़कर चले जाना समस्या का समाधान नहीं है.
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