लखनऊ: गोरखपुर समेत आस-पास के जिलों में हर साल मानसून के साथ कहर ढाने वाले जापानी इंसेफेलाइटिस ने प्रदेश सरकार की चुनौतियां बढ़ा रखी है. हालांकि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह का दावा है कि इस बार प्रदेश सरकार ने बड़े पैमाने पर तैयारी कर रखी है और जापानी इंसेफेलाइटिस से प्रदेश में बच्चों की मौत नहीं होने दी जाएगी.
जानलेवा इंसेफेलाइटिस
- पिछले कई दशक से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ,बस्ती, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर समेत तराई के अधिकांश जिलों में जापानी इंसेफेलाइटिस जानलेवा महामारी के तौर पर सामने आया है.
- इस बुखार की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2017 में अकेले गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में 72 बच्चों की ताबड़तोड़ मौत हुई थी.
- तब कहा गया था कि ऑक्सीजन की कमी से बच्चों के हॉस्पिटल में भर्ती रहने के दौरान मौत हो गई.
- इस मामले ने प्रदेश सरकार की पूरी दुनिया में फजीहत कराई थी और सरकार ने इसके बाद कई बड़े कठोर कदम भी उठाए.
ईटीवी भारत से क्या बोले स्वास्थ्य मंत्री
- प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह का कहना है कि पिछले 2 साल के दौरान जापानी इंसेफेलाइटिस को काबू में करने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं.
- इसके तहत उन चिकित्सकों को भी जापानी इंसेफेलाइटिस के रोकथाम संबंधी उपचार की जानकारी दी गई है, जो बाल रोग विशेषज्ञ नहीं है.
- इससे पिछले साल बुखार के प्रकोप को कम करने में सरकार को कामयाबी हासिल हुई है.
- इस साल सरकार ने और बड़ी तैयारियां कर रखी हैं.
- डॉक्टरों के साथ ही अस्पताल के अन्य कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित किया गया है.
- हॉस्पिटल में वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाई गई है.
ऐसे अस्पतालों में भी वेंटिलेटर की सुविधा दी गई, जो ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे स्तर पर काम कर रहे हैं. सरकार की तैयारी व्यापक है. इस बार जापानी इंसेफेलाइटिस से किसी भी बच्चे की मौत नहीं होने दी जाएगी. सरकार ने जो रणनीति तैयारी की है, उस पर अभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ होने वाली मीटिंग में मुहर लगनी बाकी है. एक जुलाई से नई रणनीत के आधार पर काम किया जाएगा.
-सिद्धार्थ नाथ सिंह, स्वास्थ्य मंत्री, उत्तर प्रदेश
जापानी इंसेफेलाइटिस से मरने वाले बच्चों की तादाद में कमी दर्ज हुई है. आंकड़ों के अनुसार 2018 में केवल 187 मृत्यु हुई है, जबकि 2017 में 553 मृत्यु जापानी इंसेफेलाइटिस से दर्ज की गई थी. प्रदेश सरकार के अनुसार उत्तर प्रदेश के 14 जिले हैं, जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. 2017 में 3817 जापानी इंसेफेलाइटिस के मरीज अस्पतालों में पहुंचे थे. जबकि 2018 में 2043 मरीज ही पहुंचे.