लखनऊ: पीपीपी मॉडल पर चल रही वेंटीलेटर युक्त एम्बुलेंस गंभीर मरीजों को समय पर नहीं मिली. इस वजह से सीतापुर निवासी मरीज शीला ( 65) की गुरुवार सुबह हालत गंभीर हो गई. परिजन उन्हें लेकर जिला अस्पताल पहुंचे. यहां से डॉक्टरों ने उनको ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया. काफी देर इंतजार के बाद भी एएलएस एंबुलेंस नहीं मिली. बेटे वरुण के मुताबिक मरीज को सामान्य एंबुलेंस से ट्रॉमा सेंटर भेजा गया. इस दौरान मरीज ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया.
एडवांस लाइफ स्पोर्ट एंबुलेंस मिलती तो शायद मरीज की जान बच जाती. वहीं जानकीपुरम में 60 वर्षीय निरंजना को सांस लेने में तकलीफ हुई. मरीज को ट्रॉमा सेंटर रेफर करने के लिए वेंटीलेटर युक्त एंबुलेंस की आवश्यकता थी. काफी देर तक एंबुलेंस नहीं आई. आखिर में निजी एंबुलेंस से बिना वेंटीलेटर सपोर्ट के मरीज को लेकर ट्रॉमा सेंटर लाया गया. वहां पर डॉक्टरों ने मरीज को मृत घोषित कर दिया.
प्रदेश में पहले 150 एएलएस एम्बुलेंस थीं. वहीं फरवरी 2019 में 100 एम्बुलेंस बढ़ाए जाने पर एंबुलेंस की संख्या बढ़कर 250 हो गयी. हर जिले में 2 से लेकर 4 वेंटीलेटर युक्त एम्बुलेंस की तैनाती की गई है. मगर यह मरीज को समय पर मिलना मुश्किल है. शासन ने हाल में दूसरी कंपनी को एएलएस एंबुलेंस संचालन का काम सौंपा है. अभी यह कंपनी राज्य में सेवा के संचालन की बारीकियां ही समझ रही है. वहीं एएलएस एम्बुलेंस सेवा का कोई टोल फ्री नंबर नहीं है. यह रेफर करने वाले डॉक्टर के रहमोकरम पर है. वहीं एक तरफ जहां एम्बुलेंस की कमी है, वहीं दूसरी तरफ इनको वीआईपी ड्यूटी में लगा दिया जाता है. स्थिति यह है नई कंपनी को सेवा हैंडओवर होने पर 163 ट्रिप एम्बुलेंस ने की. इसमें 42 वीवीआई ड्यूटी रहीं.
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जिगित्सा प्रा.लि. (सेवा प्रदाता कंपनी) के मीडिया प्रभारी तरुण कुमार ने कहा कि कंपनी का हेल्प लाइन नंबर हैं, मगर वह मरीजों के लिए नहीं है. यह नंबर सिर्फ डॉक्टरों के लिए है. गंभीर मरीज पहुंचने पर डॉक्टर कॉल करके एंबुलेंस मंगवा सकते हैं. एएलएस रेफरल सर्विस है. यह सीधे नहीं मिलती है. डीजी स्वास्थ्य डॉ. वेदव्रत सिंह ने कहा कि गंभीर मरीजो को हायर सेंटर रेफर करने के लिए एएलएस मुहैया कराई जाती है. यह अभी 250 ही हैं. डॉक्टर मरीज को रेफर करते वक्त्त कॉल करते हैं. मरीज को एम्बुलेंस न मिलने और उनकी मौत की जानकारी नहीं है.