लखनऊ. ट्रेनों की लेटलतीफी की खबरें हर रोज सामने आती रहती हैं और इसके लिए सीधे तौर पर रेलवे को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है, लेकिन गौर किया जाए तो ट्रेनों के लेट होने के पीछे रेलवे कम बल्कि यात्री खुद ही ज्यादा जिम्मेदार हैं. यात्री अपनी सहूलियत के लिए ट्रेनों की जमकर चेन पुलिंग कर रहे हैं. जैसे ही ट्रेन रफ्तार पकड़ती है यात्री अपनी सुविधानुसार जहां उतरना होता है वहीं चेन पुलिंग कर ट्रेन रोक देते हैं, जिससे ट्रेन लेटलतीफी का शिकार हो जाती है. पिछले साल की तुलना में इस साल चेन पुलिंग के आंकड़ों में हुई वृद्धि इस बात को साबित करती है. पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ मंडल की मंडल रेल प्रबंधक डॉ मोनिका अग्निहोत्री बताती हैं कि पिछले साल की अपेक्षा इस साल ट्रेनों की चेन पुलिंग (chain pulling of trains) में डेढ़ सौ प्रतिशत का इजाफा हुआ है. यह चिंता का विषय है.
पूर्वोत्तर रेलवे (North Eastern Railway) लखनऊ मंडल की मंडल रेल प्रबंधक डॉ मोनिका अग्निहोत्री बताती हैं कि मेरे पास कई लोगों का फोन आता है. लोग चलती ट्रेन से फोन करते हैं कि मैं इस ट्रेन में बैठा हूं मैडम. ट्रेन जल्दी पहुंचवाइए. मेरी मीटिंग है मीटिंग छूट जाएगी. मेरे बॉस डांटेंगे. आज भी मेरे पास ऐसा ही फोन आया. कोई पूछता है कि ट्रेन क्यों लेट चल रही है? आप लोग चलवा नहीं रहे. रेलवे जिम्मेदार है. जब मैंने बोला कि एक पशु ट्रेन के आगे आ गया उसको हम लोग रोक नहीं पाए. उसने ट्रेन का ब्रेक पाइप तोड़ दिया तो बिना ब्रेक के तो गाड़ी चलाएंगे नहीं. अब चाहे आपकी मीटिंग छूट जाए. उनको तब थोड़ी बात समझ में आई. उन्होंने मुझे बहुत फटकार लगाई. शायद इतनी फटकार मुझे किसी ने भी नहीं लगाई होगी. मैंने उनकी फटकार सुन ली. दूसरा कई लोगों को बहुत अच्छी आदत होती है कि वह अपने घर के सामने ही उतरना चाहते हैं. रेल कहीं पर भी स्टॉपेज दे उनको ऑटो, टेंपो लेकर आने का मन नहीं होता है. वह लोग वहीं पर चेन खींचते हैं जहां उन्हें उतरना है. यह नहीं सोचते हैं कि अन्य जो साढ़े नौ सौ यात्री ट्रेन में बैठे हैं उन्हें भी समय से पहुंचना है.
चेन पुलिंग के मामलों में 150 प्रतिशत का इजाफा : पिछले वर्ष की तुलना में अभी तक चेन पुलिंग के मामले में डेढ़ सौ प्रतिशत का इजाफा हुआ है. कहने का मतलब है हर ट्रेन में चेन पुलिंग हो ही रही है. शायद ही कोई ट्रेन होती हो जब कंट्रोल चार्ट देखते हैं तो उसमें कैटल रन ओवर (सीआरओ) या मैन रन ओवर (एमआरओ) न हुआ हो. ट्रैक क्रॉस करने के लिए जगह-जगह खुद भी लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं और मवेशियों को भी छोड़ देते हैं. यह बहुत दुख का विषय है. चिंता का विषय है कि हम लोग लगातार इसको फॉलो कर रहे हैं, लेकिन लोगों में शायद अभी जागरूकता की कमी है.
2021 में ट्रैक पर मरने वाले आंकड़े
जनवरी: 28
फरवरी: 16
मार्च: 22
अप्रैल: 18
मई: 14
जून: 24
जुलाई: 45
अगस्त: 28
सितंबर: 35
अक्टूबर: 39
नवंबर: 39
दिसंबर: 16
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2022 में ट्रैक पर मरने वालों के आंकड़े
जनवरी: 26
फरवरी: 24
मार्च: 42
अप्रैल: 45
मई: 58
जून: 36
जुलाई: 46
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