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जिला अस्पतालों में नहीं हैं गैस्ट्रो के डॉक्टर, वापस लौटते हैं हजारों मरीज

राजधानी में सिविल, बलरामपुर और बीआरडी तीन प्रमुख अस्पताल हैं. इन तीनों अस्पतालों में एक भी गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं. ऐसे में इन अस्पतालों से हजारों मरीज बिना इलाज के वापस लौटते हैं.

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Published : Aug 26, 2022, 10:57 PM IST

लखनऊ : राजधानी में सिविल, बलरामपुर और बीआरडी तीन प्रमुख अस्पताल हैं. इन तीनों अस्पतालों में एक भी गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं. ऐसे में इन अस्पतालों से हजारों मरीज बिना इलाज के वापस लौटते हैं. बता दें कि इन अस्पतालों में गैस्ट्रो के डॉक्टर नियुक्त होते हैं तो मरीजों के लिए काफी ज्यादा सहूलियत हो जाएगी.

राजाजीपुरम से इलाज कराने आईं शीला द्विवेदी ने बताया कि काफी दिनों से उनके पेट में दर्द था. अचानक रात में तबीयत बिगड़ी, जिसके बाद उन्हें बलरामपुर अस्पताल में इमरजेंसी में लाया गया. इसके बाद डॉक्टरों ने कहा कि अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं. ऐसे में उन्हें केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर रेफर किया गया. जब उन्हें ट्राॅमा सेंटर ले जाया गया वहां पर पता चला कि इमरजेंसी में एक भी बेड खाली नहीं है. ऐसे में बिना इलाज के ही घर वापस लौटना पड़ा. उसके अगले दिन ही तबीयत और भी ज्यादा बिगड़ गई. फिर दोबारा ट्राॅमा सेंटर लाया गया, तब इलाज मुहैया हो पाया. उन्होंने कहा कि अगर बलरामपुर अस्पताल में भी गैस्ट्रो के डॉक्टर हो जाते तो हम जैसे मरीजों के लिए काफी सहूलियत होती.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला

बलरामपुर अस्पताल के सीएमएस डॉ. जीपी गुप्ता ने बताया कि गैस्ट्रो के डॉक्टर को अपनी पढ़ाई कंप्लीट करने में एक लंबा समय लगता है. 15 साल की इनकी पढ़ाई होती है. फिर कुछ प्रैक्टिस में समय जाता है. उसके बाद 40 साल की उम्र तक जब एक डॉक्टर परफेक्ट बनके आता है तो सुपर स्पेशलिटी में नियुक्त होता है. ऐसे में वे ज्यादातर केजीएमयू, लोहिया, पीजीआई जैसे बड़े संस्थानों में नियुक्ति लेते हैं जहां वह अपनी अधिक से अधिक सेवाएं दे पाएं. क्योंकि जब एक लंबे समय के बाद अपनी पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद नियुक्ति पाते हैं तो ऐसी जगह पर जाना चाहते हैं जहां पर वह अधिक से अधिक मरीजों की सेवाकर सकें, उनका इलाज कर सकें. यही कारण है कि जिला अस्पतालों में गैस्ट्रो के डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं, हालांकि हमारे यहां पर नियुक्ति निकाली गई है और कोशिश है कि जल्द से जल्द कोई गैस्ट्रो का डॉक्टर अस्पताल में नियुक्त हो. अभी अस्पताल में गैस्ट्रो से संबंधित मरीज आते हैं तो उन्हें अन्य बड़े अस्पतालों में रेफर किया जाता है. वहीं जब अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर मौजूद होंगे तो हमें किसी मरीज को रेफर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

यह भी पढ़ें : सीएम योगी आदित्यनाथ ने 810 करोड़ की परियोजनाओं का किया लोकार्पण और शिलान्यास


सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ. आरपी सिंह ने बताया कि अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं. ऐसे में इमरजेंसी में जो हमारे यहां मरीज आते हैं उन्हें प्राथमिक इलाज दिया जाता है. इसके बाद उन्हें केजीएमयू या लोहिया रेफर कर दिया जाता है. अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर की नियुक्ति को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है. वहीं बीआरडी अस्पताल के प्रवक्ता मनीष बताते हैं कि अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं ऐसे में तमाम मरीज आते हैं उन्हें त्वरित संभव इलाज देकर अन्य बड़े अस्पतालों में रेफर किया जाता है ताकि उन्हें एक बेहतर इलाज उपलब्ध मिल सके.

यह भी पढ़ें : AKTU में बीटेक छात्राओं को सुनहरा मौका, प्लेसमेंट टेस्ट में शामिल हुईं 512 छात्राएं

लखनऊ : राजधानी में सिविल, बलरामपुर और बीआरडी तीन प्रमुख अस्पताल हैं. इन तीनों अस्पतालों में एक भी गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं. ऐसे में इन अस्पतालों से हजारों मरीज बिना इलाज के वापस लौटते हैं. बता दें कि इन अस्पतालों में गैस्ट्रो के डॉक्टर नियुक्त होते हैं तो मरीजों के लिए काफी ज्यादा सहूलियत हो जाएगी.

राजाजीपुरम से इलाज कराने आईं शीला द्विवेदी ने बताया कि काफी दिनों से उनके पेट में दर्द था. अचानक रात में तबीयत बिगड़ी, जिसके बाद उन्हें बलरामपुर अस्पताल में इमरजेंसी में लाया गया. इसके बाद डॉक्टरों ने कहा कि अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं. ऐसे में उन्हें केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर रेफर किया गया. जब उन्हें ट्राॅमा सेंटर ले जाया गया वहां पर पता चला कि इमरजेंसी में एक भी बेड खाली नहीं है. ऐसे में बिना इलाज के ही घर वापस लौटना पड़ा. उसके अगले दिन ही तबीयत और भी ज्यादा बिगड़ गई. फिर दोबारा ट्राॅमा सेंटर लाया गया, तब इलाज मुहैया हो पाया. उन्होंने कहा कि अगर बलरामपुर अस्पताल में भी गैस्ट्रो के डॉक्टर हो जाते तो हम जैसे मरीजों के लिए काफी सहूलियत होती.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला

बलरामपुर अस्पताल के सीएमएस डॉ. जीपी गुप्ता ने बताया कि गैस्ट्रो के डॉक्टर को अपनी पढ़ाई कंप्लीट करने में एक लंबा समय लगता है. 15 साल की इनकी पढ़ाई होती है. फिर कुछ प्रैक्टिस में समय जाता है. उसके बाद 40 साल की उम्र तक जब एक डॉक्टर परफेक्ट बनके आता है तो सुपर स्पेशलिटी में नियुक्त होता है. ऐसे में वे ज्यादातर केजीएमयू, लोहिया, पीजीआई जैसे बड़े संस्थानों में नियुक्ति लेते हैं जहां वह अपनी अधिक से अधिक सेवाएं दे पाएं. क्योंकि जब एक लंबे समय के बाद अपनी पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद नियुक्ति पाते हैं तो ऐसी जगह पर जाना चाहते हैं जहां पर वह अधिक से अधिक मरीजों की सेवाकर सकें, उनका इलाज कर सकें. यही कारण है कि जिला अस्पतालों में गैस्ट्रो के डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं, हालांकि हमारे यहां पर नियुक्ति निकाली गई है और कोशिश है कि जल्द से जल्द कोई गैस्ट्रो का डॉक्टर अस्पताल में नियुक्त हो. अभी अस्पताल में गैस्ट्रो से संबंधित मरीज आते हैं तो उन्हें अन्य बड़े अस्पतालों में रेफर किया जाता है. वहीं जब अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर मौजूद होंगे तो हमें किसी मरीज को रेफर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

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सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ. आरपी सिंह ने बताया कि अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं हैं. ऐसे में इमरजेंसी में जो हमारे यहां मरीज आते हैं उन्हें प्राथमिक इलाज दिया जाता है. इसके बाद उन्हें केजीएमयू या लोहिया रेफर कर दिया जाता है. अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर की नियुक्ति को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है. वहीं बीआरडी अस्पताल के प्रवक्ता मनीष बताते हैं कि अस्पताल में गैस्ट्रो के डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं ऐसे में तमाम मरीज आते हैं उन्हें त्वरित संभव इलाज देकर अन्य बड़े अस्पतालों में रेफर किया जाता है ताकि उन्हें एक बेहतर इलाज उपलब्ध मिल सके.

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