लखनऊ: प्रदेश के कई जिलों का भूजल स्तर काफी गिर चुका है. जिसमें बुंदेलखंड, कानपुर, आगरा, लखनऊ और वाराणसी जैसे तमाम 50 जिले शामिल हैं. जबकि प्रदेश के 20 जिले ऐसे हैं, जहां का पानी काफी ज्यादा प्रदूषित हो चुका है. जो पीने के लायक भी नहीं है. वर्तमान समय को देखते हुए हमें और आपको आगे आकर जल संरक्षित करने की जरूरत है. बेवजह भूजल का दोहन हमें भविष्य में पानी के लिए तरस आ सकता हैं. यह बातें बतौर मुख्य अतिथि सिंचाई और जल संसाधन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने कहीं. दरअसल ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप की ओर से सोमवार को भूजल सप्ताह की शुरुआत की गई. इस पूरे एक सप्ताह में भूजल से संबंधित विशेषज्ञ आम पब्लिक को समझाएंगे.
ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप के सदस्य भूजल विशेषज्ञ डॉ. आरएस सिन्हा ने बताया कि मौजूदा समय में प्रदेश के सभी जिलों का भूजल स्तर काफी ज्यादा गया है. लगातार हो रहे भूजल का दोहन एक की सबसे प्रमुख वजह है. बांदा, बुंदेलखंड, महोबा, कानपुर आगरा, वाराणसी, लखनऊ और मेरठ जैसे तमाम जिले भूजल के दोहन से प्रभावित हुए हैं. इन जिलों का भूजल स्तर काफी ज्यादा नीचे पहुंच गया है. बुंदेलखंड में हमेशा से पानी की समस्या रही है. यह शहर ऐसा है जिसे सूखा भी घोषित किया जा चुका है. लेकिन आज यह शहर पहले से कुछ बेहतर है. पहले देखा करते थे कि महिलाएं भी मिलो दूर जाकर पानी लेकर आती थी, क्योंकि हमेशा से बुंदेलखंड में पानी की दिक्कतें थीं. अगर भूजल का दोहन नहीं रोका गया तो भविष्य में लोग पानी को तरस जाएंगे.
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उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हर क्षेत्र में विकास हो रहा है. विकास की लहर में भूजल का दोहन काफी तेजी से हो रहा है. अमूमन हम देखते हैं कि जहां भी किसी क्षेत्र का विकास हो रहा होता है या किसी का घर बन रहा होता है, वहां पर अत्यधिक पानी का इस्तेमाल होता है. किसी का नया घर बनता है, तो सबसे पहले वह समरसेबल लगवाता है. यह सबसे प्रमुख वजह भूजल के दोहन का है.
ऐसे किया जा सकता है कुछ हद तक कंट्रोल
उन्होंने बताया कि अगर हमें भूजल दोहन को बचाना है तो सबसे ज्यादा जरूरी है कि शहर में जितने भी नलकूप और तलाब है, उन्हें बचाया जाए. शहर में करीब 900 से अधिक नलकूप हैं. जिसमें से बहुत सारे नलकूप सिर्फ शोपीस में लगे हुए हैं. सरकार को सबसे पहले इन नलकूपों को सही करने होंगे. इसके बाद तलाब बावरी को बचाना होगा. जो समय के साथ नष्ट हो चुके हैं और लगातार हो भी रहे हैं. इसी के साथ ही सरकार को एक नीति बनानी होगी और उसे सख्ती से लागू करना होगा.
ऐसे में भूजल को बचाने की बहुत जरूरत है. जिस तरह से आज पंप लगाने के बाद भी बमुश्किल पानी उपलब्ध होता है. घर-घर में लगे पंप से भी जब काम नहीं चला तो लोगों ने पानी की जरूरत घटाने की वजह निजी बोरिंग की राह चुन ली है. नतीजा यह हुआ कि 2 से 3 साल बेहिसाब पानी देने के बाद जमीनी जल स्रोत हंसने लगे और बोरिंग पानी के वजह हवा फेंकने लगी.
आज पानी की तलाश में लोग घर की चारदीवारी छोड़ सड़क तक आ चुके हैं. यह स्थिति बहुत भयावह है इसका एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि जो सामर्थ्यवान है, पानी उनकी पहुंच में है जबकि कमजोर आज भी एक एक बाल्टी पानी के लिए मशक्कत कर रहा है. कुदरत से मिले भूजल भंडारों पर सबका समान हक है. एक्स नूरा संस्था के संस्थापक प्रभा चतुर्वेदी ने सोते जागते बस पर्यावरण और जल संरक्षण की चिंता की है. बढ़ते भूजल संकट की चौतरफा अनदेखी से इस कदर परेशान थी कि, उन्होंने साल 2004 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जनहित याचिका दायर कर दी.
हाईकोर्ट ने सरकार को गिरते भूजल की समस्या के निदान के लिए तत्काल कदम उठाने के आदेश दिए. यही से प्रदेश में भूजल के महत्व को समझने के साथ उसके संरक्षण और प्रबंधन की नींव रखी गई. राज्य सरकार ने भी अदालती आदेश के बाद जुलाई 2004 में तत्कालीन मुख्य सचिव वीके मित्तल की अध्यक्षता में प्रबंधन के लिए शीघ्र कार्यकारी समिति का गठन किया. भूजल के महत्व को सेव करते हुए सरकार ने 2004 में ही भूगर्भ जल विभाग को नोडल एजेंसी बनाया, तो जिला अधिकारियों की अध्यक्षता में तकनीकी समन्वय समिति बनाई गई. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए एक के बाद एक तमाम निर्देश इसे के बाद जारी किए गए.
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