लखनऊ : केजीएमयू (KGMU) में प्रदेशभर से मरीज इलाज के लिए आते हैं. इन दिनों केजीएमयू (KGMU) में मरीज के साथ साथ तीमारदारों भी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं. जांच कराने के लिये तीमारदारों इधर से उधर भागना पड़ रहा है. दो से तीन दिन तक अस्पताल का चक्कर लगाने के बाद मरीज को इलाज उपलब्ध होता है. मरीजों ने बताया कि अस्पताल में मरीज को भर्ती कराना बहुत मुश्किल है. दौड़ते दौड़ते तीमारदार की हालत गंभीर हो जाती है. जांच के लिए मरीज और तीमारदार को खूब दौड़ाया जाता है. किसी को कुछ मालूम नहीं होता कि कौन सी जांच कहां हो रही है. नाम के लिए हेल्प डेस्क है, वहां पर भी किसी को कोई जानकारी नहीं होती.
आगरा निवासी प्रदीप कुमार ने बताया कि केजीएमयू (KGMU) में बीते चार दिनों से वह बीमार चाची को लेकर इधर से उधर भटक रहे हैं. प्रदीप ने बताया कि केजीएमयू में इलाज कराना बहुत मुश्किल काम है. यहां पर जिसका सोर्स है उसका इलाज ही आसानी से हो सकता है और गरीब लोगों का इलाज यहां पर होना मुश्किल है. मरीज को यहां पर भर्ती कराने में ही तीमारदारों की हालत खराब हो जाती है. उन्होंने बताया कि मरीज को कैंसर के लक्षण हैं. डॉक्टर इधर से उधर भटका रहे हैं. कोई डॉक्टर बोल रहा है कि दूसरे विभाग में जाएं. कोई केजीएमयू पुरानी बिल्डिंग भेजता है, फिर कैंसर विभाग में भेजा जाता है. इधर से उधर करने में मरीज की तबीयत और भी ज्यादा खराब हो जाती है. चार दिन बाद हम मरीज को अस्पताल में भर्ती करा पाए हैं. यहां पर मरीजों की संख्या ज्यादा है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत है कि यहां पर कोई बताने वाला नहीं है कि कौन सी जांच कहां पर होती है. कौन सा विभाग कहां पर है. सभी अपना पल्ला झाड़ते हैं.
लखीमपुर निवासी सूरज शुक्ला ने बताया कि इमरजेंसी केस को भी यहां पर भर्ती कराने में तीमारदार की हालत खराब हो जाती है. उन्होंने बताया कि लखीमपुर से मरीज को लेकर आए थे. मरीज की हालत काफी गंभीर थी. पांच जगह से मरीज की हड्डी टूटी थी. एक पैर में तीन जगह और दूसरे पैर में दो जगह पैर की हड्डी टूटी हुई थी. ऐसे गंभीर मरीज को भी भर्ती कराने में तीन दिन लग गए. 48 घंटे के बाद मरीज को इलाज मिल पाया. यहां पर इलाज कराना बहुत मुश्किल होता है. इतने गंभीर मरीज को तीन दिन बाद इलाज मिला और तीन दिनों तक मरीज को लेकर हम इधर से उधर भटकते रहे. यहां पर किसी भी कर्मचारी का व्यवहार अच्छा नहीं है न कोई कायदे से बात करता है. डॉक्टर एक जगह से दूसरी जगह जांच के लिए जब भेजते हैं तो मरीज को साथ लेकर दर-दर भटकना पड़ता है और किसी को पता नहीं होता है कि कौन सी जांच कहां होनी हैं.
लखीमपुर निवासी मोहम्मद शरीफ ने बताया कि इलाज के लिए मरीज को दो दिन पहले लेकर अस्पताल में आए थे. रात का समय था. 48 घंटे बाद मरीज को भर्ती किया गया, वहीं जिस रात हम अस्पताल में मरीज को लेकर आए थे, वहां पर रात भर इधर से उधर हमें भगाया गया. कहीं इस जांच के लिए कहीं उस जांच के लिए. तमाम जांचों के लिए हमें अस्पताल परिसर में कम से कम 50 बार चक्कर लगाने पड़े. उसके बाद भी भर्ती नहीं किया गया. दो दिन बाद तक मरीज तड़पता रहा और मरीज को देखकर हमारी भी सांस अटकती रहीं. जांच के लिए इधर से उधर इतना ज्यादा भगा दिया जाता है कि मरीज के साथ तीमारदार की भी हालत गंभीर हो जाती है.
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केजीएमयू प्रवक्ता डॉ सुधीर सिंह ने बताया कि केजीएमयू अस्पताल में रोजाना करीब 10 हजार लोग इलाज के लिए आते हैं. मरीजों की संख्या अधिक होने की वजह से मरीज को भर्ती कराने में थोड़ा समय लगता है. केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर में 460 बेड हैं. बेड फुल हो जाने के कारण मरीज को भर्ती करने में समस्या आती हैं. हालांकि अस्पताल में जितने भी मरीज आते हैं उन्हें अच्छे से देखा जाता है. हमारी और डॉक्टरों की यही कोशिश होती है कि जितने भी मरीज हैं उन्हें बेहतर से बेहतर चिकित्सा सुविधा मिले. कर्मचारियों के व्यवहार के लिए कई बार मीटिंग भी होती है, जिस पर खुद कुलपति कर्मचारियों से बातचीत करते हैं और उन्हें मरीजों और तीमारदारों के साथ कायदे से बात करने के लिए कहते हैं. हालांकि इस पर यह भी नियम है कि अगर कोई कर्मचारी की शिकायत आती है तो उस पर कड़ी कार्रवाई होगी.