लखनऊ : ओआरएस बच्चों के लिए जीवन रक्षक है. डायरिया के इलाज के लिए जिंक और ओआरएस का संयोजन जरूरी है और इसे जल्द से जल्द शुरू किया जाना चाहिए. दस्त के खतरे के संकेतों को ध्यान से देखना चाहिए. यह बातें बाल रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. दीप्ति अग्रवाल ने कहीं. डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के बाल रोग विभाग की ओर से बुधवार को ओआरएस जागरूकता सप्ताह (25 से 31जुलाई) का शुभारम्भ किया गया.
इस मौके पर जनमानस में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से संस्थान के 2020 बैच एमबीबीएस के छात्रों द्वारा नुक्कड़-नाटक प्रस्तुत किया गया. जिसमें लोगों को डायरिया के खतरे के लक्षण, डायरिया का प्रबन्धन कैसे करें और बच्चे को अस्पताल कब ले जाना है के बारे में बताया गया. अस्पताल की निदेशक प्रो. सोनिया नित्यानंद ने लोगों को संदेश दिया कि ओआरएस और जिंक में डायरिया में बच्चों की जान बचाने की जादुई शक्ति है. इससे हमारे देश में बच्चों की मृत्यु दर को कम किया जा सकता है.
पीडियाट्रिक हेपेटोलॉजिस्ट और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. पीयूष उपाध्याय ने जानकारी दी कि भारत में 5 साल से कम उम्र के 1 लाख से ज्यादा बच्चों की डायरिया से मौत हो जाती है. कुपोषण और निमोनिया के बाद 5 साल से कम उम्र के बच्चों में डायरिया मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है.
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बाल रोग विभाग के डॉ अशोक कुमार गुप्ता ने घर पर ओआरएस तैयार करने का तरीका दिखाया. डॉ. शितान्शु श्रीवास्तव ने कुपोषित बच्चों में डायरिया के खतरों के बारे में बताया. डॉ स्मृति अग्रवाल, डॉ. श्रीकेश सिंह ने लोगों को जागरूक किया.
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