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स्मारक घोटाला: इलाहाबाद हाइकोर्ट हुआ सख्त तो जांच की रफ्तार हुई तेज

बसपा शासन में बड़े स्तर का स्मारक घोटाला हुआ था. हाईकोर्ट की सख्ती के बाद इस मामले की जांच में रफ्तार तेज हो गई है.

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Published : Sep 4, 2021, 5:12 PM IST

लखनऊ: बसपा शासन में बड़े स्तर का स्मारक घोटाला हुआ था. लगभग 1400 करोड़ के हुए इस घोटाले का मामला हाई कोर्ट पहुंचा था, लेकिन मामले में जांच सुस्त रफ्तार से चल रही थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्ती के बाद अब मामले की जांच तेज हो गयी है. मामले से जुड़े अफसरों से पूछताछ की कवायद शुरू हो गई है. उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) ने बुधवार को राजकीय निर्माण निगम के एक रिटायर्ड अफसर समेत चार लोगों से पूछताछ की. विजिलेंस सिलसिलेवार 16 और अधिकरियों से पूछताछ करेगी. विभाग को चार सप्ताह में इस मामले में विवेचना पूरी करनी है.

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने 1400 करोड़ रुपये के चर्चित स्मारक घोटाले में बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इंकार करते हुए मामले की विवेचना चार सप्ताह में पूरा करने के आदेश दिए हैं. बाबू सिंह कुशवाहा की ओर से दायर याचिका में स्मारक घोटाले में वर्ष 2014 में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी गई थी. इस एफआईआर में याची के अधिवक्ता की दलील थी कि विवेचना पिछले लगभग सात सालों से चल रही है, लेकिन अब तक याची के खिलाफ कोई भी महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं मिला है.

कोर्ट ने याचिका निस्तारित कर दी. घोटाले की जांच कर रही विजिलेंस ने दो कैबिनेट मंत्री समेत 40 अफसरों को नोटिस दिया था. इनमें से हाल ही में तत्कालीन बसपा सरकार के दो कैबिनेट मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 20 अन्य अफसरों से पूछताछ कर चुकी है. हाईकोर्ट की सख्ती के बाद विजिलेंस ने बुधवार को राजकीय निर्माण निगम यूपीआरएनएन के एक रिटायर्ड अफसर समेत चार लोगों को दफ्तर बुलाकर 4 घंटे पूछताछ की.

विजिलेंस ने रिटायर्ड अफसर से पूछा कि मिर्जापुर से लाए गए पत्थरों को राजस्थान से लाए जाने का दावा करते हुए पत्थरों को दोगुने रेट में खरीदने की क्या मजबूरी थी? अफसरों ने पत्थर को लाने में प्रयुक्त परिवहन के फर्जी बिलों का भुगतान के बारे में पूछा. बीते 2007 को तत्कालीन खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने अफसरों को मिर्जापुर सैंड स्टोन के गुलाबी पत्थरों को स्मारकों में लगाने के लिए निर्देश दिए थे. इनके रेट तय करने के लिए गठित क्रय समिति की बैठक हुई थी.

ये भी पढ़ें- 2022 के विधानसभा चुनावों में यूपी समेत 4 राज्यों में सरकार बना सकती है भाजपा : सर्वे


20 मई 2013 को शासन को सौंपी गई अपनी जांच रिपोर्ट में लोकायुक्त ने कुल 199 लोगों को आरोपी बताया था. अब तक 23 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है. वर्ष 2014 में इसी रिपोर्ट के आधार पर जांच की जिम्मेदारी विजिलेंस को सौंपी गई थी. विजिलेंस ने जनवरी 2014 में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 19 नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी.

वहीं, छह अफसरों के खिलाफ अक्टूबर, 2020 में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है. विजिलेंस के साथ प्रवर्तन निदेशालय भी मामले में जांच कर रहा है. प्रवर्तन निदेशालय ने स्मारक घोटाले में धन-शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act, 2002) का मामला भी दर्ज किया था और लखनऊ में इंजीनियरों और ठेकेदारों की संपत्तियों को कुर्क किया था.

लखनऊ: बसपा शासन में बड़े स्तर का स्मारक घोटाला हुआ था. लगभग 1400 करोड़ के हुए इस घोटाले का मामला हाई कोर्ट पहुंचा था, लेकिन मामले में जांच सुस्त रफ्तार से चल रही थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्ती के बाद अब मामले की जांच तेज हो गयी है. मामले से जुड़े अफसरों से पूछताछ की कवायद शुरू हो गई है. उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) ने बुधवार को राजकीय निर्माण निगम के एक रिटायर्ड अफसर समेत चार लोगों से पूछताछ की. विजिलेंस सिलसिलेवार 16 और अधिकरियों से पूछताछ करेगी. विभाग को चार सप्ताह में इस मामले में विवेचना पूरी करनी है.

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने 1400 करोड़ रुपये के चर्चित स्मारक घोटाले में बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इंकार करते हुए मामले की विवेचना चार सप्ताह में पूरा करने के आदेश दिए हैं. बाबू सिंह कुशवाहा की ओर से दायर याचिका में स्मारक घोटाले में वर्ष 2014 में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी गई थी. इस एफआईआर में याची के अधिवक्ता की दलील थी कि विवेचना पिछले लगभग सात सालों से चल रही है, लेकिन अब तक याची के खिलाफ कोई भी महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं मिला है.

कोर्ट ने याचिका निस्तारित कर दी. घोटाले की जांच कर रही विजिलेंस ने दो कैबिनेट मंत्री समेत 40 अफसरों को नोटिस दिया था. इनमें से हाल ही में तत्कालीन बसपा सरकार के दो कैबिनेट मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 20 अन्य अफसरों से पूछताछ कर चुकी है. हाईकोर्ट की सख्ती के बाद विजिलेंस ने बुधवार को राजकीय निर्माण निगम यूपीआरएनएन के एक रिटायर्ड अफसर समेत चार लोगों को दफ्तर बुलाकर 4 घंटे पूछताछ की.

विजिलेंस ने रिटायर्ड अफसर से पूछा कि मिर्जापुर से लाए गए पत्थरों को राजस्थान से लाए जाने का दावा करते हुए पत्थरों को दोगुने रेट में खरीदने की क्या मजबूरी थी? अफसरों ने पत्थर को लाने में प्रयुक्त परिवहन के फर्जी बिलों का भुगतान के बारे में पूछा. बीते 2007 को तत्कालीन खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने अफसरों को मिर्जापुर सैंड स्टोन के गुलाबी पत्थरों को स्मारकों में लगाने के लिए निर्देश दिए थे. इनके रेट तय करने के लिए गठित क्रय समिति की बैठक हुई थी.

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20 मई 2013 को शासन को सौंपी गई अपनी जांच रिपोर्ट में लोकायुक्त ने कुल 199 लोगों को आरोपी बताया था. अब तक 23 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है. वर्ष 2014 में इसी रिपोर्ट के आधार पर जांच की जिम्मेदारी विजिलेंस को सौंपी गई थी. विजिलेंस ने जनवरी 2014 में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 19 नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी.

वहीं, छह अफसरों के खिलाफ अक्टूबर, 2020 में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है. विजिलेंस के साथ प्रवर्तन निदेशालय भी मामले में जांच कर रहा है. प्रवर्तन निदेशालय ने स्मारक घोटाले में धन-शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act, 2002) का मामला भी दर्ज किया था और लखनऊ में इंजीनियरों और ठेकेदारों की संपत्तियों को कुर्क किया था.

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