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कूल्‍हे का सॉकेट टूटने पर ना करें लापरवाही, हो सकती है ये परेशानी - ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग

केजीएमयू के ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग द्वारा अटल बिहारी साइंटिफि‍क कन्‍वेंशन सेंटर में दो दिवसीय पेलवी-एसिटेबुलर सीएम और कैडेवरिक वर्कशॉप आयोजित की गई.

ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग
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Published : Aug 16, 2022, 5:41 PM IST

लखनऊ : सड़क दुर्घटना में यदि कमर और उसके नीचे चोट लगी हो तो उसे नजरंदाज बिल्‍कुल न करें, क्‍योंकि अगर कूल्‍हे का सॉकेट टूट गया है तो उसका इलाज दस दिन के अंदर हर हाल में शुरू हो जाना चाहिये. इसका पता एक्‍सरे से लगाया जा सकता है. ज्‍यादा ब्‍लीडिंग से जान जाने का खतरा रहता है इसलिए जब भी कमर में चोट लगे तो कमर पेल्विक बैंड या कपड़े से कस कर बांध देना चाहिये.


केजीएमयू के ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग द्वारा अटल बिहारी साइंटिफि‍क कन्‍वेंशन सेंटर में दो दिवसीय पेलवी-एसिटेबुलर सीएम और कैडेवरिक वर्कशॉप आयोजित की गई. सचिव डॉ. धर्मेन्‍द्र कुमार ने बताया कि पेल्विक बोन थ्री डायमेंशनल होती है. यह वह जोड़ होता है जहां पर खून की सप्‍लाई बहुत तेज होती है और यहीं पर पेट के ऑर्गन भी होते हैं. इसलिए सॉकेट टूटने पर इसे सही ढंग से बैठाना बहुत जरूरी होता है, क्‍योंकि हड्डी बैठाने में दूसरे ऑर्गन को नुकसान न पहुंचे इसका ध्‍यान रखना होता है. इसके लिए विशेष ट्रेनिंग की आवश्‍यकता होती है.
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डॉ. धर्मेन्‍द्र ने बताया कि इसका इलाज पहले बिना सर्जरी के किया जाता था जिससे यह समस्‍या दूर नहीं हो पाती थी और आजीवन दिव्‍यांगता का डर रहता था. लेकिन अब इसका उपचार सर्जरी से किया जाना संभव है.

लखनऊ : सड़क दुर्घटना में यदि कमर और उसके नीचे चोट लगी हो तो उसे नजरंदाज बिल्‍कुल न करें, क्‍योंकि अगर कूल्‍हे का सॉकेट टूट गया है तो उसका इलाज दस दिन के अंदर हर हाल में शुरू हो जाना चाहिये. इसका पता एक्‍सरे से लगाया जा सकता है. ज्‍यादा ब्‍लीडिंग से जान जाने का खतरा रहता है इसलिए जब भी कमर में चोट लगे तो कमर पेल्विक बैंड या कपड़े से कस कर बांध देना चाहिये.


केजीएमयू के ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग द्वारा अटल बिहारी साइंटिफि‍क कन्‍वेंशन सेंटर में दो दिवसीय पेलवी-एसिटेबुलर सीएम और कैडेवरिक वर्कशॉप आयोजित की गई. सचिव डॉ. धर्मेन्‍द्र कुमार ने बताया कि पेल्विक बोन थ्री डायमेंशनल होती है. यह वह जोड़ होता है जहां पर खून की सप्‍लाई बहुत तेज होती है और यहीं पर पेट के ऑर्गन भी होते हैं. इसलिए सॉकेट टूटने पर इसे सही ढंग से बैठाना बहुत जरूरी होता है, क्‍योंकि हड्डी बैठाने में दूसरे ऑर्गन को नुकसान न पहुंचे इसका ध्‍यान रखना होता है. इसके लिए विशेष ट्रेनिंग की आवश्‍यकता होती है.
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डॉ. धर्मेन्‍द्र ने बताया कि इसका इलाज पहले बिना सर्जरी के किया जाता था जिससे यह समस्‍या दूर नहीं हो पाती थी और आजीवन दिव्‍यांगता का डर रहता था. लेकिन अब इसका उपचार सर्जरी से किया जाना संभव है.

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