लखनऊ : प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरूस्त करने को लेकर डिप्टी सीएम व स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक लगातार अस्पतालों का औचक निरीक्षण कर रहे हैं. केजीएमयू में प्रदेश के अन्य जिलों से भी भारी संख्या में मरीज इलाज के लिए आते हैं, लेकिन कई मरीज अस्पताल की व्यवस्था से असंतुष्ट होकर घर वापस लौट जाते हैं तो वहीं कुछ प्राइवेट अस्पतालों का रुख कर लेते हैं. अस्पताल के बाहर लगातार दलाल सक्रिय रहते हैं जो मरीजों और तीमारदारों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं, उन्हें निजी अस्पताल ले जाते हैं. वहीं मरीजों का कहना है कि ऑनलाइन पंजीकरण के बावजूद लाइन में लगकर पर्चा बनवाना पड़ता है. ऐसी स्थिति में ऑनलाइन पंजीकरण का क्या अर्थ है?
सर्वर डाउन, दो घंटे परेशान रहे मरीज : केजीएमयू जांच काउंटर पर मरीज जब पर्चा बनवाने गए उस समय सर्वर डाउन रहा. जिसके बाद करीब दो घंटे तक मरीज परेशान रहे. जांच काउंटर के बाहर मरीज लाइन में खड़े रहे. पर्चा काउंटर पर महिला और पुरुष दोनों एक ही लाइन में खड़े थे. जिससे महिलाओं को काफी असहजता हो रही थी. बातचीत करने में पता चला कि पर्चा काउंटर के बाहर एक ही लाइन लगती है उसी में महिला और पुरुष दोनों का पर्चा बनता है.
मरीज ने बताई आप बीती : ओपीडी में दिखाने आए मरीजों ने बातचीत के दौरान बताया कि अस्पताल में काफी भीड़ रहती है. यहां कोई भी कर्मचारी कायदे से बात करने को तैयार नहीं होता है. ऐसे में मरीज व तीमारदार कहां जायें. मरीज के तीमारदार ने बताया कि ब्रेन के डॉक्टर को दिखाने आये हैं जो कि सिर्फ बुधवार को बैठते हैं. डॉक्टर से एक बार मिलने के बाद जांच रिपोर्ट लेकर पहुंचे तब तक डॉक्टर उठ चुके थे. उसने बताया कि अब वापस जाएंगे, फिर आएंगे.
पर्चा काउंटर पर लंबी लाइन : अस्पताल में रोजाना पांच हजार से ज्यादा मरीज इलाज के लिए आते हैं. सुबह छह बजे से ही पर्चा काउंटर पर भीड़ लगनी शुरू हो जाती है. घंटों बाद ओपीडी का पर्चा बन पाता है. ऐसे में हमने कुछ मरीजों से बातचीत की जिनका साफ तौर पर कहना है कि तीन से चार घंटे खड़े होकर पर्चा बनाने में लगता है. इसके बाद ओपीडी में घंटों समय लगता है. ऐसे में दूर-दराज से आए मरीजों को काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. ऑनलाइन पर्चा बनवाने के बावजूद लाइन में लगना पड़ रहा है.
अयोध्या से आये एक मरीज ने बताया कि यह सोचकर केजीएमयू आए थे कि उन्हें यहां पर अच्छा इलाज मिलेगा, लेकिन यहां पर कोई भी बताने या समझाने वाला नहीं है. कहां पर कौन सा विभाग है. ऐसे में अन्य जिले से आकर अनेकों मरीज इधर से उधर भटकते रहते हैं. हेल्पडेस्क बनी है, लेकिन वहां पर कर्मचारी ठीक से बताते नहीं हैं. मरीजों का कहना है कि बहुत सारे मरीज अस्पताल की दहलीज पर ही दम तोड़ देते हैं.
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इस पूरे मामले पर केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह का कहना है कि केजीएमयू प्रदेश का जाना माना मेडिकल कॉलेज है. प्रदेश के अन्य जिलों से भी मरीज यहां पर इलाज कराने के लिए आते हैं. ऐसे में बहुत सारे मरीजों को हर विभाग की जानकारी नहीं होती है तो इसलिए उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसके लिए हेल्पडेस्क बनाई गई है. केजीएमयू का सर्वर बंद नहीं होता है. कुछ तकनीकी दिक्कत की वजह से डाउन हो गया था, लेकिन कुछ समय बाद फिर से जांच काउंटर शुरू हो गया है. हमारी हमेशा कोशिश होती है कि जो मरीज अन्य जिलों से आए हैं उन्हें एक बेहतर चिकित्सा सुविधा मिले. किसी मरीज को ओपीडी में दिखाने में दिक्कत हो रही है और उसकी हालत गंभीर है तो वह केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर में जाकर डॉक्टर से परामर्श ले सकता है.
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