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स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए समितियां तो बनीं लेकिन रहीं सिर्फ दिखावे की !

स्कूली बच्चों के आवागमन से जुड़ी किसी भी जिले में तीन समितियां हैं. लखनऊ में भी जिला सड़क सुरक्षा समिति बनी है. इसके अध्यक्ष जिलाधिकारी हैं.

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Published : May 14, 2022, 9:25 PM IST

कार्यालय
कार्यालय

लखनऊ : स्कूल में बच्चों की सुरक्षा व वाहनों से सफर करने वाले बच्चे सुरक्षित घर पहुंचें, इसके लिए समितियां तो कई बनीं लेकिन किसी भी समिति की कोई बैठक एक बार भी नहीं हुई. लिहाजा, बच्चों की सुरक्षा के साथ यह सभी समितियां खिलवाड़ करती नजर आईं. जब कोई घटना होती है तो एक-दूसरे पर ही ठीकरा फोड़ा जाता है.

स्कूली बच्चों के आवागमन से जुड़ीं हर जिले में तीन समितियां होती हैं. लखनऊ में भी जिला सड़क सुरक्षा समिति बनी है. इसके अध्यक्ष जिलाधिकारी हैं जबकि पुलिस कमिश्नर, एसएसपी, एसपी, सीएमओ, डीआइओएस, बीएसए, आरटीओ प्रवर्तन, लोक निर्माण विभाग, एनएचएआइ व बीमा कंपनियों के प्रतिनिधि इस समिति के सदस्य होते हैं. नियम है कि साल में चार बार बैठकें होनी चाहिए. लेकिन चार बैठकें तो दूर साल में एक भी बैठक नहीं हुई. जिला सड़क सुरक्षा समिति के अलावा जिला विद्यालय यान परिवहन सुरक्षा समिति होती है.

संदीप पंकज, आरटीओ (प्रवर्तन) लखनऊ

इसमें सड़क सुरक्षा समिति के सदस्यों के अलावा स्कूल प्रबंधन, प्राचार्य होते हैं. कम से कम इस समिति की भी साल में दो बार बैठक होनी चाहिए. लेकिन कोई बैठक नहीं हुई. इसी तरह हर स्कूल पर एक विद्यालय परिवहन समिति का गठन होता है. इसके अध्यक्ष संबंधित संस्थान के प्राचार्य होते हैं. नजदीकी थाने का एसएचओ, बीएसए, डीआइओएस, नायब तहसीलदार भी सदस्य होते हैं. इनमें से एक नोडल प्रतिनिधि होता है. इनकी भी कभी कोई बैठक नहीं हुई. अब सवाल ये है कि ये समितियां आखिर बनीं तो किस बात के लिए बनीं जब बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई भी जिम्मेदार फिक्रमंद ही नहीं है.

परिवहन विभाग पर ही फूटता है ठीकरा : गाजियाबाद के दयावती मोदी पब्लिक स्कूल में पिछले दिनों एक बड़ी दर्दनाक दुर्घटना हुई थी. इसमें बस के बाहर बच्चे ने सिर निकाला और खंभे से टकराने से उसकी मौत हो गई. फिर से स्कूलों के साथ ही इन सभी विभागों के जिम्मेदारों पर सवालिया निशान लगे. आनन-फानन पूरे मामले पर पर्दा डालने का प्रयास शुरू हो गया. विभाग के जिम्मेदार एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने लगे. क्योंकि यह बस थी, लिहाजा सभी ने मिलकर परिवहन विभाग को ही जिम्मेदार ठहरा दिया. पूरी घटना के लिए ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के ही एआरटीओ और आरआई को सस्पेंड कर दिया गया जबकि इन सभी विभागों के अफसर भी बराबर के जिम्मेदार थे.

किसी पर कभी कोई गाज नहीं गिरी. अब परिवहन विभाग के अधिकारी भी इसे लेकर काफी खफा हैं. उनका साफ तौर पर कहना है कि जब बच्चों के आवागमन को लेकर सभी विभागों का दायित्व निर्धारित है तो फिर अकेले परिवहन विभाग के अधिकारी ही क्यों कार्रवाई का शिकार होते हैं. कभी भी किसी विभाग का अफसर बढ़कर बच्चों की सुरक्षा के लिए सामने क्यों नहीं आता है.

प्रबंधन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना भी टेढ़ी खीर : अभी हाल ही में शहर में स्कूली वाहनों की चेकिंग के दौरान परिवहन विभाग के अधिकारियों ने शहर के दो नामी गिरामी निजी स्कूलों के बसों को सुरक्षा मानकों का उल्लंघन करते हुए पकड़ा. प्रबंधन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का प्रयास किया गया. इसमें विभागीय अधिकारियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. जब परिवहन विभाग के अधिकारी नियमों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई करते हैं तो उन्हीं के सामने दिक्कतें खड़ी हो जाती हैं. अन्य विभाग इस मामले में आगे आते ही नहीं, इसीलिए बच्चों की सुरक्षा हर वक्त खतरे में ही रहती है. स्कूल में तो शिक्षा विभाग की भी पूरी जिम्मेदारी होती है लेकिन शिक्षा विभाग को कोई मतलब ही नहीं रहता.

ये भी पढ़ें : परिवहन निगम ने बदले बसों के रूट, अब पॉलिटेक्निक चौराहा की तरफ नहीं जाएंगी बसें

क्या कहते हैं आरटीओ : इस मामले पर लखनऊ के आरटीओ (प्रवर्तन) संदीप पंकज का साफ कहना है कि जब विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए बच्चे आते हैं तो शिक्षा विभाग को भी इस ओर पूरा ध्यान देना चाहिए. लेकिन शिक्षा विभाग पूरी लापरवाही दिखाता है. समितियों के साथ कभी बैठक ही नहीं की जाती है कि किस तरह से बच्चे स्कूल आ जा रहे हैं. प्रदेशभर में तमाम स्कूल फर्जी चल रहे हैं. उनमें कैसी स्थिति में स्कूल वाहन चल रहे हैं लेकिन जब ऐसे फर्जी स्कूलों का परिवहन विभाग को पता ही नहीं तो कार्रवाई कैसे की जाए. यह तो जिम्मेदारी सीधे तौर पर शिक्षा विभाग की होती है लेकिन शिक्षा विभाग बच्चों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है.

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लखनऊ : स्कूल में बच्चों की सुरक्षा व वाहनों से सफर करने वाले बच्चे सुरक्षित घर पहुंचें, इसके लिए समितियां तो कई बनीं लेकिन किसी भी समिति की कोई बैठक एक बार भी नहीं हुई. लिहाजा, बच्चों की सुरक्षा के साथ यह सभी समितियां खिलवाड़ करती नजर आईं. जब कोई घटना होती है तो एक-दूसरे पर ही ठीकरा फोड़ा जाता है.

स्कूली बच्चों के आवागमन से जुड़ीं हर जिले में तीन समितियां होती हैं. लखनऊ में भी जिला सड़क सुरक्षा समिति बनी है. इसके अध्यक्ष जिलाधिकारी हैं जबकि पुलिस कमिश्नर, एसएसपी, एसपी, सीएमओ, डीआइओएस, बीएसए, आरटीओ प्रवर्तन, लोक निर्माण विभाग, एनएचएआइ व बीमा कंपनियों के प्रतिनिधि इस समिति के सदस्य होते हैं. नियम है कि साल में चार बार बैठकें होनी चाहिए. लेकिन चार बैठकें तो दूर साल में एक भी बैठक नहीं हुई. जिला सड़क सुरक्षा समिति के अलावा जिला विद्यालय यान परिवहन सुरक्षा समिति होती है.

संदीप पंकज, आरटीओ (प्रवर्तन) लखनऊ

इसमें सड़क सुरक्षा समिति के सदस्यों के अलावा स्कूल प्रबंधन, प्राचार्य होते हैं. कम से कम इस समिति की भी साल में दो बार बैठक होनी चाहिए. लेकिन कोई बैठक नहीं हुई. इसी तरह हर स्कूल पर एक विद्यालय परिवहन समिति का गठन होता है. इसके अध्यक्ष संबंधित संस्थान के प्राचार्य होते हैं. नजदीकी थाने का एसएचओ, बीएसए, डीआइओएस, नायब तहसीलदार भी सदस्य होते हैं. इनमें से एक नोडल प्रतिनिधि होता है. इनकी भी कभी कोई बैठक नहीं हुई. अब सवाल ये है कि ये समितियां आखिर बनीं तो किस बात के लिए बनीं जब बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई भी जिम्मेदार फिक्रमंद ही नहीं है.

परिवहन विभाग पर ही फूटता है ठीकरा : गाजियाबाद के दयावती मोदी पब्लिक स्कूल में पिछले दिनों एक बड़ी दर्दनाक दुर्घटना हुई थी. इसमें बस के बाहर बच्चे ने सिर निकाला और खंभे से टकराने से उसकी मौत हो गई. फिर से स्कूलों के साथ ही इन सभी विभागों के जिम्मेदारों पर सवालिया निशान लगे. आनन-फानन पूरे मामले पर पर्दा डालने का प्रयास शुरू हो गया. विभाग के जिम्मेदार एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने लगे. क्योंकि यह बस थी, लिहाजा सभी ने मिलकर परिवहन विभाग को ही जिम्मेदार ठहरा दिया. पूरी घटना के लिए ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के ही एआरटीओ और आरआई को सस्पेंड कर दिया गया जबकि इन सभी विभागों के अफसर भी बराबर के जिम्मेदार थे.

किसी पर कभी कोई गाज नहीं गिरी. अब परिवहन विभाग के अधिकारी भी इसे लेकर काफी खफा हैं. उनका साफ तौर पर कहना है कि जब बच्चों के आवागमन को लेकर सभी विभागों का दायित्व निर्धारित है तो फिर अकेले परिवहन विभाग के अधिकारी ही क्यों कार्रवाई का शिकार होते हैं. कभी भी किसी विभाग का अफसर बढ़कर बच्चों की सुरक्षा के लिए सामने क्यों नहीं आता है.

प्रबंधन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना भी टेढ़ी खीर : अभी हाल ही में शहर में स्कूली वाहनों की चेकिंग के दौरान परिवहन विभाग के अधिकारियों ने शहर के दो नामी गिरामी निजी स्कूलों के बसों को सुरक्षा मानकों का उल्लंघन करते हुए पकड़ा. प्रबंधन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का प्रयास किया गया. इसमें विभागीय अधिकारियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. जब परिवहन विभाग के अधिकारी नियमों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई करते हैं तो उन्हीं के सामने दिक्कतें खड़ी हो जाती हैं. अन्य विभाग इस मामले में आगे आते ही नहीं, इसीलिए बच्चों की सुरक्षा हर वक्त खतरे में ही रहती है. स्कूल में तो शिक्षा विभाग की भी पूरी जिम्मेदारी होती है लेकिन शिक्षा विभाग को कोई मतलब ही नहीं रहता.

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क्या कहते हैं आरटीओ : इस मामले पर लखनऊ के आरटीओ (प्रवर्तन) संदीप पंकज का साफ कहना है कि जब विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए बच्चे आते हैं तो शिक्षा विभाग को भी इस ओर पूरा ध्यान देना चाहिए. लेकिन शिक्षा विभाग पूरी लापरवाही दिखाता है. समितियों के साथ कभी बैठक ही नहीं की जाती है कि किस तरह से बच्चे स्कूल आ जा रहे हैं. प्रदेशभर में तमाम स्कूल फर्जी चल रहे हैं. उनमें कैसी स्थिति में स्कूल वाहन चल रहे हैं लेकिन जब ऐसे फर्जी स्कूलों का परिवहन विभाग को पता ही नहीं तो कार्रवाई कैसे की जाए. यह तो जिम्मेदारी सीधे तौर पर शिक्षा विभाग की होती है लेकिन शिक्षा विभाग बच्चों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है.

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