लखनऊ : उत्तर प्रदेश के डिग्री कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले करीब पांच लाख स्टूडेंट कम हो गए हैं. उच्च शिक्षा विभाग के आंकड़ों में यह स्थिति सामने आई है. आंकड़े वर्ष 2021-22 के हैं. उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह गिरावट कोरोना संक्रमण के चलते देखने को मिली है, लेकिन विशेषज्ञ इसके कई और कारण भी बता रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि महंगी उच्च शिक्षा और गिरती गुणवत्ता के कारण स्टूडेंट दूसरे राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं.
यह है आंकड़ों में स्थिति : उच्च शिक्षा निदेशालय की ओर से प्रदेश के 51 राज्य विश्वविद्यालयों और 7875 महाविद्यालयों की रिपोर्ट जारी की गई है. 2020-21 सत्र में प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्थानों में कुल 50,21,277 विद्यार्थी पंजीकृत थे. जबकि 2021-22 में यह संख्या सिमटकर 45,40,605 हो गई. करीब 4.80 लाख विद्यार्थी कम हो गए हैं.
सरकार की नीतियों पर उठाया सवाल : लखनऊ विश्वविद्यालय सहयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडे का कहना है कि सरकार की गलत नीतियों के चलते स्टूडेंट्स को खामियाजा भुगतना पड़ा. विशेषज्ञ डॉ. आरपी मिश्रा का कहना है कि सेल्फ फाइनेंस पाठ्यक्रमों की संख्या बढ़ने से एक और जहां प्रदेश में उच्च शिक्षा महंगी हो गई है, वहीं संसाधन के अभाव में गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है. इसका नतीजा है कि बच्चे दूसरे राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं.
विशेषज्ञों ने यह तर्क दिए : कोरोना संक्रमण के दौर में पूरे विश्व में लोग परेशान थे. लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं. लोगों के लिए खाने तक के लाले पड़ गए. इन हालातों में भी प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों को इसमें कोई राहत नहीं दी गई. बिना परीक्षा कराकर नतीजे जारी किए, लेकिन बच्चों से पूरा-पूरा शुल्क वसूला गया. लुआक्टा की तरफ से कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय को इस संबंध में पत्र भी लिखा गया था. उनका कहना है कि बीते कुछ वर्षों में हमारे विश्वविद्यालय व्यवसायिक केंद्र बन गए हैं. सरकारों से भी सपोर्ट नहीं मिल रहा है.
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इसके साथ-साथ तकनीकी शिक्षा की तरफ छात्र ज्यादा बढ़ रहे हैं. फीस महंगी होने और संसाधन ना बढ़ने के कारण बड़ी संख्या में छात्र दूसरे राज्यों की ओर भी रुख कर रहे हैं. प्राइवेट विश्वविद्यालयों की संख्या काफी बड़ी है. फीस लगभग बराबर है. इसलिए स्टूडेंट प्राइवेट यूनिवर्सिटीज की तरफ रुख कर रहे हैं.
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