गोरखपुरः देश और प्रदेश में कुपोषण को दूर भगाने के लिए खूब अभियान भी चल रहा है. प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल मिलकर इसकी शुरुआत करते हैं. बाल विकास परियोजना विभाग से लेकर सभी को इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने को कहा गया है. लेकिन प्रदेश में कुपोषण दूर होने का नाम नहीं ले रहा है. बात अगर सिर्फ गोरखपुर जिले की करें, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जिला है. यहां करीब 60 हजार कुपोषित बच्चों का आकंड़ा दर्ज है, जो पोषण को लेकर चलाये जा रहे अभियान पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
भारी बारिश और कोरोना जैसे माहौल में बंद चल रहे आंगनवाड़ी सेंटर की योजनाओं को बच्चों के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की रही है. जिसकी निगरानी विभाग के जिम्मेदार अधिकारी करते हैं. लेकिन आंकड़ा सुधरने का नाम नहीं ले रहा है.
सितंबर का महीना पूरे प्रदेश में पोषण महीने के रूप में चलाया गया. राज्यपाल, मुख्यमंत्री ने 7 सितंबर को इसकी शुरुआत किया था. जिसके तहत पूरे महीने में कई तरह के पोषण से जुड़े कार्यक्रम चलाए गए. लेकिन पिछली जो खामियां रही हैं, उसकी वजह से कुपोषित बच्चों का आंकड़ा बढ़ा है. जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत सिंह के मुताबिक जिले में अति कुपोषित बच्चों की संख्या 7400 है. कुपोषित बच्चों की संख्या 54 हजार से ज्यादा है. इसी प्रकार तीव्र कुपोषित बच्चों की संख्या 5,589 है, तो अति तीव्र कुपोषित बच्चे 1,014 हैं. 35 से 37 फीसदी बच्चे कम वजन वाले हैं. (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-चार) के अनुसार यह बच्चे 5 वर्ष से कम उम्र के हैं. 6 माह से 5 वर्ष तक के बच्चों में हीमोग्लोबिन की मात्रा भी कम मिली है.
कुपोषण के लक्षण की बात करें तो उम्र के हिसाब से शारीरिक विकास का न होना, हमेशा थकान महसूस करना, कमजोरी लगना, अक्सर बीमार रहना और खाने-पीने में रुचि न पैदा करना शामिल है. यहीं वजह है कि कुपोषण के लिए जन्म के 2 घंटे बाद ही मां के दूध को बच्चों को पिलाना अनिवार्य बताया जा रहा है. 6 महीने तक सिर्फ मां का दूध ही देना जरूरी है.
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विटामिन ए, आयरन, आयोडीन, जिंक का सेवन बच्चों के लिए जरूरी है. जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत सिंह कहते हैं कि अभियान चलाकर गांव में साफ-सफाई, स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. इसके साथ ही पोषण की जानकारी से भी माताओं को अवगत कराया जाएगा. अति कुपोषित बच्चे के परिवार को मिल रहे राशन का डबल डोज उन्हें उपलब्ध कराया जाएगा. जिले में 6 महीने से 5 साल के बच्चों में 60 फीसदी एनीमिया के लक्षण पाए गए हैं. गर्भवती महिलाएं भी 52 फीसदी एनीमिया की कमी से जूझ रही हैं. जिनकी देखभाल और चिकित्सीय परामर्श की भी व्यवस्था बाल विकास विभाग कराता है, जिसमें और तेजी लाएगा.