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निकाय चुनाव से पहले ही गोरखपुर नगर निगम बना राजनीति का अखाड़ा, जानिये क्यों हो रहा विरोध

इस बार परिसीमन की वजह से वार्ड की संख्या 70 से बढ़कर 80 हो गई है. पुराने और नए वार्ड की संख्या करीब चालीस है. इनके नाम विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक हस्तियों के नाम पर किए जाने को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है.

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Published : Sep 6, 2022, 3:58 PM IST

गोरखपुर : प्रदेश में नगर निकाय चुनाव (municipal elections) को लेकर चल रही तैयारियों के बीच गोरखपुर नगर निगम चुनाव (Gorakhpur Municipal Corporation Election) से पहले ही राजनीति का अखाड़ा बन गया है. इस बार परिसीमन की वजह से वार्ड की संख्या 70 से बढ़कर 80 हो गई है. पुराने और नए वार्ड जिनकी संख्या करीब चालीस है. इनके नाम विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक हस्तियों के नाम पर किए जाने को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है. समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया है.

इन दलों के नेताओं का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) की सरकार अपने एजेंडे के अनुरूप देश की राजनीति चलाना चाहती है. जिसमें उसका साथ अधिकारी भी दे रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि वार्ड के नामों की फिर से समीक्षा की जाए. जिन लोगों ने गोरखपुर के विकास में, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में बड़ा काम किया है उनके नाम पर भी वार्ड के नाम बनाया रखे जाए.नाम के साथ-साथ नगर निगम में विरोध और राजनीति का दौर शुरू हो गया है. जो 10 नए वार्ड बनाए गए हैं वह नगर निगम की सीमा में शामिल 32 गांवों को शामिल करने के बाद बने हैं.

गोरखपुर नगर निगम
गोरखपुर नगर निगम
गोरखपुर नगर निगम
गोरखपुर नगर निगम

नई व्यवस्था के तहत जिन 40 वार्ड का नाम बदल दिया गया है उनमें पुर्दिलपुर का नाम विजय चौक, जन प्रिय बिहार का नाम दिग्विजय नाथ, मुफ्तीपुर वार्ड का घंटाघर और घोसीपुरवा का नाम राम प्रसाद बिस्मिल कर दिया गया है. इसी प्रकार जंगल तुलसीराम पूर्वी का नाम शहीद शिव सिंह क्षेत्री के नाम से रखा गया है. शेखपुर वार्ड गीता प्रेस के नाम से जाना जाएगा तो रेलवे कॉलोनी वार्ड का वजूद खत्म कर इसे मैत्रीपुरम नाम दिया गया है. राप्ती नदी के तट से जुड़े हुए नौसढ़ वार्ड का नाम मत्सेन्द्र नगर कर दिया गया है, जबकि मोहद्दीपुर में सिख समुदाय की अधिक आबादी को देखते हुए इसका नाम भगत सिंह वार्ड कर दिया गया है. तुर्कमानपुर का नाम अब शहीद अशफाक उल्ला नगर तो वहीं जटेपुर का नाम विश्वकर्मा पुरमकर दिया गया है. महेवा वार्ड को कान्हा उपवन नगर तो रसूलपुर वार्ड को अब महाराणा प्रताप वार्ड के नाम से जाना जाएगा.

समाजवादी पार्टी के नेताओं ने मुस्लिम बाहुल्य इलाकों के नाम समेत तमाम उन वार्ड पर उंगली उठाई है जिनका नामकरण सही नहीं किया गया है. नगर निगम में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व उपसभापति जियाउल इस्लाम ने कहा है कि नामकरण के साथ पूरी तरह से राजनीति हुई है. गोरखपुर का क्षेत्र जो प्रदेश को वीर बहादुर सिंह के रूप में मुख्यमंत्री देता है, साथ ही बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, महान समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, सरदार अली खां समेत समीक्षा की जाए तो कई राजनीतिक और सामाजिक हस्ती ऐसे हैं जिनके नाम पर भी वार्ड बनाए जाने चाहिए थे, लेकिन इसकी घोर उपेक्षा की गई है. उन्होंने एक पत्र नगर आयुक्त को सौंपते हुए इसमें बदलाव की मांग की है. उन्होंने कहा कि ऐसा न होने पर नगर निगम को समाजवादी लोगों के साथ जनता का भी कड़ा विरोध झेलना पड़ेगा.

यह भी पढ़ें : बीजेपी की बड़ी नेता की पैरोकारी से बचे चारबाग के अवैध होटल कारोबारी, अब हर तरफ मौत के सरायघर

वहीं नगर आयुक्त अविनाश सिंह ने इस मामले में कहा कि जनता के सुझाव के आधार पर ही वार्ड के नाम तय कर शासन को भेजे गए, जिसकी अनुमति जारी हुई है. फिर भी जिन्हें भी इसको लेकर आपत्ति है एक सप्ताह में अपनी आपत्ति दर्ज करा दें. उसके बाद जो भी संभव कार्रवाई होगी वह की जाएगी.
यह भी पढ़ें : KGMU लखनऊ की चिकित्सा व्यवस्था ठप, कर्मचारियों ने ओपीडी में जड़ा ताला

गोरखपुर : प्रदेश में नगर निकाय चुनाव (municipal elections) को लेकर चल रही तैयारियों के बीच गोरखपुर नगर निगम चुनाव (Gorakhpur Municipal Corporation Election) से पहले ही राजनीति का अखाड़ा बन गया है. इस बार परिसीमन की वजह से वार्ड की संख्या 70 से बढ़कर 80 हो गई है. पुराने और नए वार्ड जिनकी संख्या करीब चालीस है. इनके नाम विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक हस्तियों के नाम पर किए जाने को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है. समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया है.

इन दलों के नेताओं का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) की सरकार अपने एजेंडे के अनुरूप देश की राजनीति चलाना चाहती है. जिसमें उसका साथ अधिकारी भी दे रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि वार्ड के नामों की फिर से समीक्षा की जाए. जिन लोगों ने गोरखपुर के विकास में, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में बड़ा काम किया है उनके नाम पर भी वार्ड के नाम बनाया रखे जाए.नाम के साथ-साथ नगर निगम में विरोध और राजनीति का दौर शुरू हो गया है. जो 10 नए वार्ड बनाए गए हैं वह नगर निगम की सीमा में शामिल 32 गांवों को शामिल करने के बाद बने हैं.

गोरखपुर नगर निगम
गोरखपुर नगर निगम
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गोरखपुर नगर निगम

नई व्यवस्था के तहत जिन 40 वार्ड का नाम बदल दिया गया है उनमें पुर्दिलपुर का नाम विजय चौक, जन प्रिय बिहार का नाम दिग्विजय नाथ, मुफ्तीपुर वार्ड का घंटाघर और घोसीपुरवा का नाम राम प्रसाद बिस्मिल कर दिया गया है. इसी प्रकार जंगल तुलसीराम पूर्वी का नाम शहीद शिव सिंह क्षेत्री के नाम से रखा गया है. शेखपुर वार्ड गीता प्रेस के नाम से जाना जाएगा तो रेलवे कॉलोनी वार्ड का वजूद खत्म कर इसे मैत्रीपुरम नाम दिया गया है. राप्ती नदी के तट से जुड़े हुए नौसढ़ वार्ड का नाम मत्सेन्द्र नगर कर दिया गया है, जबकि मोहद्दीपुर में सिख समुदाय की अधिक आबादी को देखते हुए इसका नाम भगत सिंह वार्ड कर दिया गया है. तुर्कमानपुर का नाम अब शहीद अशफाक उल्ला नगर तो वहीं जटेपुर का नाम विश्वकर्मा पुरमकर दिया गया है. महेवा वार्ड को कान्हा उपवन नगर तो रसूलपुर वार्ड को अब महाराणा प्रताप वार्ड के नाम से जाना जाएगा.

समाजवादी पार्टी के नेताओं ने मुस्लिम बाहुल्य इलाकों के नाम समेत तमाम उन वार्ड पर उंगली उठाई है जिनका नामकरण सही नहीं किया गया है. नगर निगम में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व उपसभापति जियाउल इस्लाम ने कहा है कि नामकरण के साथ पूरी तरह से राजनीति हुई है. गोरखपुर का क्षेत्र जो प्रदेश को वीर बहादुर सिंह के रूप में मुख्यमंत्री देता है, साथ ही बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, महान समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, सरदार अली खां समेत समीक्षा की जाए तो कई राजनीतिक और सामाजिक हस्ती ऐसे हैं जिनके नाम पर भी वार्ड बनाए जाने चाहिए थे, लेकिन इसकी घोर उपेक्षा की गई है. उन्होंने एक पत्र नगर आयुक्त को सौंपते हुए इसमें बदलाव की मांग की है. उन्होंने कहा कि ऐसा न होने पर नगर निगम को समाजवादी लोगों के साथ जनता का भी कड़ा विरोध झेलना पड़ेगा.

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वहीं नगर आयुक्त अविनाश सिंह ने इस मामले में कहा कि जनता के सुझाव के आधार पर ही वार्ड के नाम तय कर शासन को भेजे गए, जिसकी अनुमति जारी हुई है. फिर भी जिन्हें भी इसको लेकर आपत्ति है एक सप्ताह में अपनी आपत्ति दर्ज करा दें. उसके बाद जो भी संभव कार्रवाई होगी वह की जाएगी.
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