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मिक्सी ने मिस कर दिया सिल-बट्टे के मसालों का स्वाद, कारीगारों का छिना रोजगार

आधुनिक तकनीकी के कारण करीगरों की रोजी-रोटी पर काफी असर पड़ रहा है. आजकल लोगों के पास समय की कमी है. इसलिए अब मसाला और चटनी पीसने के लिए मिक्सी आदि का इस्तेमाल घरों में होता है, जिससे सिल बट्टा का कारोबार करने वाले कारीगरों की रोजी-रोटी पर खासा असर पड़ रहा है.

सिल बट्टा का कारीगर
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Published : Feb 4, 2019, 11:54 PM IST

फर्रुखाबाद : पुराने समय में खाना पकाने के लिए मसाले पीसने के लिए ओखली, मूसल और सिल बट्टा का इस्तेमाल किया जाता था. बेशक इन मसालों को पीसने में मेहनत और समय दोनों खर्च होते थे, लेकिन खाने का जो स्वाद था, वह अब खाने की थाली से गायब सा हो गया है. पहले लोग सिल बट्टा खरीदते थे, लेकिन आधुनिक तकनीकी में मिक्सी आ जाने से पुरानी सभ्यता खत्म होती जा रही है.

सिल बट्टा का कारोबार करता कारीगर.
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आजकल लोगों के पास समय की कमी है. इसलिए अब मसाला और चटनी पीसने के लिए मिक्सी आदि का इस्तेमाल घरों में होता है, जिससे सिल बट्टा का कारोबार करने वाले कारीगरों की रोजी-रोटी पर खासा असर पड़ रहा है. एक जमाने में मेला रामनगरिया से लोग सिल बट्टा लेने के लिए साल भर का इंतजार करते थे. लेकिन आज इस कारोबार को जंग सी लग गई है. साथ ही आम आदमी की रसोई से सिलबट्टा से पीसे गए मसालों और चटनी का स्वाद गायब हो गया है.


सील बट्टा की जगह ली मिक्सी ने


मेला रामनगरिया में दूरदराज से लोग आते हैं. मेले में दुकान लगाने वाले कारोबारी अपनी दुकानें भी सजाए हुए हैं. उनमें से आधा दर्जन दुकाने सील बट्टा बनाने वालों की है, जो पत्थर को काट कर उसे सील का रूप दे रहे हैं. यह कारोबारी बीते कई दशकों से सिल बट्टा की दुकानें लगाकर कारोबार करते आ रहे हैं, लेकिन आज उनके सामने निराशा है. घरों की रसोई घर से सील बट्टा की जगह मिक्सी ने ले ली है. कुछ मिनटों में ही सब्जी के लिए मसाला एक बटन दबाकर पीसा जाता है.

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ग्रामीण अभी भी कर रहे सिल बट्टे का प्रयोग


रामनगरिया में सिल बट्टा की दुकान लगाने आये अमित कुमार ने बताया कि उसका पुश्तैनी कारोबार ही यह है. इस समय सील सफेद या लाल पत्थर की 150 से 200 रुपये में और बड़ी सील 400 से 500 रुपये में उपलब्ध है. अमित ने बताया कि पिछले वर्षों में कारोबार में भारी गिरावट आई है. ग्राहकों की संख्या और सील के प्रति रुचि घटती जा रही है. महिलाएं मसाला पीसने में रुचि नहीं रखती है, जिस कारण बिक्री कम हो गई है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में तो हमें सिल बट्टे का प्रयोग अभी भी हो रहा है, लेकिन शहरी क्षेत्र में अधिकतर जगह मिक्सी ने ले ली है.


रामनगरिया में सिलबट्टा बना रहा है कारोबारी कुलदीप ने बताया कि आगरा और इलाहाबाद से वह सिल खरीदते हैं, लेकिन सरकार इस विलुप्त होते कारोबार पर भी 15% जीएसटी चार्ज करती है, जिसे कारीगर काफी आहत है.

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पहले लोग मसालों को पीसने के लिए मिक्सी का उपयोग नहीं करते थे, बल्कि वो मसाले पीसने के लिए ओखली, मूसल या सिल बट्टा का प्रयोग करते थे. बेशक उस समय मसाला पीसने में मेहनत और समय दोनों ही बहुत अधिक लगता था, लेकिन उस समय जो स्वाद आता था, वह आज के खाने की थाली से गायब सा हो गया है.


इसका कारण यह है कि आज कम सिलबट्टा का उपयोग नहीं बल्कि मिक्सर को मसाले पीसने के लिए उपयोग में लाते हैं. इससे मसाले झटपट पीस तो जाते हैं, लेकिन मसालों का स्वाद खत्म होता जा रहा है. सिलबट्टा खरीदने आई रानी ने बताया कि जब उन्हें जल्दी होती है. तब हम मिक्सी का उपयोग करते हैं.वरना वह सिलबट्टी में ही मसाला और चटनी पिसती हैं. क्योंकि उसका स्वाद का अलग ही अंदाज होता है.

फर्रुखाबाद : पुराने समय में खाना पकाने के लिए मसाले पीसने के लिए ओखली, मूसल और सिल बट्टा का इस्तेमाल किया जाता था. बेशक इन मसालों को पीसने में मेहनत और समय दोनों खर्च होते थे, लेकिन खाने का जो स्वाद था, वह अब खाने की थाली से गायब सा हो गया है. पहले लोग सिल बट्टा खरीदते थे, लेकिन आधुनिक तकनीकी में मिक्सी आ जाने से पुरानी सभ्यता खत्म होती जा रही है.

सिल बट्टा का कारोबार करता कारीगर.
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आजकल लोगों के पास समय की कमी है. इसलिए अब मसाला और चटनी पीसने के लिए मिक्सी आदि का इस्तेमाल घरों में होता है, जिससे सिल बट्टा का कारोबार करने वाले कारीगरों की रोजी-रोटी पर खासा असर पड़ रहा है. एक जमाने में मेला रामनगरिया से लोग सिल बट्टा लेने के लिए साल भर का इंतजार करते थे. लेकिन आज इस कारोबार को जंग सी लग गई है. साथ ही आम आदमी की रसोई से सिलबट्टा से पीसे गए मसालों और चटनी का स्वाद गायब हो गया है.


सील बट्टा की जगह ली मिक्सी ने


मेला रामनगरिया में दूरदराज से लोग आते हैं. मेले में दुकान लगाने वाले कारोबारी अपनी दुकानें भी सजाए हुए हैं. उनमें से आधा दर्जन दुकाने सील बट्टा बनाने वालों की है, जो पत्थर को काट कर उसे सील का रूप दे रहे हैं. यह कारोबारी बीते कई दशकों से सिल बट्टा की दुकानें लगाकर कारोबार करते आ रहे हैं, लेकिन आज उनके सामने निराशा है. घरों की रसोई घर से सील बट्टा की जगह मिक्सी ने ले ली है. कुछ मिनटों में ही सब्जी के लिए मसाला एक बटन दबाकर पीसा जाता है.

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ग्रामीण अभी भी कर रहे सिल बट्टे का प्रयोग


रामनगरिया में सिल बट्टा की दुकान लगाने आये अमित कुमार ने बताया कि उसका पुश्तैनी कारोबार ही यह है. इस समय सील सफेद या लाल पत्थर की 150 से 200 रुपये में और बड़ी सील 400 से 500 रुपये में उपलब्ध है. अमित ने बताया कि पिछले वर्षों में कारोबार में भारी गिरावट आई है. ग्राहकों की संख्या और सील के प्रति रुचि घटती जा रही है. महिलाएं मसाला पीसने में रुचि नहीं रखती है, जिस कारण बिक्री कम हो गई है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में तो हमें सिल बट्टे का प्रयोग अभी भी हो रहा है, लेकिन शहरी क्षेत्र में अधिकतर जगह मिक्सी ने ले ली है.


रामनगरिया में सिलबट्टा बना रहा है कारोबारी कुलदीप ने बताया कि आगरा और इलाहाबाद से वह सिल खरीदते हैं, लेकिन सरकार इस विलुप्त होते कारोबार पर भी 15% जीएसटी चार्ज करती है, जिसे कारीगर काफी आहत है.

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पहले लोग मसालों को पीसने के लिए मिक्सी का उपयोग नहीं करते थे, बल्कि वो मसाले पीसने के लिए ओखली, मूसल या सिल बट्टा का प्रयोग करते थे. बेशक उस समय मसाला पीसने में मेहनत और समय दोनों ही बहुत अधिक लगता था, लेकिन उस समय जो स्वाद आता था, वह आज के खाने की थाली से गायब सा हो गया है.


इसका कारण यह है कि आज कम सिलबट्टा का उपयोग नहीं बल्कि मिक्सर को मसाले पीसने के लिए उपयोग में लाते हैं. इससे मसाले झटपट पीस तो जाते हैं, लेकिन मसालों का स्वाद खत्म होता जा रहा है. सिलबट्टा खरीदने आई रानी ने बताया कि जब उन्हें जल्दी होती है. तब हम मिक्सी का उपयोग करते हैं.वरना वह सिलबट्टी में ही मसाला और चटनी पिसती हैं. क्योंकि उसका स्वाद का अलग ही अंदाज होता है.

Intro:एंकर- पुराने समय में खाना पकाने के लिए मसाले पीसने के लिए ओखली, मूसल और सिल बट्टा का इस्तेमाल किया जाता था. बेशक इन मसलो को पीसने में मेहनत और समय दोनों खर्च होते थे, लेकिन खाने का जो स्वाद था, वह अब खाने की थाली से गायब सा हो गया है.


Body:विओ- आजकल लोगों के पास समय की कमी है. इसलिए अब मसाला और चटनी पीसने के लिए मिक्सी आदि का इस्तेमाल घरों में होता है, जिससे सिल बट्टा का कारोबार करने वाले कारीगरों की रोजी-रोटी पर खासा असर पड़ रहा है. एक जमाने मैं मेला रामनगरिया से लोग सिल बट्टा लेने के लिए साल भर का इंतजार करते थे. लेकिन आज इस कारोबार को जंग सी लग गई है. साथ ही आम आदमी की रसोई से सिलबट्टा से पीसे गए मसालों और चटनी का स्वाद गायब हो गया है. मेला रामनगरिया में दूरदराज से लोग आते हैं. मेले में दुकान लगाने वाले कारोबारी अपनी दुकानें भी सजाए हुए हैं.उनमें से आधा दर्जन दुकाने सील बट्टा बनाने वालों की है, जो पत्थर को काट कर उसे सील का रूप दे रहे हैं. यह कारोबारी बीते कई दशकों से सिल बट्टा की दुकानें लगाकर कारोबार करते आ रहे हैं, लेकिन आज उनके सामने निराशा है. घरों की रसोई घर से सील बट्टा की जगह मिक्सी ने ले ली है. कुछ मिनटों में ही सब्जी के लिए मसाला एक बटन दबाकर भी जा जा सकता है. रामनगरिया में सिल बट्टा की दुकान लगाने आये अमित कुमार ने बताया कि उसका पुश्तैनी कारोबार ही यह है. इस समय सील सफेद या लाल पत्थर की 150 से 200 रुपए में तथा बड़ी सील 400 से 500 रुपये में उपलब्ध है. अमित ने बताया कि पिछले वर्षों में कारोबार में भारी गिरावट आई है. ग्राहकों की संख्या और सील के प्रति रुचि घटती जा रही है. महिलाएं मसाला पीसने में रुचि नहीं रखती है, जिस कारण बिक्री कम हो गई है.हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में तो हमें सिल बट्टे का प्रयोग अभी भी हो रहा है, लेकिन शहरी क्षेत्र में अधिकतर जगह मिक्सी ने ले ली है. रामनगरिया में सिलबट्टा बना रहा है कारोबारी कुलदीप ने बताया कि आगरा और इलाहाबाद से वह सिल खरीदते हैं, लेकिन सरकार इस विलुप्त होते कारोबार पर भी 15% जीएसटी चार्ज करती है, जिसे कारीगर काफी आहत है


Conclusion:विओ- पहले लोग मसालों को पीसने के लिए मिक्सी का उपयोग नहीं करते थे, बल्कि वो मसाले पीसने के लिए ओखली, मूसल या सिल बट्टा का प्रयोग करते थे. बेशक उस समय मसाला पीसने में मेहनत और समय दोनों ही बहुत अधिक लगता था, लेकिन उस समय जो स्वाद आता था, वह आज के खाने की थाली से गायब सा हो गया है. इसका कारण यह है कि आज कम सिलबट्टा का उपयोग नहीं बल्कि मिक्सर को मसाले पीसने के लिए उपयोग में लाते हैं. इससे मसाले झटपट पीस तो जाते हैं, लेकिन मसालो का स्वाद खत्म होता जा रहा है. सिलबट्टा खरीदने आई रानी ने बताया कि जब उन्हें जल्दी होती है. तब हम मिक्सी का उपयोग करते हैं.वरना वह सिलबट्टी में ही मसाला और चटनी पिसती हैं. क्योंकि उसका स्वाद का अलग ही अंदाज होता है.
बाइट-रानी, महिला
बाइट-कुलदीप,दुकानदार

रमन मिश्रा
फर्रुखाबाद
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