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अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: मध्यस्थता का दिया आदेश, पैनल गठित - श्रीराम पंचू

अयोध्या विवाद: रामलला विराजमान और अन्य हिन्दूवादी संगठन मध्यस्थता का विरोध कर रहे हैं. वहीं मुस्लिम संगठनों ने इसका समर्थन किया है.

अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
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Published : Mar 8, 2019, 2:10 PM IST

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. अब यह साफ हो गया है कि मध्यस्थता के जरिए ही राम जन्मभूमि विवाद का समाधान किया जाएगा. इसके लिए पैनल गठित कर लिया गया है, जिसमें पूर्व जस्टिस कलीफुल्ला, श्रीश्री रविशंकर और श्रीराम पंचू हैं. एफएम कलीफुल्ला पैनल के मुखिया होंगे. यह पैनल 8 हफ्तों में रिपोर्ट सौंपेगा...
इससे पहले भी कई बार मध्यस्थता के जरिए राम जन्मभूमि विवाद को सुलझाने की कोशिश की गई है, लेकिन सारी कोशिशें सिर्फ कोशिशें ही रह गईं... लेकिन इस बार इस बात का सबको इंतजार है कि राम जन्मभूमि विवाद आपसी सहमति से सुलझ पाता है या फिर नतीजा हर बार की तरह सिफर ही रह जाता है...

etv bharat
अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला


जानिए कौन-कौन हैं पैनल में शामिल
अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन मध्यस्थों के नाम तय कर दिए हैं. इनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला, आर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख श्रीश्री रविशंकर और सीनियर अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल हैं. तीन सदस्यों के इस पैनल के सामने दोनों पक्षकार अपनी बात रखेंगे और ये मध्यस्थता फैजाबाद में होगी.

फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थता के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला होंगे, जबकि श्रीश्री रविशंकर और श्रीराम पंचू इसके सदस्य होंगे. इस कमेटी के सामने हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षकार अपनी बातें रखेंगे. इसके बाद यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेगी.पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला मूल रूप से तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी के रहने वाले हैं. वह श्रम कानून से संबंधित मामलों में सक्रिय वकील रहे थे. कलीफुल्ला को पहले मद्रास हाईकोर्ट में स्थाई न्यायाधीश नियुक्त थे. इसके बाद वो जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे. उन्हें 2000 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के तौर नियुक्ति के बाद 2011 में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया.

श्रीश्री रविशंकर
आर्ट्स ऑफ लिविंग के प्रमुख श्रीश्री रविशंकर देश के प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं. इससे पहले भी उन्होंने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कोशिश की थी और पक्षकारों से मुलाकात भी की थी. हालांकि, श्रीश्री रविशंकर का नाम जैसे ही मध्यस्थ के रूप में सामने आया तो कई पक्षों और बड़े साधु-संतों ने उनका विरोध भी किया.

श्रीराम पंचू
श्रीराम पंचू अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए बनी कमेटी के तीसरे सदस्य हैं. उन्होंने मध्यस्थता कर केस सुलझाने के लिए द मीडिएशन चैंबर नाम की एक कानूनी संस्था भी गठित की है, जिसका काम आपसी सुलह के जरिए कोर्ट से बाहर मुद्दों को सुलझाना है. श्रीराम पंचू एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर्स के अध्यक्ष हैं. भारत की न्याय व्यवस्था में मध्यस्थता को शामिल करने में उनका अहम योगदान रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम पंचू को विशिष्ट मध्यस्थ और देश के सबसे पुराने मध्यस्थों में से एक बताया है. श्रीराम पंचू देश के कई जटिल और वीवीआईपी मामलों में मध्यस्थता कर चुके हैं.

असम और नागालैंड के बीच 500 किलोमीटर भू-भाग का मामला सुलझाने के लिए उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया गया था. इसके अलावा बंबई में पारसी समुदाय के मामले का निपटारा करने में भी वह मध्यस्थ रह चुके हैं.

फैसले पर किसने क्या क्या कहा:


स्वामी चक्रपाणि ने किया फैसले का स्वागत
स्वामी चक्रपाणि ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि वो फैसले का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो भी फैसला दिया है वह सही है.

इकबाल अंसारी
अंसारी ने कहा, 'मध्यस्थता से मंदिर-मस्जिद के विवाद को हल करना सबसे बेहतर रास्ता है. उन्होंने कहा कि कोर्ट हमें बुलाएगी तो हम जरूर जाएंगे. उन्होंने कहा कि हिन्दू महासभा और रामलला के पक्षकार पहले ही सुलह से इनकार कर चुके हैं. दोनों पक्षों को कोर्ट की पहल को मानना चाहिए.

जफरयाब जिलानी
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के राष्ट्रीय चेयरमैन तथा सेक्रेट्री पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता जफरयाब जिलानी ने सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता के आदेश पर स्वागत करते हुए कहा है कि वह पूरी तरीके से इसमें कॉर्पोरेट करेंगे. अभी कहा कि पहले हाई कोर्ट ने लोगों से मिलकर देश को सुलझाने की कोशिश की थी परंतु बात नहीं. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से या कदम पहली बार उठाया गया है इसलिए वह अपनी तरफ से हर संभव सहयोग करेंगे.

भगवान राम का कोई भक्त राम मंदिर के निर्माण में विलंब नहीं चाहता : केशव प्रसाद मौर्य
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कोर्ट के फैसले पर कहा वो इस पर कोई सवाल नहीं खड़ा करते हैं. उन्होंने कहा कि कई बार समझौता किया गया पर कोई पैसला नहीं आया. कहा कि हर रामलला के भक्त राम मंदिर का निर्माण चाहता है. भगवान राम का कोई भी भक्त और संत राम मंदिर के निर्माण में विलंब नहीं चाहता.

महंत सत्येंद्र दास ने कहा जल्द से जल्द हो फैसला
रामलला के प्रधान पुजारी सत्येंद्र दास ने कोर्ट की पहल का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि मध्यस्थता कमेटी सभी पक्षकारों की बात सुनी जाएगी. इसे जल्द से जल्द होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अब इसका समाधान निश्चित होगा.

कब-कब क्या हुआ...
1853: हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ. मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई.
1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी.
1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा. महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की.
23 दिसंबर 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी. इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे. मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया.
16 जनवरी 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी.
5 दिसंबर 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया. मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया.
17 दिसंबर 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया.
18 दिसंबर 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया.
1984: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया. एक समिति का गठन किया गया.
1 फरवरी 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी. ताले दोबारा खोले गए. नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया.
1 जुलाई 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।
9 नवंबर 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी.
25 सितंबर 1990: बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए.
नवंबर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया. बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया.
6 दिसंबर 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया. इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए. जल्दबाजी में एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया.
16 दिसंबर 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ.
जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।
अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की.
मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं. मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे.
सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए.
जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया.
30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बंटी.
9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.
जुलाई 2016: बाबरी मामले के सबसे उम्रदराज वादी हाशिम अंसारी का निधन
21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही
19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिककेस चलाने का आदेश दिया

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. अब यह साफ हो गया है कि मध्यस्थता के जरिए ही राम जन्मभूमि विवाद का समाधान किया जाएगा. इसके लिए पैनल गठित कर लिया गया है, जिसमें पूर्व जस्टिस कलीफुल्ला, श्रीश्री रविशंकर और श्रीराम पंचू हैं. एफएम कलीफुल्ला पैनल के मुखिया होंगे. यह पैनल 8 हफ्तों में रिपोर्ट सौंपेगा...
इससे पहले भी कई बार मध्यस्थता के जरिए राम जन्मभूमि विवाद को सुलझाने की कोशिश की गई है, लेकिन सारी कोशिशें सिर्फ कोशिशें ही रह गईं... लेकिन इस बार इस बात का सबको इंतजार है कि राम जन्मभूमि विवाद आपसी सहमति से सुलझ पाता है या फिर नतीजा हर बार की तरह सिफर ही रह जाता है...

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अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला


जानिए कौन-कौन हैं पैनल में शामिल
अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन मध्यस्थों के नाम तय कर दिए हैं. इनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला, आर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख श्रीश्री रविशंकर और सीनियर अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल हैं. तीन सदस्यों के इस पैनल के सामने दोनों पक्षकार अपनी बात रखेंगे और ये मध्यस्थता फैजाबाद में होगी.

फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थता के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला होंगे, जबकि श्रीश्री रविशंकर और श्रीराम पंचू इसके सदस्य होंगे. इस कमेटी के सामने हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षकार अपनी बातें रखेंगे. इसके बाद यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेगी.पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला मूल रूप से तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी के रहने वाले हैं. वह श्रम कानून से संबंधित मामलों में सक्रिय वकील रहे थे. कलीफुल्ला को पहले मद्रास हाईकोर्ट में स्थाई न्यायाधीश नियुक्त थे. इसके बाद वो जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे. उन्हें 2000 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के तौर नियुक्ति के बाद 2011 में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया.

श्रीश्री रविशंकर
आर्ट्स ऑफ लिविंग के प्रमुख श्रीश्री रविशंकर देश के प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं. इससे पहले भी उन्होंने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कोशिश की थी और पक्षकारों से मुलाकात भी की थी. हालांकि, श्रीश्री रविशंकर का नाम जैसे ही मध्यस्थ के रूप में सामने आया तो कई पक्षों और बड़े साधु-संतों ने उनका विरोध भी किया.

श्रीराम पंचू
श्रीराम पंचू अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए बनी कमेटी के तीसरे सदस्य हैं. उन्होंने मध्यस्थता कर केस सुलझाने के लिए द मीडिएशन चैंबर नाम की एक कानूनी संस्था भी गठित की है, जिसका काम आपसी सुलह के जरिए कोर्ट से बाहर मुद्दों को सुलझाना है. श्रीराम पंचू एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर्स के अध्यक्ष हैं. भारत की न्याय व्यवस्था में मध्यस्थता को शामिल करने में उनका अहम योगदान रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम पंचू को विशिष्ट मध्यस्थ और देश के सबसे पुराने मध्यस्थों में से एक बताया है. श्रीराम पंचू देश के कई जटिल और वीवीआईपी मामलों में मध्यस्थता कर चुके हैं.

असम और नागालैंड के बीच 500 किलोमीटर भू-भाग का मामला सुलझाने के लिए उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया गया था. इसके अलावा बंबई में पारसी समुदाय के मामले का निपटारा करने में भी वह मध्यस्थ रह चुके हैं.

फैसले पर किसने क्या क्या कहा:


स्वामी चक्रपाणि ने किया फैसले का स्वागत
स्वामी चक्रपाणि ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि वो फैसले का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो भी फैसला दिया है वह सही है.

इकबाल अंसारी
अंसारी ने कहा, 'मध्यस्थता से मंदिर-मस्जिद के विवाद को हल करना सबसे बेहतर रास्ता है. उन्होंने कहा कि कोर्ट हमें बुलाएगी तो हम जरूर जाएंगे. उन्होंने कहा कि हिन्दू महासभा और रामलला के पक्षकार पहले ही सुलह से इनकार कर चुके हैं. दोनों पक्षों को कोर्ट की पहल को मानना चाहिए.

जफरयाब जिलानी
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के राष्ट्रीय चेयरमैन तथा सेक्रेट्री पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता जफरयाब जिलानी ने सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता के आदेश पर स्वागत करते हुए कहा है कि वह पूरी तरीके से इसमें कॉर्पोरेट करेंगे. अभी कहा कि पहले हाई कोर्ट ने लोगों से मिलकर देश को सुलझाने की कोशिश की थी परंतु बात नहीं. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से या कदम पहली बार उठाया गया है इसलिए वह अपनी तरफ से हर संभव सहयोग करेंगे.

भगवान राम का कोई भक्त राम मंदिर के निर्माण में विलंब नहीं चाहता : केशव प्रसाद मौर्य
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कोर्ट के फैसले पर कहा वो इस पर कोई सवाल नहीं खड़ा करते हैं. उन्होंने कहा कि कई बार समझौता किया गया पर कोई पैसला नहीं आया. कहा कि हर रामलला के भक्त राम मंदिर का निर्माण चाहता है. भगवान राम का कोई भी भक्त और संत राम मंदिर के निर्माण में विलंब नहीं चाहता.

महंत सत्येंद्र दास ने कहा जल्द से जल्द हो फैसला
रामलला के प्रधान पुजारी सत्येंद्र दास ने कोर्ट की पहल का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि मध्यस्थता कमेटी सभी पक्षकारों की बात सुनी जाएगी. इसे जल्द से जल्द होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अब इसका समाधान निश्चित होगा.

कब-कब क्या हुआ...
1853: हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ. मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई.
1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी.
1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा. महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की.
23 दिसंबर 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी. इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे. मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया.
16 जनवरी 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी.
5 दिसंबर 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया. मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया.
17 दिसंबर 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया.
18 दिसंबर 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया.
1984: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया. एक समिति का गठन किया गया.
1 फरवरी 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी. ताले दोबारा खोले गए. नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया.
1 जुलाई 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।
9 नवंबर 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी.
25 सितंबर 1990: बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए.
नवंबर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया. बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया.
6 दिसंबर 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया. इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए. जल्दबाजी में एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया.
16 दिसंबर 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ.
जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।
अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की.
मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं. मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे.
सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए.
जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया.
30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बंटी.
9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.
जुलाई 2016: बाबरी मामले के सबसे उम्रदराज वादी हाशिम अंसारी का निधन
21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही
19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिककेस चलाने का आदेश दिया

Intro:जफरयाब जिलानी -

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के राष्ट्रीय चेयरमैन तथा सेक्रेट्री पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता जफरयाब जिलानी ने सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता के आदेश पर स्वागत करते हुए कहा है कि वह पूरी तरीके से इसमें कॉर्पोरेट करेंगे. अभी कहा कि पहले हाई कोर्ट ने लोगों से मिलकर देश को सुलझाने की कोशिश की थी परंतु बात नहीं. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से या कदम पहली बार उठाया गया है इसलिए वह अपनी तरफ से हर संभव सहयोग करेंगे.


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Conclusion:Trainee Reporter
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