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अलीगढ़ : डायबिटीज के मरीज भी रख सकते हैं रोजा

पवित्र रमजान का महीना मंगलवार से शुरू हो गया है. इसी के चलते ईटीवी भारत संवाददाता ने जिले के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के राजीव गांधी सेंटर फॉर डायबिटीज एंड इंडोक्रोनोलॉजी के निदेशक प्रोफेसर शीलू शफीक सिद्दीकी से बातचीत कर पूछा कि डायबिटीज मरीज रोजे रखने में क्या-क्या सावधानियां बरतें.

डायबिटीज मरीज भी रख सकते है रोजा
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Published : May 8, 2019, 8:33 PM IST

अलीगढ़ : डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति भी पवित्र रमजान में रोजे रख सकता है, लेकिन इस संदर्भ में डॉक्टरों से परामर्श भी आवश्यक है. ताकि स्वास्थ्य पर रोजे का नकारात्मक प्रभाव न पड़े और रोग में वृद्धि न हो. यह परामर्श अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के राजीव गांधी सेंटर फॉर डायबिटीज एंड इंडोक्रोनोलॉजी के निदेशक प्रोफेसर शीलू शफीक सिद्दीकी ने ईटीवी भारत संवाददाता से बातचीत में कहा कि पवित्र रमजान के महीने में रोजा रखकर डायबिटीज को काबू में रखना एक कठिन कार्य है. वहीं अगर ग्लूकोज को कम करने वाली औषधियों के उचित प्रयोग किया जाए तो ऐसा करना संभव है.

प्रोफेसर शीलू शफीक सिद्दीकी ने ईटीवी भारत संवाददाता से की बातचीत.


जानिए क्या कहा डॉ सिद्दीकी ने

  • रोजे रखने का निर्णय लेने से पूर्व रोगी को चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए. रमजान पूर्व खाने की आदत क्या थी. पाचन क्रिया कैसी थी. हाइपोग्लाइसीमिया को रोकने के लिए कौन सी औषधि प्रयोग करते थे. शारीरिक गतिविधियां क्या रहती थीं.
  • शरीर में जल की कमी तो नहीं होती थी. जैसी समस्त बातों का ध्यान रखना आवश्यक है. जो चिकित्सक से परामर्श के बगैर संभव नहीं है.
  • डायबिटीज के रोगी को निरंतर रूप से चिकित्सकीय देखभाल की आवश्यकता होती है और जीवनशैली में परिवर्तन लाना होता है.
  • रोजे की स्थिति में स्वास्थ्य को हाइपोग्लाइसीमिया, पानी की कमी, नाड़ियों में खून का जमना जैसे खतरे हो सकते हैं. इसलिए दवा तथा उसके समय में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है.
  • उन्होंने कहा कि ज्यादा गंभीर रूप से मधुमेह का शिकार व्यक्तियों को रोजा नहीं रखना चाहिए.
  • टाइप वन और टाइप टू डायबिटीज रोगी और जिन्हें निरंतर इंसुलिन लेने की आवश्यकता होती है, वे रोजा न रखें.
  • उनके लिए थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद अपने रक्त में ग्लूकोज की निगरानी करना अनिवार्य है.
  • उन्होंने आगे कहा कि पवित्र रमजान के निरंतर रोजे से इंसान को आध्यात्मिक सुकून प्राप्त होता है. जबकि रोजा न रखने पर मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है. जिससे ग्लाइसीमिया (लो शुगर) के बेकाबू होने का खतरा पैदा हो सकता है.
  • डॉ सिद्दीकी ने कहा कि रोजा रखने के लिए पहले मरीज को अपना ब्लड शुगर कंट्रोल करना पड़ेगा. वहीं सहरी और इफ्तारी के समय कौन सी दवा खाई जाये. यह उन्हें पता रहनी चाहिए.
  • उन्होंने कहा कि कुछ दवाइयां रोजे में लेनी चाहिए और कुछ नहीं लेनी चाहिए.

प्रो शीलू शफीक सिद्दीकी, निदेशक, राजीव गांधी सेंटर फॉर डायबिटीज एंड एंडोक्रोनोलॉजी

अलीगढ़ : डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति भी पवित्र रमजान में रोजे रख सकता है, लेकिन इस संदर्भ में डॉक्टरों से परामर्श भी आवश्यक है. ताकि स्वास्थ्य पर रोजे का नकारात्मक प्रभाव न पड़े और रोग में वृद्धि न हो. यह परामर्श अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के राजीव गांधी सेंटर फॉर डायबिटीज एंड इंडोक्रोनोलॉजी के निदेशक प्रोफेसर शीलू शफीक सिद्दीकी ने ईटीवी भारत संवाददाता से बातचीत में कहा कि पवित्र रमजान के महीने में रोजा रखकर डायबिटीज को काबू में रखना एक कठिन कार्य है. वहीं अगर ग्लूकोज को कम करने वाली औषधियों के उचित प्रयोग किया जाए तो ऐसा करना संभव है.

प्रोफेसर शीलू शफीक सिद्दीकी ने ईटीवी भारत संवाददाता से की बातचीत.


जानिए क्या कहा डॉ सिद्दीकी ने

  • रोजे रखने का निर्णय लेने से पूर्व रोगी को चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए. रमजान पूर्व खाने की आदत क्या थी. पाचन क्रिया कैसी थी. हाइपोग्लाइसीमिया को रोकने के लिए कौन सी औषधि प्रयोग करते थे. शारीरिक गतिविधियां क्या रहती थीं.
  • शरीर में जल की कमी तो नहीं होती थी. जैसी समस्त बातों का ध्यान रखना आवश्यक है. जो चिकित्सक से परामर्श के बगैर संभव नहीं है.
  • डायबिटीज के रोगी को निरंतर रूप से चिकित्सकीय देखभाल की आवश्यकता होती है और जीवनशैली में परिवर्तन लाना होता है.
  • रोजे की स्थिति में स्वास्थ्य को हाइपोग्लाइसीमिया, पानी की कमी, नाड़ियों में खून का जमना जैसे खतरे हो सकते हैं. इसलिए दवा तथा उसके समय में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है.
  • उन्होंने कहा कि ज्यादा गंभीर रूप से मधुमेह का शिकार व्यक्तियों को रोजा नहीं रखना चाहिए.
  • टाइप वन और टाइप टू डायबिटीज रोगी और जिन्हें निरंतर इंसुलिन लेने की आवश्यकता होती है, वे रोजा न रखें.
  • उनके लिए थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद अपने रक्त में ग्लूकोज की निगरानी करना अनिवार्य है.
  • उन्होंने आगे कहा कि पवित्र रमजान के निरंतर रोजे से इंसान को आध्यात्मिक सुकून प्राप्त होता है. जबकि रोजा न रखने पर मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है. जिससे ग्लाइसीमिया (लो शुगर) के बेकाबू होने का खतरा पैदा हो सकता है.
  • डॉ सिद्दीकी ने कहा कि रोजा रखने के लिए पहले मरीज को अपना ब्लड शुगर कंट्रोल करना पड़ेगा. वहीं सहरी और इफ्तारी के समय कौन सी दवा खाई जाये. यह उन्हें पता रहनी चाहिए.
  • उन्होंने कहा कि कुछ दवाइयां रोजे में लेनी चाहिए और कुछ नहीं लेनी चाहिए.

प्रो शीलू शफीक सिद्दीकी, निदेशक, राजीव गांधी सेंटर फॉर डायबिटीज एंड एंडोक्रोनोलॉजी

Intro:अलीगढ़ : डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति भी पवित्र रमजान में रोजे रख सकता है. लेकिन इस संदर्भ में डॉक्टरों से परामर्श भी आवश्यक है. ताकि स्वास्थ्य पर रोजे का नकारात्मक प्रभाव न पड़े और रोग में वृद्धि ना हो. यह परामर्श अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के राजीव गांधी सेंटर फॉर डायबिटीज एंड इंडोक्रोनोलॉजी के निदेशक प्रोफेसर शीलू शफीक सिद्दीक़ी ने दिया है. उन्होंने कहा कि पवित्र रमजान के महीने में रोजा रखकर डायबिटीज के रोगी को काबू मे रखना एक कठिन कार्य है. परंतु ग्लूकोज को कम करने वाली औषधियों के उचित प्रयोग से ऐसा करना संभव है. शर्त यह है कि रोगी की शारीरिक व मानसिक स्थिति को दृष्टिगत रखा जाए और हाइपोग्लाइसीमिया के खतरे को कम करने के लिए डिजाइनर मॉलिक्यूल उपलब्ध रहे.


Body:डॉ सिद्दीकी ने कहा कि रोजे रखने का निर्णय लेने से पूर्व रोगी को चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए. रमजान पूर्व खाने की आदत क्या थी . पाचन क्रिया कैसी थी? हाइपोग्लाइसीमिया को रोकने के लिए कौन सी औषधि प्रयोग करते थे? शारीरिक गतिविधियां क्या रहती थी ? शरीर में जल की कमी तो नहीं होती थी. जैसी समस्त बातों का ध्यान रखना आवश्यक है. जो चिकित्सक से परामर्श के बगैर संभव नहीं है।
डॉ सिद्दीकी ने कहा कि डायबिटीज के रोगी को निरंतर रूप से चिकित्सकीय देखभाल की आवश्यकता होती है. जीवनशैली में परिवर्तन लाना होता है . रोजे की स्थिति में स्वास्थ्य को हाइपोग्लाइसीमिया, पानी की कमी, नाड़ियों में खून का जमना जैसे खतरे हो सकते हैं. इसलिए दवा तथा उसके समय में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है . उन्होंने कहा कि ज्यादा गंभीर रूप से मधुमेह का शिकार व्यक्तियों को रोजा नहीं रखना चाहिए.


Conclusion:उन्होंने कहा कि टाइप वन और टाइप टू के डायबिटीज रोगी अथवा जिन्हें निरंतर इंसुलिन लेने की आवश्यकता होती है. उनके लिए थोड़े थोड़े अंतराल के बाद अपने रक्त में ग्लूकोज की निगरानी करना अनिवार्य है. उन्होंने आगे कहा कि पवित्र रमजान के निरंतर रोजे से इंसान को आध्यात्मिक सुकून प्राप्त होता है. जबकि रोजा न रखने पर मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है. जिससे ग्लाइसीमिया (लो शुगर ) के बेकाबू होने
का खतरा पैदा हो सकता है.
डॉ सिद्दीकी ने कहा कि रोजा रखने के लिए पहले मरीज को अपना ब्लड शुगर कंट्रोल करना पड़ेगा . वहीं सहरी और इफ्तारी के समय कौन सी दवा खाई जाये. यह उन्हें पता रहनी चाहिए. उन्होंने बताया कि कुछ दवाइयां रोजे में लेनी चाहिए और कुछ नहीं लेनी चाहिए. यह डॉक्टर से सलाह करके ही ले. उन्होंने कहा कि अगर रोजा रख रहे हैं तो डाइट पर ध्यान दें. क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए . उन्होंने कहा कि सहरी में वह चीजें खाएं , जो उनके शुगर को ज्यादा देर तक मेंटेन कर सकें.

बाईट : प्रो शीलू शफ़ीक़ सिद्दीक़ी, निदेशक, राजीव गांधी सेंटर फॉर डायबिटीज एंड एंडोक्रोनोलॉजी

आलोक सिंह,अलीगढ़
9837830535
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