कानपुर: वर्ष 1974 में हुआ जेपी आंदोलन रहा हो या फिर 2012 में अन्ना हजारे का आंदोलन. जब युवक किसी मुद्दे पर एकजुट होते हैं वह कोई न कोई संदेश जरूर देते हैं. अब इसी तरह के छात्र आंदोलनों की पढ़ाई छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के शोधार्थी कर सकेंगे. इस अध्याय को समाज साथ के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. विषय विशेषज्ञों का कहना है कि शोधार्थियों के लिए यह विषय रोचक तो होगा ही साथ ही शोध के लिए भी बहुत मददगार साबित होगा क्योंकि आमतौर पर देखने में आता है कि अभी तक छात्र आंदोलन से जुड़े मुद्दों पर जो पढ़ाया गया वह पारंपारिक हैं.
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2012 का निर्भया कांड इलाहाबाद विश्वविद्यालय बीएचयू समेत अन्य विश्वविद्यालयों के अंदर समय-समय पर छात्र-छात्राओं ने विभिन्न मुद्दों पर जोरदारी से अपनी बात रखी है. उसी का असर रहा है कि देश के अंदर व्यवस्था परिवर्तन से लेकर शिक्षा बदलाव हुए ऐसे कई मामलों की जानकारी विरोध करने वाले छात्रों को मिल सकेगी. इस नए पाठ्यक्रम में छात्र-छात्राएं आंदोलनों से जुड़े मुद्दों पर पढ़ाई करेंगे. कानपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता ने कहा कि छात्र-छात्राएं इस देश का भविष्य कई बार वह लोग अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन करते हैं लेकिन उनके पास सही तरीका नहीं रहता अपनी मांगों को अपने टीचरों तक और विश्वविद्यालय प्रशासन तक पहुंचाने का लेकिन अब उन्हें जब आंदोलन की पढ़ाई कराई जाएगी जो समाज शास्त्र विभाग अपने कोर्स में जोड़ने जा रहा है. लोग जन आंदोलन के विषय में सही ढंग से जानकारी प्राप्त कर सकेंगे और उसके अनुसार ही अपनी मांगे और मुद्दों पर जोरदारी अपनी बात रख सकेंगे.