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काशी के इस भवन में रहकर लोग करते हैं अपनी मौत का इंतजार - मुमुक्षु भवन

काशी में शांति और सुकून की तलाश के लिए भी बहुत से लोग आते हैं. भगवान शिव की नगरी काशी को लेकर यह मान्यता है कि यहां पर मरने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसा मानने वाले तमाम लोग काशी के मुमुक्षु भवन में लंबे वक्त से रहकर मोक्ष का इंतजार करते हैं.

मुमुक्षु भवन
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Published : Mar 24, 2019, 12:43 AM IST

वाराणसी: काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है. पुराणों में मान्यता है कि काशी में मरने से मोक्ष प्राप्त होता है. आज भी लोग मोक्ष की चाह में काशी आते हैं. वाराणसी में एक ऐसी जगह है, जहां लोग लंबे वक्त से रहकर मोक्ष का इंतजार कर रहे हैं.

मुमुक्षु भवन में लंबे वक्त से रहकर लोग कर रहे मोक्ष का इंतजार.


आज भी देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने से बहुत लोग मोक्ष की चाह में काशी आते हैं. वाराणसी के अस्सी घाट पर मुमुक्षु भवन नाम से एक भव्य भवन मौजूद है. यहां गृहस्थ और सन्यासी इस भवन में आकर अपने प्राणों को त्यागकर मोक्ष की प्राप्ति करते हैं.

काशी है मोक्ष की नगरी

1920 में एक व्यापारी पंडित घनश्याम दत्त ने लगभग 5 एकड़ में इस भव्य भवन का निर्माण करवाया. 55 कमरों वाले इस भव्य भवन की खासियत है कि यहां पर दूर-दूर से लोग काशी प्रवास के लिए आते हैं. लंबे वक्त तक यहां रहते हुए अपने प्राणों को त्यागकर मोक्ष की प्राप्ति करते हैं.
मुमुक्षु भवन के मैनेजर मनीष पांडेय का कहना है कि मुमुक्षु का अर्थ मोक्ष की चाह ही होता है और इसलिए ही इस जगह का नाम मुमुक्षु रखा गया है. उन्होंने बताया कि यहां पर 70 से ज्यादा ऐसे दंपति हैं, जो काशी में रहकर मोक्ष का इंतजार कर रहे हैं.


मनीष पांडेय का कहना है कि यहां रहने वाले लोगों से कमरे का कोई शुल्क नहीं लिया जाता. उनकी जो इच्छा होती है वह संस्था को अपनी तरफ से दे सकते हैं. बहुत से लोग यहां 5 से 7 साल से रह रहे हैं तो कुछ ऐसे लोग भी हैं जो 15 साल से भी ज्यादा वक्त से यहां आ रहे हैं.

लोगों को दिया जाता है नि:शुल्क भोजन

मुमुक्षु भवन में जो लोग रहते हैं, संस्था की तरफ से उनके खाने-पीने की व्यवस्था नि:शुल्क की जाती है. यहां रहने वाले लोगों को काशी प्रवास के दौरान किसी तरह की दिक्कत न हो इसका भी ध्यान रखा जाता है. लोग जब यहां रहते हुए अपना शरीर छोड़ देते हैं यानी मोक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं. तब इनके परिवार वालों को इसकी सूचना दे दी जाती है.


काशी में शांति और सुकून की तलाश के लिए भी बहुत से लोग आते हैं. ऐसे ही हैदराबाद के रहने वाले नारायण भी हैं. नारायण पत्नी के साथ 8 सालों से मुमुक्षु भवन में रह रहे हैं. उनका कहना है कि काशी में मोक्ष के साथ शांति और सुकून की तलाश में यहां आया हूं.


वहीं बनारस की 80 साल की सरस्वती अग्रवाल भी 9 सालों से इस भवन में रह रही हैं. उनका कहना है कि उनके घर को लोगों ने धोखे से हड़प लिया रहने की कोई जगह नहीं थी इसलिए यहां आ गई अब इंतजार सिर्फ मौत का है यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो काशी का यह भवन उन लोगों के लिए ही है जो मोक्ष की चाह में काशी में आकर मौत का इंतजार कर रहे हैं.

वाराणसी: काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है. पुराणों में मान्यता है कि काशी में मरने से मोक्ष प्राप्त होता है. आज भी लोग मोक्ष की चाह में काशी आते हैं. वाराणसी में एक ऐसी जगह है, जहां लोग लंबे वक्त से रहकर मोक्ष का इंतजार कर रहे हैं.

मुमुक्षु भवन में लंबे वक्त से रहकर लोग कर रहे मोक्ष का इंतजार.


आज भी देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने से बहुत लोग मोक्ष की चाह में काशी आते हैं. वाराणसी के अस्सी घाट पर मुमुक्षु भवन नाम से एक भव्य भवन मौजूद है. यहां गृहस्थ और सन्यासी इस भवन में आकर अपने प्राणों को त्यागकर मोक्ष की प्राप्ति करते हैं.

काशी है मोक्ष की नगरी

1920 में एक व्यापारी पंडित घनश्याम दत्त ने लगभग 5 एकड़ में इस भव्य भवन का निर्माण करवाया. 55 कमरों वाले इस भव्य भवन की खासियत है कि यहां पर दूर-दूर से लोग काशी प्रवास के लिए आते हैं. लंबे वक्त तक यहां रहते हुए अपने प्राणों को त्यागकर मोक्ष की प्राप्ति करते हैं.
मुमुक्षु भवन के मैनेजर मनीष पांडेय का कहना है कि मुमुक्षु का अर्थ मोक्ष की चाह ही होता है और इसलिए ही इस जगह का नाम मुमुक्षु रखा गया है. उन्होंने बताया कि यहां पर 70 से ज्यादा ऐसे दंपति हैं, जो काशी में रहकर मोक्ष का इंतजार कर रहे हैं.


मनीष पांडेय का कहना है कि यहां रहने वाले लोगों से कमरे का कोई शुल्क नहीं लिया जाता. उनकी जो इच्छा होती है वह संस्था को अपनी तरफ से दे सकते हैं. बहुत से लोग यहां 5 से 7 साल से रह रहे हैं तो कुछ ऐसे लोग भी हैं जो 15 साल से भी ज्यादा वक्त से यहां आ रहे हैं.

लोगों को दिया जाता है नि:शुल्क भोजन

मुमुक्षु भवन में जो लोग रहते हैं, संस्था की तरफ से उनके खाने-पीने की व्यवस्था नि:शुल्क की जाती है. यहां रहने वाले लोगों को काशी प्रवास के दौरान किसी तरह की दिक्कत न हो इसका भी ध्यान रखा जाता है. लोग जब यहां रहते हुए अपना शरीर छोड़ देते हैं यानी मोक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं. तब इनके परिवार वालों को इसकी सूचना दे दी जाती है.


काशी में शांति और सुकून की तलाश के लिए भी बहुत से लोग आते हैं. ऐसे ही हैदराबाद के रहने वाले नारायण भी हैं. नारायण पत्नी के साथ 8 सालों से मुमुक्षु भवन में रह रहे हैं. उनका कहना है कि काशी में मोक्ष के साथ शांति और सुकून की तलाश में यहां आया हूं.


वहीं बनारस की 80 साल की सरस्वती अग्रवाल भी 9 सालों से इस भवन में रह रही हैं. उनका कहना है कि उनके घर को लोगों ने धोखे से हड़प लिया रहने की कोई जगह नहीं थी इसलिए यहां आ गई अब इंतजार सिर्फ मौत का है यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो काशी का यह भवन उन लोगों के लिए ही है जो मोक्ष की चाह में काशी में आकर मौत का इंतजार कर रहे हैं.

Intro:संबंधित खबर स्टोरी बैंक के लिए है.

एंकर- वाराणसी: काशी जिसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है पुराणों में मान्यता है कि काशी में मरने से मोक्ष प्राप्त होता है क्योंकि यहां पर भगवान शिव स्वयं मरने वाले के कानों में तारक मंत्र देते हैं यदि इन मान्यताओं पर विश्वास करें तो आज भी लोग मोक्ष की चाह में काशी में मरने के लिए आते हैं लेकिन शायद ही आपको कोई ऐसा शहर मिले जहां मरने की चाह में आने वाले लंबे वक्त से एक जहां पर रह कर अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं सुनकर आश्चर्य जरूर हो रहा होगा लेकिन काशी में ऐसी जगह है जहां एक दो नहीं बल्कि कई लोग सिर्फ इसलिए काशी में मौजूद है ताकि उनको मृत्यु आ सके और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए विश्वास नहीं होता तो काशी आइए और मुमुक्षु भवन में ऐसे लोगों से मुलाकात कीजिए जो काशी में रहकर मोक्ष की चाह में कर रहे हैं मौत का इंतजार.


Body:वीओ-01 काश्याम मरण्याम मुक्ति यानी काशी में मरने से मोक्ष प्राप्त होता है पुराणों में कही गई इन बातों के आधार पर ही आज भी देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने कोने से बहुत से लोग इस मोक्ष की चाह में काशी आते हैं. मान्यताओं पर अगर गौर करें तो कहा गया है कि काशी में मरने वाले को बार-बार जन्म मरण के चक्र से ही मुक्ति मिल जाती है और वह शिवलीन हो जाता है. यही वजह है कि मोक्ष की नगरी काशी में शरीर त्याग कर मोक्ष की चाहत रखने वाले गृहस्थ और सन्यासियों के लिए अस्सी घाट के पास मुमुक्षु भवन नाम से एक भव्य भवन मौजूद है. 1920 में एक व्यापारी पंडित घनश्याम दत्त जी ने लगभग 5 एकड़ में इस भव्य भवन का निर्माण करवाया. 55 कमरों वाले इस भव्य भवन की खासियत यह है कि यहां पर दूर दूर से लोग काशी प्रवास के लिए आते हैं और लंबे वक्त तक यहां रहते हुए अपने प्राणों को त्याग कर मोक्ष की प्राप्ति करते हैं. मुमुक्षु भवन के मैनेजर मनीष पांडेय का कहना है कि मुमुक्षु का अर्थ मोक्ष की चाह ही होता है और इसलिए ही इस जगह का नाम मुमुक्षु रखा गया है, क्योंकि लंबे वक्त से लोग मोक्ष के लिए काशी में आकर रहते थे और आज भी उन चीजों को जीवित रखते हुए यहां पर 70 से ज्यादा ऐसे दंपत्ति हैं जो काशी में रहकर मोक्ष का इंतजार कर रहे हैं. इतना ही नहीं लगभग इतने ही दंडी स्वामी और सन्यासी भी मुमुक्षु भवन में ही रहते हैं. मैनेजर मनीष पांडेय का कहना है कि यहां रहने वाले लोगों से कमरे का कोई शुल्क नहीं लिया जाता उनकी जो इच्छा होती है वह संस्था को अपनी तरफ से दे सकते हैं. बहुत से लोग यहां 5 से 7 साल से रह रहे हैं तो कुछ ऐसे लोग भी हैं जो 15 साल से भी ज्यादा वक्त से आ रहे हैं. यह लोग जहां रहते हैं खाते हैं पीते हैं खुद बनाते हैं, नहीं बनता तो संस्था की तरफ से की हुई व्यवस्था के तहत निशुल्क भोजन भी दिया जाता है. यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो यहां रहने वाले लोगों को काशी प्रवास के दौरान किसी तरह की दिक्कत ना हो इसका भी ध्यान रखा जाता है और जब यहां रहते हुए अपना शरीर छोड़ देते हैं यानी मोक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं तब इनके परिवार वालों को इसकी सूचना दे दी जाती है.

बाईट- मनीष पांडेय, मैनेजर, काशी मुमुक्षु भवन


Conclusion:वीओ-02 वहीं काशी में शांति और सुकून की तलाश के लिए भी बहुत से लोग आते हैं ऐसे ही हैदराबाद के रहने वाले नारायण भी हैं अपनी दो बेटियों की शादी करने के बाद उनको विदेश में सेट कर नारायण अपनी पत्नी के साथ 8 सालों से मुमुक्षु भवन में रह रहे हैं उनका कहना है कि काशी में मोक्ष के साथ शांति और सुकून की भी तलाश में यहां आया और मुझे यहां पर यह चीजें मिली मुझे काशी में रहना बेहद पसंद है. इसलिए अपनी मैनेजर की नौकरी से रिटायर होने के बाद मैं काशी प्रवास कर रहा हूं और पत्नी की भी मेरी साथ में है. वही बनारस में ही अपनों की सताई लगभग 80 साल की सरस्वती अग्रवाल भी 9 सालों से इस भवन में रह नहीं है उनका कहना है उनके घर को लोगों ने धोखे से हड़प लिया रहने की कोई जगह नहीं थी इसलिए यहां आ गई अब इंतजार सिर्फ मौत का है यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो काशी का यह भवन उन लोगों के लिए ही है जो मोक्ष की चाह में काशी में आकर मौत का इंतजार कर रहे हैं.

बाईट- नारायण, काशी प्रवास करने वाले
बाईट- सरस्वती अग्रवाल, काशी प्रवास करने वाली

पीटीसी- गोपाल मिश्र

गोपाल मिश्र

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