बलरामपुर : जिला नीति आयोग के अनुसार निर्धारित मानकों के अंतर्गत आने वाला एक अति महावकांक्षी जिला है. यहां पर सरकार के लक्ष्य 'सबका साथ-सबका विकास' को फलीभूत करने के लिए तमाम तरह की विशेष कार्य योजनाएं सभी तबको के विकास के लिए संचालित की जा रही हैं. बलरामपुर जिले के 9 के 9 ब्लाक प्रधानमंत्री जन विकास योजना के अन्तर्गत आते हैं. मतलब, यहां के सभी नौ ब्लाकों में अल्पसंख्यक आबादी 30 प्रतिशत से ज़्यादा निवास करती है. ऐसे में यहां पर मदरसा आधुनिकीकरण योजना तीन साल से अधिक समय से संचालित सभी मदरसों में लागू होती है.
जिले में कुल 603 मदरसे संचालित किए जाते हैं. जिनमें से 25 मदरसे सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं. बाकी के 578 मदरसे स्ववित्तपोषित या अन्य द्वारा पोषित किये जाते हैं. जिले के उन सभी मदरसों में सरकार द्वारा चलाई जा रही मदरसा आधुनिकीकरण योजना लागू होती है. इस योजना के अंतर्गत आने वाले मदरसों में केन्द्रांश और राज्यांश के जरिए तीन आधुनिक अध्यापकों की नियुक्ति की गई है. जो छात्र-छात्राओं को हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित और कंप्यूटर जैसे विषयों की शिक्षा देते हैं. इसके साथ ही सभी मदरसों में दिनी तालीम माने उर्दू, अरबी, फ़ारसी के साथ-साथ कुरान की शिक्षा भी दी जाती है.
बलरामपुर नगर में स्थित आधुनिक मदरसा अनवारुल कुरान इसका बेहतरीन उदाहरण है. यहां पर मदरसा आधुनिकीकरण योजना लागू होने के कारण अब बच्चों को दीनी तालीम के साथ-साथ उन तमाम विषयों की शिक्षा भी दी जाती है जो किसी कान्वेंट या अन्य स्कूलों में दी जाती है. यहां के बच्चे अब कंप्यूटर चलाते हैं, गणित विज्ञान पढ़ते हैं. यह सामान्य स्कूलों में पढ़ने बच्चों से किसी तरह से कम नहीं हैं.
छात्र कहते हैं कि यहां पर पढ़ने वाले बच्चे आज डॉक्टर, इंजीनियर और उन तमाम विधाओं में नौकरी कर रहे हैं. जहां-जहां लोगों के लिए संभावनाएं हैं. हम भी उन क्षेत्रों में यही से पढ़कर जा रहे हैं. छात्रों ने कहा कि इसके साथ ही मोदी सरकार द्वारा संचालित स्किल इंडिया, कौशल विकास मिशन जैसी योजनाएं भी हम लोगों को लाभान्वित कर रही हैं. इसके साथ ही हमें स्कॉलरशिप भी मिल रही है जो हमारे विकास में फायदेमंद साबित हो रही है.
जिला अलपसंख्यक कल्याण अधिकारी पंकज सिंह ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से मदरसा आधुनिकीकरण योजना संचालित की जा रही है. मदरसों में आधुनिक शिक्षा लागू करवाने के साथ साथ हम यहां पर पढ़ने वाले सभी छात्र छात्राओं को बेहतर से बेहतर सुविधा प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यहां पर विद्यार्थियों को बेहतर लाइब्रेरी, बेहतरीन कंप्यूटर लैब, मिड डे मील इत्यादि की व्यवस्था भी की जा रही है. इसके साथ ही जिले में कुछ मदरसे ऐसे भी हैं.जहां पर मैनेजमेंट द्वारा छात्र छात्राओं को बेहतर सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं.
इसके पहले वर्ष 2015 में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में चल रहे मदरसों में अन्य विषयों को भी पढ़ाना अनिवार्य करने का फैसला किया था.उस समय महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री एकनाथ खडसे ने कहा था कि सरकार छात्रों को औपचारिक शिक्षा देने और साथ ही शिक्षकों की तैनाती के लिए पैसा देने को तैयार है. बेहतर होगा कि सभी राज्य सरकारें अपने प्रदेश के मदरसों में अंग्रेजी और विज्ञान विषयों की पढ़ाई अनिवार्य करें. चूंकि इस मामले में पहले ही देर हो चुकी है इसलिए और देर नहीं की जानी चाहिए. यह भी आवश्यक है कि मुस्लिम समाज आधुनिक शिक्षा को अपनाने के लिए आगे बढ़े और सरकारों का सहयोग भी करे. आज यह आंकड़ा पाना मुश्किल है कि भारत में कुल कितने पंजीकृत और अपंजीकृत मदरसे हैं, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जहां कोई मदरसा स्थापित न हुआ हो. स्पष्ट है कि मदरसे चलाने वाले चाहें तो समाज में एक बड़ी रचनात्मक भूमिका निभा सकते हैं.
आज मदरसों में केवल मुस्लिम समाज के बच्चे ही पढ़ते नजर आते हैं, मगर हमेशा से ऐसा नहीं था. एक समय था जब झूठी धार्मिक बाधाएं नहीं थीं. तब कोई भी इन मदरसों में अध्ययन कर सकता था. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जब पांच वर्ष के हुए तो उन्हें फारसी, हिंदी और अंकगणित जानने के लिए एक मौलवी के ही मार्गदर्शन में रखा गया था. जो लोग उत्तर प्रदेश सरकार के उक्त फैसले का विरोध कर रहे हैं वे मुस्लिम समाज के हितैषी हरगिज नहीं हो सकते. इससे खराब बात और कोई नहीं कि योगी सरकार के फैसले के विरोध में एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साहब यह कहते दिखे कि सरकार का यह फैसला मुसलमानों के दीनी मामलों में दखल है. ऐसे लोग मुस्लिम समाज के हितैषी नहीं हो सकते.
इस साल की शुरुआत में जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई थी तो कई विपक्षी नेताओं की ओर से यह प्रचारित करने की हर संभव कोशिश की गई कि अब यूपी के मुसलमानों के सामने मुश्किल पेश आने वाली है. अभी तक तो ऐसा कुछ हुआ नहीं. उलटे बीते दिनों योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मदरसों में एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाए जाने का निर्णय लेकर यह साबित किया कि उसे तथाकथित सेक्युलर सरकारों के मुकाबले मुस्लिम छात्रों के भविष्य की कहीं अधिक चिंता है.
इस निर्णय के तहत मदरसा छात्रों को गणित और विज्ञान पढ़ना भी अनिवार्य होगा. इस फैसले के पक्ष में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश सरकार का इरादा मदरसों को आधुनिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करके मदरसा छात्रों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने का है. यह उत्तर प्रदेश सरकार का ऐसा निर्णय है जो मूलत: सिर्फ मुस्लिम समाज के बच्चों के लिए ही लाभदायक साबित होगा. उनके हित की चिंता इसलिए की जानी चाहिए थी, क्योंकि वे आधुनिकीकरण की दौड़ में बहुत पीछे रह गए हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम इसलिए उल्लेखनीय है, क्योंकि पिछले कई वर्षों से मदरसा शिक्षित छात्रों को आधुनिक कौशल से लैस करने की मांग की जा रही थी ताकि वे नौकरी के बाजार में अपनी जगह सुरक्षित कर सकें. इस मांग और जरूरत के बाद भी पिछली किसी सरकार का ध्यान इस ओर नहीं गया, जबकि वे खुद को मुस्लिम हितैषी बताते नहीं थकती थीं.