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बुलंदशहर: सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी, मरीज बेहाल - बुलंदशहर में डॉक्टर्स की कमी

बुलंदशहर जिले के सरकारी हॉस्पिटल में सुविधाएं कम दुविधाएं ज्यादा हैं. यहां विशेषज्ञों को तो छोड़िए पर्याप्त संख्या में चिकित्सक तक भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. आलम यह है कि यहां इलाज की उम्मीद लिए मरीजों को दर-दर भटकते देखा जा सकता है. जिम्मेदार अधिकारियों के पास सिर्फ एक जवाब है कि हम क्या करें, मजबूर हैं.

बुलंदशहर
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Published : Apr 26, 2019, 11:07 AM IST

बुलंदशहर: सूबे में शासन स्तर से बहुत बातें होती हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए बहुत काम किया है. कई सेवाएं शरू की है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कैलाश नाथ तिवारी का कहना है कि जिले में 13 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 4 ब्लॉक पीएचसी, 60 एडीशनल सेंटर ऑफ अर्बन पीएचसी हैं.

स्वास्थ्य महकमे में 45 से 50 फीसदी स्टाफ की कमी.

अगर बात की जाए तो बुलंदशहर में करीब ढाई सौ डॉक्टर के पद हैं. वहीं जिला अस्पताल में 62 डॉक्टर के पद सृजित हैं, लेकिन न ही जिला मुख्यालय पर पर्याप्त डॉक्टर्स और अन्य मेडिकल स्टॉफ है और न ही जिले के सुदूर इलाकों में ही पर्याप्त डॉक्टर उपलब्ध हैं. ये तो छोड़िए इतने बड़े जिले में किसी भी हॉस्पिटल में एक सर्जन तक भी नहीं है. यह हम नहीं कहते यह कहना है जिले के सीएमओ का.

सीएमओ कैलाश नाथ तिवारी ने ईटीवी भारत को बताया कि बुलंदशहर में लगभग 45 से 50 परसेंट स्टॉफ की कमी स्वास्थ्य महकमे में बनी हुई है. उससे भी जो बड़ी बात है वह यह है कि जिले में कोई सर्जन तक नहीं है. कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है. यानी जो मरीज यहां इस उम्मीद के साथ रूख करता है कि उसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी तो वो सभी उम्मीदें सरकारी अस्पतालों में आते-आते धराशायी हो जाती हैं.

जिले के जिम्मेदार सीएमओ का कहना है कि उनके पास सिवाय रेफर करने के कोई दूसरा उपाय नहीं है कि उनका कैसे इलाज किया जाए. जब पर्याप्त संख्या में डॉक्टर्स ही नहीं हैं तो बेहतर इलाज कैसे संभव हो. इतना ही नहीं जिले के कई सीएचसी पीएचसी पर तो दवाइयां भी वार्ड ब्यॉय देते देखे जा सकते हैं.

बुलंदशहर: सूबे में शासन स्तर से बहुत बातें होती हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए बहुत काम किया है. कई सेवाएं शरू की है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कैलाश नाथ तिवारी का कहना है कि जिले में 13 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 4 ब्लॉक पीएचसी, 60 एडीशनल सेंटर ऑफ अर्बन पीएचसी हैं.

स्वास्थ्य महकमे में 45 से 50 फीसदी स्टाफ की कमी.

अगर बात की जाए तो बुलंदशहर में करीब ढाई सौ डॉक्टर के पद हैं. वहीं जिला अस्पताल में 62 डॉक्टर के पद सृजित हैं, लेकिन न ही जिला मुख्यालय पर पर्याप्त डॉक्टर्स और अन्य मेडिकल स्टॉफ है और न ही जिले के सुदूर इलाकों में ही पर्याप्त डॉक्टर उपलब्ध हैं. ये तो छोड़िए इतने बड़े जिले में किसी भी हॉस्पिटल में एक सर्जन तक भी नहीं है. यह हम नहीं कहते यह कहना है जिले के सीएमओ का.

सीएमओ कैलाश नाथ तिवारी ने ईटीवी भारत को बताया कि बुलंदशहर में लगभग 45 से 50 परसेंट स्टॉफ की कमी स्वास्थ्य महकमे में बनी हुई है. उससे भी जो बड़ी बात है वह यह है कि जिले में कोई सर्जन तक नहीं है. कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है. यानी जो मरीज यहां इस उम्मीद के साथ रूख करता है कि उसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी तो वो सभी उम्मीदें सरकारी अस्पतालों में आते-आते धराशायी हो जाती हैं.

जिले के जिम्मेदार सीएमओ का कहना है कि उनके पास सिवाय रेफर करने के कोई दूसरा उपाय नहीं है कि उनका कैसे इलाज किया जाए. जब पर्याप्त संख्या में डॉक्टर्स ही नहीं हैं तो बेहतर इलाज कैसे संभव हो. इतना ही नहीं जिले के कई सीएचसी पीएचसी पर तो दवाइयां भी वार्ड ब्यॉय देते देखे जा सकते हैं.

Intro:पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिले बुलंदशहर में सरकारी हॉस्पिटल में सुविधा कम दुविधाएं ज्यादा हैं,यहां विशेषज्ञों को तो छोड़िए पर्याप्त संख्या में चिकित्सक, तक भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं,आलम यह है कि यहां इलाज की उम्मीद लिए मरीजों को दर-दर भटकते देखा जा सकता है,जिम्मेदार अधिकारियों के पास सिर्फ एक जवाब है हम क्या करें.. मजबूर हैं।देखिये इटीवी भारत की ये एक्सक्लुसिव खबर।




Body:सूबे में शासन स्तर से बहुत बातें अक्सर होती हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए ये ये कर दिया... वो कर दिया ,ये सेवा शरू कर दी.. वो सेवा शुरू कर दी लेकिन जरा जो हम कहना चाहते हैं कुछ इस ओर गौर कीजियेगा,... बकौल जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कैलाश नाथ तिवारी का कहना है कि जिले में 13 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ,4 ब्लॉक पीएचसी, 60 एडीशनल सेंटर आफ अर्बन पीएचसी हैं, जबकि अगर बात की जाए तो बुलंदशहर में करीब ढाई सौ डॉक्टर के पद हैं तो वहीं जिला अस्पताल में 62 डॉक्टर के पद सृजित हैं लेकिन के न ही तो जिला मुख्यालय पर पर्याप्त डॉक्टर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ है और न हीं जिले के सुदूर इलाकों में ही पर्याप्त डॉक्टर उपलब्ध हैं,ये तो छोड़िए इतने बड़े जिले में किसी भी हॉस्पिटल में एक सर्जन तक भी नहीं हैं ।यह हम नहीं कहते यह कहना है जिले के सीएमओ का सीएमओ के एन तिवारी ने ईटीवी भारत को बताया कि बुलंदशहर में लगभग 50 से 45 परसेंट स्टाफ की कमी स्वास्थ्य महकमे में बनी हुई है और उससे भी जो बड़ी बात है वह यह है कि जिले में कोई सर्जन तक नहीं है ,कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है यानी जो मरीज यहां इस उम्मीद के साथ रूख करता है कि उसे यहां बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी वो सभी उम्मीदें सरकारी अस्पतालों में आते आते धराशाही हो जाती हैं, जिसकी वजह से ना सिर्फ अस्पतालों में गंभीर हालत में आने वाले मरीजों को यहां से सिर्फ रेफर भर कर दिया जाता है , जिले के जिम्मेदार सीएमओ का कहना है कि उनके पास सिवाय रैफर करने के कोई दूसरा उपाय ही नहीं है, कि उनका कैसे इलाज किया जाए ,यह सुनकर जिला अस्पताल आने वाले परेशान मरीजों और उनके तीमारदारों को न सिर्फ बेवजह अपना कीमती समय व्यर्थ की इस भागदौड़ में सिर्फ इस उम्मीद में गंवाना पड़ जाता है कि डॉक्टर भगवान है और पीड़ित की मदद हो जाएगी।इतना ही नहीं कई मर्तबा तो मरीज के लिए चिकितशक की अनुपलब्धता कई बार काफी घातक सिध्द हो जाया करती है।

बाइट.....कैलाश नाथ तिवारी,
मुख्य चिकित्साधिकारी बुलन्दशहर ।




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Conclusion:जब पर्याप्त संख्या में डॉक्टर्स ही नहीं हैं तो आखिर काहे का इलाज , इतना ही नहीं जिले के कई सीएचसी पीएचसी पर तो दवाइयां भी वार्ड ब्यॉय देते देखे जा सकते हैं। यह आलम तब है जब सरकार लंबे समय से डुगडुगी बजा रही है कि उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए यह कर दिया और वह कर दिया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो इस उम्मीद के सहारे इन सरकारी अस्पतालों का रुख करता है कि है कि उन्हें वहां मदद मिलेगी और उनका इलाज होगा आखिर उस आम इंसान का कसूर क्या है।

पीटीसी....श्रीपाल तेवतिया,
बुलन्दशहर,
9213400888.

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