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क्या राजनीतिक दलों में छुपाया जा रहा है देश का काला धन

देश में अभी तक काला धन छिपाने के लिए बेनामी संपत्ति को प्रमुख जरिया माना जाता था , लेकिन पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक दल भी काला धन को सफेद करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

निर्वाचन आयोग कार्यालय, उप्र.
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Published : Apr 8, 2019, 3:25 PM IST

Updated : Apr 8, 2019, 8:58 PM IST

लखनऊ : देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 23 सौ से भी ज्यादा है, जबकि 5 साल पहले 2014 में इनकी तादाद 1866 हुआ करती थी. यानी हर साल औसतन 60 नए राजनीतिक दल पंजीकृत हुए हैं. राजनीतिक दलों के पंजीकरण की रफ्तार देश की आजादी से अब तक के 70 सालों में सबसे ज्यादा है. नए राजनीतिक दलों में बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो पहले नौकरशाह रहे हैं और रिटायर होने के बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बना डाली.

क्या राजनीतिक दलों में छुपाया जा रहा है देश का काला धन
भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को किसी स्वतंत्र राष्ट्र जैसी आजादी दे रखी है. मसलन निर्वाचन आयोग में चंदा कहां से आया है और कितना आया है. इसकी निगरानी का कोई तंत्र नहीं है. इतना ही नहीं राजनीतिक दलों को जन सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया है. लिहाजा उनके कामकाज और खर्च पर भी कोई सवाल नहीं किया जा सकता.

भारत का कानून सभी राजनीतिक दलों का पूरा संरक्षण करता है. यहीं वजह है कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण कराने के बाद अगर उनमें काला धन छुपाया जाता है, तो उसकी जांच पड़ताल और संदिग्ध लेनदेन पर रोक लगाना संभव नहीं है. जब तक किसी आपराधिक गिरोह से उनके संबंध के स्पष्ट सबूत न मिले.

लखनऊ : देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 23 सौ से भी ज्यादा है, जबकि 5 साल पहले 2014 में इनकी तादाद 1866 हुआ करती थी. यानी हर साल औसतन 60 नए राजनीतिक दल पंजीकृत हुए हैं. राजनीतिक दलों के पंजीकरण की रफ्तार देश की आजादी से अब तक के 70 सालों में सबसे ज्यादा है. नए राजनीतिक दलों में बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो पहले नौकरशाह रहे हैं और रिटायर होने के बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बना डाली.

क्या राजनीतिक दलों में छुपाया जा रहा है देश का काला धन
भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को किसी स्वतंत्र राष्ट्र जैसी आजादी दे रखी है. मसलन निर्वाचन आयोग में चंदा कहां से आया है और कितना आया है. इसकी निगरानी का कोई तंत्र नहीं है. इतना ही नहीं राजनीतिक दलों को जन सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया है. लिहाजा उनके कामकाज और खर्च पर भी कोई सवाल नहीं किया जा सकता.

भारत का कानून सभी राजनीतिक दलों का पूरा संरक्षण करता है. यहीं वजह है कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण कराने के बाद अगर उनमें काला धन छुपाया जाता है, तो उसकी जांच पड़ताल और संदिग्ध लेनदेन पर रोक लगाना संभव नहीं है. जब तक किसी आपराधिक गिरोह से उनके संबंध के स्पष्ट सबूत न मिले.

Intro:नोट। ए एडीआर प्रमुख संजय सिंह के शहर से लगातार बाहर होने की वजह से उनकी बाइट मोजो पर नहीं हो सकी है ।उसे एफटीपी से भेजा जा रहा है। कृपया इस्तेमाल करने का कष्ट करें।
धन्यवाद।

लखनऊ. देश में अब तक बेनामी संपत्ति को काला धन छुपाने का प्रमुख ठिकाना माना जाता रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक दलों की संदिग्ध भूमिका ने भी सवाल खड़े किए हैं। राजनीतिक दलों की तेजी से बढ़ती तादाद हालांकि विभिन्न सामाजिक वर्गों की राजनीतिक चेतना को भी दर्शाती है लेकिन रिटायर नौकरशाहों की ओर से बनाए गए राजनीतिक दल संदेह का माहौल बना रहे हैं।


Body:देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 23 सौ से भी ज्यादा है जबकि 5 साल पहले 2014 में इनकी तादाद1866 हुआ करती थी। यानी हर साल औसतन 60 नए राजनीतिक दल पंजीकृत हुए हैं। राजनीतिक दलों के पंजीकरण की है रफ्तार देश की आजादी से अब तक के 70 सालों में सबसे ज्यादा है। नए राजनीतिक दलों में बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो पहले नौकरशाह रहे हैं और रिटायर होने के बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बना डाली है कई ऐसे राजनीतिक दल भी हैं जो समाज विशेष का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन उनके सर्वे सर्वा लोगों के नाम अपराध या उद्योग जगत से जुड़े हुए हैं यही वजह है की राजनीतिक दलों के गठन पर सवालिया निशान लगाए जा रहे हैं और माना जा रहा है कि राजनीतिक दलों को काला धन छुपाने का कानून सम्मत ठिकाना बना लिया गया है।

बाइट /संजय सिंह, प्रमुख एडीआर

भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को किसी स्वतंत्र राष्ट्र जैसी आजादी दे रखी है, मसलन निर्वाचन आयोग में चंदा कहां से आया है और कितना आया है इसकी निगरानी का कोई तंत्र नहीं है । यही इतना नहीं राजनीतिक दलों को जन सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया है लिहाजा उनके कामकाज और खर्च पर भी कोई सवाल नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दलों के अकाउंट में कितना पैसा है, किसने जमा किया है जो दान करने वाला है उसका राजनीतिक दलों से कैसा संबंध है ।यह सब कुछ भी जान पाना संभव नहीं है ।भारत का कानून सभी राजनीतिक दलों का पूरा संरक्षण करता है। यही वजह है कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण कराने के बाद अगर उनमें काला धन छुपाया जाता है तो उसकी जांच पड़ताल और संदिग्ध लेनदेन पर रोक लगाना संभव नहीं है। जब तक किसी आपराधिक गिरोह से उनके संबंध के स्पष्ट सबूत ना मिल सके।

पीटीसी अखिलेश तिवारी


Conclusion:
Last Updated : Apr 8, 2019, 8:58 PM IST
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