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किसी नायक से कम नहीं 'गुलाबो-सिताबो' का असली किरदार, जानें क्या है पूरी कहानी

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Published : Jun 21, 2019, 9:07 AM IST

बिग बी अमिताभ बच्चन इन दिनों अपनी फिल्म गुलाबो-सिताबो को लेकर सुर्खियों में हैं. राजधानी में इस फिल्म की शूटिंग भी शुरू हो चुकी है. कठपुतलियों पर आधारित उनकी इस फिल्म से कठपुतली से जुड़ी एक दिलचस्प और प्रेरणादायी रीयल लाइफ कहानी सामने आती है. इस कहानी के किरदार अमिताभ बच्चन नहीं बल्कि लखनऊ के अलख नारायण श्रीवास्तव हैं.

कठपुतलियों की कहानी 'गुलाबो-सिताबो'.

लखनऊ: सदी के महानायक अमिताभ बच्चन इस वक्त नवाबों की नगरी लखनऊ में कठपुतलियों पर आधारित फिल्म 'गुलाबो-सिताबो' की शूटिंग कर रहे हैं. 'गुलाबो-सिताबो' कठपुतलियां राजधानी की संस्कृति की पहचान रही ही हैं. इस पंरपरा को शुरू करने वाले अलख नारायण श्रीवास्तव भी लखनऊ में ही रहते हैं.

गुलाबो-सिताबो के असली नायक हैं लखनऊ के अलख नारायण श्रीवास्तव.
कैसे शुरू किया कठपुतलियों का कामअलख नारायण श्रीवास्तव ने सन् 1958 से कठपुतली पर काम करना शुरू किया था. इसके लिए नैनी कल्चरल इंस्टीट्यूट से उन्होंने बाकायदा प्रशिक्षण लिया था. नैनी इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लेने के बाद अलग नारायण श्रीवास्तव दिल्ली चले गए जहां उस वक्त इलाहाबाद के डीएम जगत मोहन रैना की पत्नी विमला रैना के रंगमंच थिएटर के माध्यम से पपेट शो करना शुरू किया. तब सेआज तक वह इस पंरपरा की कोशिश में जुटे हैं.

खूब मकबूल हुए अलख नारायण
अपनी प्रसिद्धि के बारे में श्रीवास्तव कहते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इंडिया 58 एग्जीबिशन में पपेट शो देखकर ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट बोर्ड के चेयरमैन कमलादेवी चट्टोपाध्याय से उनकी तारीफ की थी. इसके बाद वह इस बोर्ड से जुड़ गए और उनका प्रचार-प्रसार करने लगे. श्रीवास्तव कहते हैं कि इसके अलावा उन्होंने स्कूल-कॉलेजों और मिनिस्ट्री में जाकर भी कठपुतलियों के साथ काफी पपेट शो किए.

बिग बी की फिल्म को लेकर क्या बोले अलख नारायण
गुलाबो-सिताबो पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन इस वक्त लखनऊ में शूटिंग कर रहे हैं. जब श्रीवास्तव से पूछा गया कि वह बच्चन से कभी मिले हैं तो उन्होंने बताया कि काफी वर्ष पहले पुणे में पपेट शो की वर्कशॉप के दौरान उनकी मुलाकात बिग बी से हुई थी. अलख नारायण श्रीवास्तव कहते हैं कि ईटीवी भारत के माध्यम से उन्हें पता चला कि अमिताभ बच्चन अब गुलाबो-सिताबो कठपुतलियों के ऊपर फिल्म बना रहे हैं. इस बारे में बच्चन से उनकी कोई बातचीत नहीं हुई है.

सरकार से खफा हैं अलख नारायण
सरकार की तरफ से कठपुतलियों को प्रोत्साहन देने की बात पर श्रीवास्तव थोड़े मायूस से नजर आते हैं. वह कहते हैं कि सबसे ज्यादा उपेक्षा सरकार की ओर से ही मिली है. यह हमारी विडंबना है कि कभी संस्कृति को आगे बढ़ाने के बारे में सरकार ने सोचा ही नहीं. हमने कई वर्कशॉप कीं और पत्र लिखे लेकिन किसी भी तरह से सरकार की ओर से न कोई पहल की गई और न ही सरकार की तरफ से कोई जवाब मिला.

कठपुतली का काम करने वालों की स्थिति दयनीय
बदलते जमाने में पपेट पर काम कर रहे लोगों के बारे में बताते हुए श्रीवास्तव कहते हैं कि इस वक्त कठपुतली जैसी अपनी संस्कृति पर काम करने वाले लोगों की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है. कुछ लोग अपनी रोजी रोटी के लिए काम तो कर रहे हैं लेकिन उनकी अगली पीढ़ियां इस काम को छोड़ती जा रही हैं.

सेना के साथ लद्दाख में किया यादगार शो
अपने जीवन में किए गए पपेट शो के यादगार लम्हों को बताते हुए स्वास्थ्य कहते हैं कि इन लम्हों में सबसे बड़ा हाथ मेरी पत्नी का है. मेरी पत्नी हमेशा से ही कठपुतलियां बनाने में मेरी मदद करती आ रही हैं. तमाम वर्कशॉप में वह मेरे साथ खड़ी रहीं हैं. मेरे यादगार लम्हों में सबसे यादगार लम्हा हमारे सेना के जवानों के साथ था जब हम नेफा लद्दाख में पपेट शो के लिए गए थे. वहां लड़ाई के दौरान जवानों के मनोरंजन के लिए हमें पपेट शो करने को कहा जाता था. हमारी पपेट शो से सेना के जवान न केवल प्रोत्साहित होते थे बल्कि इस शो का एक हिस्सा भी बन जाते थे. यह मेरे लिए सबसे अच्छा और यादगार लम्हा रहा है.

युवा पीढ़ी को संदेश
कठपुतली की संस्कृति को आगे बढ़ाने के बारे में अलख नारायण श्रीवास्तव कहते हैं कि सरकार की ओर से तो पहल होनी ही चाहिए लेकिन साथ ही आम लोगों में भी इस बात के प्रति जागरूकता बढ़ानी चाहिए. यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है. कठपुतलियां बेजान होती हैं लेकिन किसी भी बड़े से बड़े संदेश को बेहद सहजता के साथ कह सकती हैं. साथ ही कला और संस्कृति के लिहाज से भी यह हमारे समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में हमारी आने वाली पीढ़ियों को जरूर अपनी संस्कृति के बारे में जानना चाहिए.

लखनऊ: सदी के महानायक अमिताभ बच्चन इस वक्त नवाबों की नगरी लखनऊ में कठपुतलियों पर आधारित फिल्म 'गुलाबो-सिताबो' की शूटिंग कर रहे हैं. 'गुलाबो-सिताबो' कठपुतलियां राजधानी की संस्कृति की पहचान रही ही हैं. इस पंरपरा को शुरू करने वाले अलख नारायण श्रीवास्तव भी लखनऊ में ही रहते हैं.

गुलाबो-सिताबो के असली नायक हैं लखनऊ के अलख नारायण श्रीवास्तव.
कैसे शुरू किया कठपुतलियों का कामअलख नारायण श्रीवास्तव ने सन् 1958 से कठपुतली पर काम करना शुरू किया था. इसके लिए नैनी कल्चरल इंस्टीट्यूट से उन्होंने बाकायदा प्रशिक्षण लिया था. नैनी इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लेने के बाद अलग नारायण श्रीवास्तव दिल्ली चले गए जहां उस वक्त इलाहाबाद के डीएम जगत मोहन रैना की पत्नी विमला रैना के रंगमंच थिएटर के माध्यम से पपेट शो करना शुरू किया. तब सेआज तक वह इस पंरपरा की कोशिश में जुटे हैं.

खूब मकबूल हुए अलख नारायण
अपनी प्रसिद्धि के बारे में श्रीवास्तव कहते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इंडिया 58 एग्जीबिशन में पपेट शो देखकर ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट बोर्ड के चेयरमैन कमलादेवी चट्टोपाध्याय से उनकी तारीफ की थी. इसके बाद वह इस बोर्ड से जुड़ गए और उनका प्रचार-प्रसार करने लगे. श्रीवास्तव कहते हैं कि इसके अलावा उन्होंने स्कूल-कॉलेजों और मिनिस्ट्री में जाकर भी कठपुतलियों के साथ काफी पपेट शो किए.

बिग बी की फिल्म को लेकर क्या बोले अलख नारायण
गुलाबो-सिताबो पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन इस वक्त लखनऊ में शूटिंग कर रहे हैं. जब श्रीवास्तव से पूछा गया कि वह बच्चन से कभी मिले हैं तो उन्होंने बताया कि काफी वर्ष पहले पुणे में पपेट शो की वर्कशॉप के दौरान उनकी मुलाकात बिग बी से हुई थी. अलख नारायण श्रीवास्तव कहते हैं कि ईटीवी भारत के माध्यम से उन्हें पता चला कि अमिताभ बच्चन अब गुलाबो-सिताबो कठपुतलियों के ऊपर फिल्म बना रहे हैं. इस बारे में बच्चन से उनकी कोई बातचीत नहीं हुई है.

सरकार से खफा हैं अलख नारायण
सरकार की तरफ से कठपुतलियों को प्रोत्साहन देने की बात पर श्रीवास्तव थोड़े मायूस से नजर आते हैं. वह कहते हैं कि सबसे ज्यादा उपेक्षा सरकार की ओर से ही मिली है. यह हमारी विडंबना है कि कभी संस्कृति को आगे बढ़ाने के बारे में सरकार ने सोचा ही नहीं. हमने कई वर्कशॉप कीं और पत्र लिखे लेकिन किसी भी तरह से सरकार की ओर से न कोई पहल की गई और न ही सरकार की तरफ से कोई जवाब मिला.

कठपुतली का काम करने वालों की स्थिति दयनीय
बदलते जमाने में पपेट पर काम कर रहे लोगों के बारे में बताते हुए श्रीवास्तव कहते हैं कि इस वक्त कठपुतली जैसी अपनी संस्कृति पर काम करने वाले लोगों की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है. कुछ लोग अपनी रोजी रोटी के लिए काम तो कर रहे हैं लेकिन उनकी अगली पीढ़ियां इस काम को छोड़ती जा रही हैं.

सेना के साथ लद्दाख में किया यादगार शो
अपने जीवन में किए गए पपेट शो के यादगार लम्हों को बताते हुए स्वास्थ्य कहते हैं कि इन लम्हों में सबसे बड़ा हाथ मेरी पत्नी का है. मेरी पत्नी हमेशा से ही कठपुतलियां बनाने में मेरी मदद करती आ रही हैं. तमाम वर्कशॉप में वह मेरे साथ खड़ी रहीं हैं. मेरे यादगार लम्हों में सबसे यादगार लम्हा हमारे सेना के जवानों के साथ था जब हम नेफा लद्दाख में पपेट शो के लिए गए थे. वहां लड़ाई के दौरान जवानों के मनोरंजन के लिए हमें पपेट शो करने को कहा जाता था. हमारी पपेट शो से सेना के जवान न केवल प्रोत्साहित होते थे बल्कि इस शो का एक हिस्सा भी बन जाते थे. यह मेरे लिए सबसे अच्छा और यादगार लम्हा रहा है.

युवा पीढ़ी को संदेश
कठपुतली की संस्कृति को आगे बढ़ाने के बारे में अलख नारायण श्रीवास्तव कहते हैं कि सरकार की ओर से तो पहल होनी ही चाहिए लेकिन साथ ही आम लोगों में भी इस बात के प्रति जागरूकता बढ़ानी चाहिए. यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है. कठपुतलियां बेजान होती हैं लेकिन किसी भी बड़े से बड़े संदेश को बेहद सहजता के साथ कह सकती हैं. साथ ही कला और संस्कृति के लिहाज से भी यह हमारे समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में हमारी आने वाली पीढ़ियों को जरूर अपनी संस्कृति के बारे में जानना चाहिए.

Intro:लखनऊ। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन इस वक्त नवाबों की नगरी लखनऊ में कठपुतलियों पर आधारित फिल्म गुलाबो सिताबो की शूटिंग कर रहे हैं गुलाबो सिताबो कठपुतलियां हमारी संस्कृति की तो पहचान रही हैं साथ ही इसे शुरू करने वाले अलख नारायण श्रीवास्तव भी लखनऊ में ही रहते हैं।


Body:वीओ1
कठपुतलियों पर बात करते हुए अलग नारायण श्रीवास्तव कहते हैं कि मैंने सन 1958 से कठपुतली पर काम करना शुरू किया था। नैनी कल्चरल इंस्टीट्यूट में कठपुतली की ट्रेनिंग लेकर मैंने इस पर काम करना शुरू किया और तब से लेकर आज तक के लिए को बढ़ाने के उपाय मैं काम कर रहा हूं। पपेट के बारे में बताते हुए श्रीवास्तव कहते हैं कि पपेट मूलतः 5 तरह के होते हैं इनमें स्ट्रिंग पपेट, रॉड पपेट, लेदर पपेट और शैडो पपेट शामिल है।

नैनी इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लेने के बाद अलग नारायण श्रीवास्तव दिल्ली चले गए जहां पर उस वक्त के इलाहाबाद के डीएम जगत मोहन रैना की पत्नी विमला रैना के रंगमंच थिएटर के माध्यम से पपेट शो करना शुरू किया स्थान के दौरान अपनी प्रसिद्धि के बारे में श्रीवास्तव कहते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इंडिया 58 एग्जीबिशन में पपेट शो देखकर ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट बोर्ड के चेयरमैन कमलादेवी चट्टोपाध्याय से उनकी तारीफ की जिसके बाद वह इस बोर्ड से जुड़ गए और उनका प्रचार-प्रसार करने लगे श्रीवास्तव कहते हैं कि इसके अलावा हमने स्कूल कॉलेजों और मिनिस्ट्री में जाकर भी कठपुतलियों के साथ काफी पपेट शो किए।

गुलाबो सिताबो पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन इस पथ लखनऊ में शूटिंग कर रहे हैं इस बाबत जब हमने श्रीवास्तव से इस बारे में पूछा कि वह बच्चन से कभी मिले हैं तो उन्होंने बताया कि काफी वर्षों पहले पुणे में पपेट शो की वर्कशॉप के दौरान उनकी मुलाकात बिग बी से हुई थी। अलख नारायण श्रीवास्तव कहते हैं कि ईटीवी भारत के माध्यम से उन्हें पता चला कि अमिताभ बच्चन अब गुलाबो सिताबो कठपुतलियों के ऊपर फिल्म बना रहे हैं इस बारे में बच्चन से उनकी कोई बातचीत नहीं हुई है।

सरकार की तरफ से कठपुतलियों को प्रोत्साहन देने की बात पर श्रीवास्तव थोड़े मायूस से नजर आते हैं वह कहते हैं कि सबसे ज्यादा उपेक्षा सरकार के द्वारा ही मिली है यह हमारी विडंबना है कि कभी संस्कृति को आगे बढ़ाने के बारे में सरकार ने सोचा ही नहीं हमने कई वर्कशॉप की और पत्र लिखें लेकिन किसी भी तरह से सरकार की ओर से न कोई पहल की गई और न ही सरकार की तरफ से कोई जवाब मिला।

बदलते जमाने में पपेट पर काम कर रहे लोगों के बारे में बताते हुए श्रीवास्तव कहते हैं कि इस वक्त कठपुतली जैसी अपनी संस्कृति की को काम करने वाले लोगों की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है कुछ लोग अपनी रोजी रोटी के लिए काम तो कर रहे हैं पर आगे आने वाले लोग यानी उनकी अगली पीढ़ियां इस काम को छोड़ती जा रही हैं।

अपने जीवन में किए गए पपेट शो के यादगार लम्हों को बताते हुए स्वास्थ्य कहते हैं कि इन लम्हों में सबसे बड़ा हाथ मेरी पत्नी का है। मेरी पत्नी हमेशा से ही कठपुतलियां को बनाने में मेरी मदद करती आ रही हैं। तमाम वर्कशॉप में वह मेरे साथ खड़ी रहीं हैं। मेरे यादगार लम्हों में सबसे यादगार लम्हा हमारे सेना के जवानों के साथ था। जब हम नेफा लद्दाख में पपेट शो के लिए गए थे। वहां लड़ाई के दौरान जवानों के मनोरंजन के लिए हमें पपेट शो करने को कहा जाता था। हमारी पपेट शो से सेना के जवान न केवल प्रोत्साहित होते थे बल्कि इस शो का एक हिस्सा भी बन जाते थे। यह मेरे लिए सबसे अच्छा और यादगार लम्हा रहा है।


Conclusion:कठपुतली की संस्कृति को आगे बढ़ाने के बारे में अलख नारायण श्रीवास्तव कहते हैं कि सरकार की ओर से तो पहल होनी ही चाहिए पर साथ ही हमारे आसपास के लोगों में भी इस बात के प्रति जागरूकता बढ़ानी चाहिए किया हमारी संस्कृति का हिस्सा है कठपुतलियां बेजान होती है लेकिन किसी भी बड़े से बड़े संदेश को बेहद सहजता के साथ कह सकती हैं साथ ही कला और संस्कृति के लिहाज से भी यह हमारे समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण है ऐसे में हमारी आने वाली पीढ़ियों को जरूर अपनी संस्कृति के बारे में जानना चाहिए।

पैकेज- अलख नारायण श्रीवास्तव के साथ बातचीत।

रामांशी मिश्रा
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