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सिलेबस में बदलाव से नाराज योगेंद्र यादव, एनसीईआरटी की सलाहकार टीम से अपना नाम हटाने का किया अनुरोध

योगेंद्र यादव और सुहास पलशिकर ने एनसीईआरटी की सलाहकार टीम से अपना नाम हटाने की गुजारिश की है. उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में एनसीआरटी की पुस्तकों में जिस तरह के बदलाव किए गए हैं, उसके बाद वे चाहते हैं कि उनका नाम ऐसी किसी भी किताबों से न जुड़े.

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Published : Jun 9, 2023, 5:23 PM IST

Updated : Jun 9, 2023, 6:54 PM IST

yogendra yadav
योगेंद्र यादव

नई दिल्ली : एनसीईआरटी की पुस्तकों में हुए बदलाव पर योगेंद्र यादव और सुहास पलशिकर ने असहमति जताई है. दोनों लेखकों ने एनसीईआरटी निदेशक डीएस सकलानी से अनुरोध किया है कि वे उनके नामों को सलाहकार टीम से हटा दें. दोनों लेखकों के नाम अभी एनसीईआरटी की सलाहकार टीम में दर्ज हैं. इन दोनों ने क्लास नौवीं से 12 वीं तक के राजनीतिक विज्ञान की किताबों के लेखन में योगदान किया था. इनकी लिखी पुस्तकों को 2006-07 में प्रकाशित किया गया था.

कोविड-19 की वजह से केंद्र सरकार ने एनसीईआरटी के सिलेबस में बदलाव किया है, ताकि छात्रों पर कम दबाव रहे. इनमें से कुछ ऐसे चैप्टर्स या टॉपिक हटा दिए गए हैं, जिस पर विवाद है. जैसे 2002 का गुजरात दंगा, जाति व्यवस्था, मुगल शासन वगैरह. योगेंद्र यादव और पलशिकर ने एनसीईआरटी निदेशक सकलानी को इस बाबत एक चिट्ठी लिखी है.

इसमें उन्होंने लिखा, 'हमने इन बदलावों में कोई भी शैक्षिक तार्किकता नहीं देखी है. हमने पाया कि कुछ तथ्यों को इस हद तक बदला गया है कि इससे उसकी सार्थकता ही खत्म हो गई है. इस नुकसान को पाटना मुश्किल है.'

अपनी चिट्ठी में उन्होंने लिखा है, 'हमें लगता है कि किसी भी तथ्य या टेक्स्ट का अपना एक उद्देश्य होता है, उसकी अपनी जगह होती है, आप इन्हें बेतरतीब तरीके से नहीं हटा सकते हैं. इससे उन तथ्यों के साथ न्याय करना संभव नहीं होगा, ये बदलाव सिर्फ सत्ता में बैठे व्यक्ति को खुश करने के लिए किया जाए तो यह उचित नहीं होगा.'

उन्होंने कहा कि राजनीतिक विज्ञान के छात्रों को इस तरह से प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता है, और हमें लगता है कि ऐसे किसी भी तथ्यों या विषयों के साथ हमारा नाम नहीं जोड़ा जाना चाहिए. इसलिए हमारे नाम सभी प्रिंट और ऑनलाइन एडिशन वाली किताबों से हटाए जाएं.

आपको बता दें कि एनसीईआरटी ने इन बदलावों को जरूरत बताया था. इसे रैशनलाइजेशन ऑफ टेक्स्ट बताया था. बताया गया कि छात्रों का बोझ कम होगा. कोविड पैंडेमिक के बाद उन पर जो मानसिक दबाव बना है, उसे कम करने के लिए ये बदलाव किए गए हैं. हालांकि, काउंसल ने कहा कि ये बदलाव सिर्फ 2023-24 के लिए हैं. आगे नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क की अनुशंसा पर इसे विकसित किया जाएगा.

ये भी पढ़ें : NCERT की किताबों से अंश हटने पर शिक्षाविदों ने जताई चिंता, कहा 'भारत का विचार खतरे में है'

नई दिल्ली : एनसीईआरटी की पुस्तकों में हुए बदलाव पर योगेंद्र यादव और सुहास पलशिकर ने असहमति जताई है. दोनों लेखकों ने एनसीईआरटी निदेशक डीएस सकलानी से अनुरोध किया है कि वे उनके नामों को सलाहकार टीम से हटा दें. दोनों लेखकों के नाम अभी एनसीईआरटी की सलाहकार टीम में दर्ज हैं. इन दोनों ने क्लास नौवीं से 12 वीं तक के राजनीतिक विज्ञान की किताबों के लेखन में योगदान किया था. इनकी लिखी पुस्तकों को 2006-07 में प्रकाशित किया गया था.

कोविड-19 की वजह से केंद्र सरकार ने एनसीईआरटी के सिलेबस में बदलाव किया है, ताकि छात्रों पर कम दबाव रहे. इनमें से कुछ ऐसे चैप्टर्स या टॉपिक हटा दिए गए हैं, जिस पर विवाद है. जैसे 2002 का गुजरात दंगा, जाति व्यवस्था, मुगल शासन वगैरह. योगेंद्र यादव और पलशिकर ने एनसीईआरटी निदेशक सकलानी को इस बाबत एक चिट्ठी लिखी है.

इसमें उन्होंने लिखा, 'हमने इन बदलावों में कोई भी शैक्षिक तार्किकता नहीं देखी है. हमने पाया कि कुछ तथ्यों को इस हद तक बदला गया है कि इससे उसकी सार्थकता ही खत्म हो गई है. इस नुकसान को पाटना मुश्किल है.'

अपनी चिट्ठी में उन्होंने लिखा है, 'हमें लगता है कि किसी भी तथ्य या टेक्स्ट का अपना एक उद्देश्य होता है, उसकी अपनी जगह होती है, आप इन्हें बेतरतीब तरीके से नहीं हटा सकते हैं. इससे उन तथ्यों के साथ न्याय करना संभव नहीं होगा, ये बदलाव सिर्फ सत्ता में बैठे व्यक्ति को खुश करने के लिए किया जाए तो यह उचित नहीं होगा.'

उन्होंने कहा कि राजनीतिक विज्ञान के छात्रों को इस तरह से प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता है, और हमें लगता है कि ऐसे किसी भी तथ्यों या विषयों के साथ हमारा नाम नहीं जोड़ा जाना चाहिए. इसलिए हमारे नाम सभी प्रिंट और ऑनलाइन एडिशन वाली किताबों से हटाए जाएं.

आपको बता दें कि एनसीईआरटी ने इन बदलावों को जरूरत बताया था. इसे रैशनलाइजेशन ऑफ टेक्स्ट बताया था. बताया गया कि छात्रों का बोझ कम होगा. कोविड पैंडेमिक के बाद उन पर जो मानसिक दबाव बना है, उसे कम करने के लिए ये बदलाव किए गए हैं. हालांकि, काउंसल ने कहा कि ये बदलाव सिर्फ 2023-24 के लिए हैं. आगे नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क की अनुशंसा पर इसे विकसित किया जाएगा.

ये भी पढ़ें : NCERT की किताबों से अंश हटने पर शिक्षाविदों ने जताई चिंता, कहा 'भारत का विचार खतरे में है'

Last Updated : Jun 9, 2023, 6:54 PM IST
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