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सपा गठबंधन ने पहले फेज में बढ़त का किया दावा, 'अगले चरण में बसपा बिगाड़ सकती है खेल'

यूपी विधानसभा चुनाव के पहले फेज में 2017 के मुकाबले कम वोटर मतदान के लिए निकले. माना जा रहा है इससे बीजेपी को नुकसान और सपा गठबंधन को फायदा हो सकता है. मगर अभी भी यूपी में 6 चरणों की वोटिंग बाकी है. दूसरे फेज में बीएसपी भी अखिलेश का खेल खराब कर सकती है. भाजपा ने रिकवरी के लिए रणनीति बनाई है. क्या है पहले फेज की वोटिंग का आकलन. दूसरे फेज में कैसा रहेगा चुनावी रुख. पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार श्रीनंद झा का आकलन.

up assembly election
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Published : Feb 11, 2022, 2:08 PM IST

Updated : Feb 11, 2022, 3:05 PM IST

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए पहले चरण के लिए 10 फरवरी को 11 जिलों की 58 सीटों के लिए वोट डाले गए. उस दिन वोटिंग के अलावा दो प्रमुख घटनाएं हुईं. पहला, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लखीमपुर खीरी मामले के मुख्य आरोपी केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष को जमानत पर रिहा करने फैसला सुनाया. दूसरा, बीजेपी नेता और राज्य के एक मंत्री मतदान प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाते नजर आए. इन दो घटनाओं के बाद पहले फेज के मतदान से एक बड़ा नतीजा यह सामने आया है कि इस चुनाव में सभी पक्ष बड़ी तैयारी से लड़ाई लड़ रहे हैं. अब यूपी का मुकाबला मुख्य रूप से दो पार्टी बीजेपी और समाजवादी पार्टी गठबंधन के बीच हो गया है.

इस राजनीतिक स्थिति को इस तरह भी समझी जा सकती है कि बीजेपी 2017 में जीती गईं सभी सीट को बचाकर नहीं रख पाएगी. उसने पांच साल पहले राज्य विधानसभा की 403 सीटों में से 300 से अधिक सीटें जीती थीं. इस सच को जानने के बाद भगवा पार्टी के नेता यूपी में बचे बाकी छह चरणों के लिए रणनीति बनाने में जुट गए हैं.

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माना जा रहा है कि पहले चरण की वोटिंग के बाद बीजेपी पिछड़ गई है, पार्टी अब बाकी बचे 345 सीटों के लिए नई सिरे से रणनीति बना रही है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट से आशीष मिश्रा को मिली जमानत से भाजपा को उन ब्राह्मण वोटरों तक पहुंचने में मदद मिलेगी, जो कथित तौर पर पार्टी से नाखुश हैं. पार्टी ने पश्चिमी यूपी में 14 फरवरी को होने वाले दूसरे चरण के मतदान से पहले अपने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है. बीजेपी को थोड़ी राहत इस आंकड़े से मिल सकती है कि पहले चरण में 60.17 फीसदी मतदान हुआ, जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कम है. 2017 में 64.25 फीसदी वोट पड़े थे.

माना जाता है कि जब वोट पर्सेंटेज में बढ़ोतरी होती है तो सत्ता में परिवर्तन होता है. मगर इस बार वोटिंग में किसी तरह की लहर नहीं दिखी है. हालांकि यह कहा जा रहा है कि पहले चरण का मतदान सत्तारुढ़ दल यानी बीजेपी के पक्ष में नहीं रहा है.

उदाहरण के लिए, शहरी क्षेत्रों में वोटिंग पर्सेंटेज कम रहा, जहां बीजेपी पारंपरिक रूप से मजबूत रही है. जबकि पहले चरण की वोटिंग के दौरान ग्रामीण मतदाताओं ने जमकर वोट डाले. ग्रामीण इलाकों में मतदान का प्रतिशत अधिक रहा है. पहले चरण के 41 फीसदी मतदाता शहरी क्षेत्रों में थे, इसलिए माना जा सकता है कि भाजपा के परंपरागत वोटर उदासीन रहे और वोटिंग नहीं की. रिपोर्टों से पता चलता है कि मेरठ कैंट और आगरा जैसे पारंपरिक गढ़ माने जाने वाली सीटों पर भी बीजेपी उम्मीदवार संघर्ष कर रहे हैं. खबरों के मुताबिक उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य खुद आगरा में संघर्ष कर रही हैं. भाजपा का अपना आंतरिक आकलन भी है कि पार्टी 2017 के अपने प्रदर्शन को बरकरार नहीं रख पाएगी. अब सवाल यह है कि वेस्टर्न यूपी में भाजपा को बड़ा नुकसान होगा ?

किसके पास होगी ताकत : 2017 में भाजपा ने पहले चरण की 58 सीटों में से 53 सीटें जीत ली थीं, जबकि सपा, बसपा और रालोद सहित विपक्षी दल एक साथ 5 सीटों पर सिमट गए थे. इस क्षेत्र में बीजेपी को 46.3 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि सपा को 21 प्रतिशत और बसपा को 22 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा था. नए हालात में समाजवादी पार्टी को फायदा हो सकता है. अगर बीजेपी के वोट प्रतिशत में 15 फीसदी की कमी हो जाती है और समाजवादी पार्टी का वोट शेयर 15 फीसदी बढ़ जाता है तो सपा की संभावना बेहतर हो सकती है.

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अखिलेश और जयंत की जोड़ी को वेस्टर्न यूपी में फायदा मिल सकता है.

पिछले पांच साल में सामाजिक-राजनीतिक हालातों में कई बदलाव हुए हैं. किसान आंदोलन, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों के कारण राजनीतिक हवा भी बदली है. इसमें समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने चतुराई से कैंडिडेट उतारे हैं. उन्होंने दबाव के बावजूद बड़े पैमाने पर मुस्लिम कैंडिडेट नहीं उतारे. मुजफ्फरनगर और मेरठ जिलों में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में सपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है. अखिलेश यादव ने मुजफ्फरनगर के कादिर राणा परिवार या सहारनपुर में इमरान मसूद जैसे शक्तिशाली मुस्लिम नेताओं के भी टिकट काट दिए. वह अपने कट्टर समर्थक यादवों को भी तोल-मोल कर टिकट दिया.

पहले फेज में काम नहीं आया मुद्दा : अखिलेश की रणनीति का नतीजा है कि भाजपा ने समाजवादी पार्टी के पहले दौर के शासनकाल में प्रचलित 'गुंडा और माफिया शासन' को मुद्दा नहीं बना पाई. अब इस स्थिति में भाजपा को नुकसान होता दिख रहा है. हालांकि पार्टी अभी भी यूपी में सत्ता की लड़ाई लड़ने का दावा कर सकती है.

पिछले विधानसभा चुनाव में 300 से अधिक सीटें जीती थीं. भगवा पार्टी ने राज्य भर में 100 से अधिक बफर सीटों की बढ़त हासिल की थी. हालांकि बीजेपी को चुनौती देने के लिए सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है. लेकिन, सवाल यह है कि सपा का यह प्रदर्शन पर्याप्त हैं?

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दूसरे चरण में मायावती ने सर्वाधिक मुसलमान कैंडिडेट उतारे हैं.

सेकंड फेज में मुसलमानों और दलितों का रुख क्या होगा : 14 फरवरी को दूसरे चरण में पश्चिमी यूपी के नौ जिलों की 55 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इन सीटों पर मुसलमानों की आबादी 27 फीसदी है. रामपुर और सहारनपुर के कुछ इलाकों में मुस्लिम समुदाय की आबादी 45 प्रतिशत से अधिक है. इन क्षेत्रों में दलित भी जनसंख्या भी पर्याप्त है और मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी इलाके में पारंपरिक रूप से मजबूत रही है. 2017 में बीजेपी की लहर के दौरान भी बीएसपी के उम्मीदवार इन 55 सीटों में से 20 पर दूसरे स्थान पर रहे थे.

जहां दूसरे चरण में भी मुस्लिम-जाट गठबंधन से सपा गठबंधन को फायदा होने की उम्मीद है, वहीं मायावती भी अखिलेश का खेल बिगाड़ने की क्षमता रखती हैं. इस इलाके में मुस्लिम वोट के बंटवारे से भाजपा को फायदा मिल सकता है. दिलचस्प बात यह है कि बसपा ने दूसरे चरण की 16 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है. कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में, भाजपा को छोड़कर सभी प्रमुख दलों ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं. यानी दूसरे चरण में बीजेपी की उम्मीद 'धर्मनिरपेक्ष वोटों' के बंटवारे की संभावना पर टिकी हुई है.

पढ़ें : क्या कैराना बीजेपी को उत्तरप्रदेश की सत्ता तक दोबारा पहुंचाएगा ?

पढ़ें: जानिए, उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव में जीत बीजेपी के लिए जरूरी क्यों है

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए पहले चरण के लिए 10 फरवरी को 11 जिलों की 58 सीटों के लिए वोट डाले गए. उस दिन वोटिंग के अलावा दो प्रमुख घटनाएं हुईं. पहला, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लखीमपुर खीरी मामले के मुख्य आरोपी केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष को जमानत पर रिहा करने फैसला सुनाया. दूसरा, बीजेपी नेता और राज्य के एक मंत्री मतदान प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाते नजर आए. इन दो घटनाओं के बाद पहले फेज के मतदान से एक बड़ा नतीजा यह सामने आया है कि इस चुनाव में सभी पक्ष बड़ी तैयारी से लड़ाई लड़ रहे हैं. अब यूपी का मुकाबला मुख्य रूप से दो पार्टी बीजेपी और समाजवादी पार्टी गठबंधन के बीच हो गया है.

इस राजनीतिक स्थिति को इस तरह भी समझी जा सकती है कि बीजेपी 2017 में जीती गईं सभी सीट को बचाकर नहीं रख पाएगी. उसने पांच साल पहले राज्य विधानसभा की 403 सीटों में से 300 से अधिक सीटें जीती थीं. इस सच को जानने के बाद भगवा पार्टी के नेता यूपी में बचे बाकी छह चरणों के लिए रणनीति बनाने में जुट गए हैं.

up assembly election
माना जा रहा है कि पहले चरण की वोटिंग के बाद बीजेपी पिछड़ गई है, पार्टी अब बाकी बचे 345 सीटों के लिए नई सिरे से रणनीति बना रही है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट से आशीष मिश्रा को मिली जमानत से भाजपा को उन ब्राह्मण वोटरों तक पहुंचने में मदद मिलेगी, जो कथित तौर पर पार्टी से नाखुश हैं. पार्टी ने पश्चिमी यूपी में 14 फरवरी को होने वाले दूसरे चरण के मतदान से पहले अपने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है. बीजेपी को थोड़ी राहत इस आंकड़े से मिल सकती है कि पहले चरण में 60.17 फीसदी मतदान हुआ, जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कम है. 2017 में 64.25 फीसदी वोट पड़े थे.

माना जाता है कि जब वोट पर्सेंटेज में बढ़ोतरी होती है तो सत्ता में परिवर्तन होता है. मगर इस बार वोटिंग में किसी तरह की लहर नहीं दिखी है. हालांकि यह कहा जा रहा है कि पहले चरण का मतदान सत्तारुढ़ दल यानी बीजेपी के पक्ष में नहीं रहा है.

उदाहरण के लिए, शहरी क्षेत्रों में वोटिंग पर्सेंटेज कम रहा, जहां बीजेपी पारंपरिक रूप से मजबूत रही है. जबकि पहले चरण की वोटिंग के दौरान ग्रामीण मतदाताओं ने जमकर वोट डाले. ग्रामीण इलाकों में मतदान का प्रतिशत अधिक रहा है. पहले चरण के 41 फीसदी मतदाता शहरी क्षेत्रों में थे, इसलिए माना जा सकता है कि भाजपा के परंपरागत वोटर उदासीन रहे और वोटिंग नहीं की. रिपोर्टों से पता चलता है कि मेरठ कैंट और आगरा जैसे पारंपरिक गढ़ माने जाने वाली सीटों पर भी बीजेपी उम्मीदवार संघर्ष कर रहे हैं. खबरों के मुताबिक उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य खुद आगरा में संघर्ष कर रही हैं. भाजपा का अपना आंतरिक आकलन भी है कि पार्टी 2017 के अपने प्रदर्शन को बरकरार नहीं रख पाएगी. अब सवाल यह है कि वेस्टर्न यूपी में भाजपा को बड़ा नुकसान होगा ?

किसके पास होगी ताकत : 2017 में भाजपा ने पहले चरण की 58 सीटों में से 53 सीटें जीत ली थीं, जबकि सपा, बसपा और रालोद सहित विपक्षी दल एक साथ 5 सीटों पर सिमट गए थे. इस क्षेत्र में बीजेपी को 46.3 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि सपा को 21 प्रतिशत और बसपा को 22 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा था. नए हालात में समाजवादी पार्टी को फायदा हो सकता है. अगर बीजेपी के वोट प्रतिशत में 15 फीसदी की कमी हो जाती है और समाजवादी पार्टी का वोट शेयर 15 फीसदी बढ़ जाता है तो सपा की संभावना बेहतर हो सकती है.

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अखिलेश और जयंत की जोड़ी को वेस्टर्न यूपी में फायदा मिल सकता है.

पिछले पांच साल में सामाजिक-राजनीतिक हालातों में कई बदलाव हुए हैं. किसान आंदोलन, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों के कारण राजनीतिक हवा भी बदली है. इसमें समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने चतुराई से कैंडिडेट उतारे हैं. उन्होंने दबाव के बावजूद बड़े पैमाने पर मुस्लिम कैंडिडेट नहीं उतारे. मुजफ्फरनगर और मेरठ जिलों में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में सपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है. अखिलेश यादव ने मुजफ्फरनगर के कादिर राणा परिवार या सहारनपुर में इमरान मसूद जैसे शक्तिशाली मुस्लिम नेताओं के भी टिकट काट दिए. वह अपने कट्टर समर्थक यादवों को भी तोल-मोल कर टिकट दिया.

पहले फेज में काम नहीं आया मुद्दा : अखिलेश की रणनीति का नतीजा है कि भाजपा ने समाजवादी पार्टी के पहले दौर के शासनकाल में प्रचलित 'गुंडा और माफिया शासन' को मुद्दा नहीं बना पाई. अब इस स्थिति में भाजपा को नुकसान होता दिख रहा है. हालांकि पार्टी अभी भी यूपी में सत्ता की लड़ाई लड़ने का दावा कर सकती है.

पिछले विधानसभा चुनाव में 300 से अधिक सीटें जीती थीं. भगवा पार्टी ने राज्य भर में 100 से अधिक बफर सीटों की बढ़त हासिल की थी. हालांकि बीजेपी को चुनौती देने के लिए सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है. लेकिन, सवाल यह है कि सपा का यह प्रदर्शन पर्याप्त हैं?

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दूसरे चरण में मायावती ने सर्वाधिक मुसलमान कैंडिडेट उतारे हैं.

सेकंड फेज में मुसलमानों और दलितों का रुख क्या होगा : 14 फरवरी को दूसरे चरण में पश्चिमी यूपी के नौ जिलों की 55 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इन सीटों पर मुसलमानों की आबादी 27 फीसदी है. रामपुर और सहारनपुर के कुछ इलाकों में मुस्लिम समुदाय की आबादी 45 प्रतिशत से अधिक है. इन क्षेत्रों में दलित भी जनसंख्या भी पर्याप्त है और मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी इलाके में पारंपरिक रूप से मजबूत रही है. 2017 में बीजेपी की लहर के दौरान भी बीएसपी के उम्मीदवार इन 55 सीटों में से 20 पर दूसरे स्थान पर रहे थे.

जहां दूसरे चरण में भी मुस्लिम-जाट गठबंधन से सपा गठबंधन को फायदा होने की उम्मीद है, वहीं मायावती भी अखिलेश का खेल बिगाड़ने की क्षमता रखती हैं. इस इलाके में मुस्लिम वोट के बंटवारे से भाजपा को फायदा मिल सकता है. दिलचस्प बात यह है कि बसपा ने दूसरे चरण की 16 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है. कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में, भाजपा को छोड़कर सभी प्रमुख दलों ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं. यानी दूसरे चरण में बीजेपी की उम्मीद 'धर्मनिरपेक्ष वोटों' के बंटवारे की संभावना पर टिकी हुई है.

पढ़ें : क्या कैराना बीजेपी को उत्तरप्रदेश की सत्ता तक दोबारा पहुंचाएगा ?

पढ़ें: जानिए, उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव में जीत बीजेपी के लिए जरूरी क्यों है

Last Updated : Feb 11, 2022, 3:05 PM IST
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