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तमिल ईश्वर की भाषा, देशभर के मंदिरों में गाया जाना चाहिए तमिल भजन: हाई कोर्ट

मद्रास हाई कोर्ट ने तमिल को 'ईश्वर की भाषा' बताया है. साथ ही दो जजों की पीठ ने कहा कि लोगों द्वारा बोली जाने वाली हर भाषा ईश्वर की भाषा है.

तमिल ईश्वर की भाषा
तमिल ईश्वर की भाषा
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Published : Sep 13, 2021, 2:40 PM IST

Updated : Sep 13, 2021, 2:54 PM IST

चेन्नई : तमिल को 'ईश्वर की भाषा' बताते हुए मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने कहा है कि देशभर में मंदिरों में अभिषेक अजवार और नयनमार जैसे संतों द्वारा रचित तमिल भजनों, अरुणगिरिनाथर की रचनाओं के माध्यम से किया जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति एन किरूबाकरण और न्यायमूर्ति बी पुगालेंधी की पीठ ने हाल के एक आदेश में कहा कि हमारे देश में 'यह विश्वास कराया गया कि केवल संस्कृत ही ईश्वर की भाषा है.'

पीठ ने कहा कि विभिन्न देशों और धर्मों में भिन्न मान्यताएं हैं और पूजा के स्थान भी संस्कृति और धर्म के अनुसार बदलते हैं.

अदालत ने कहा, 'ईश्वर से जुड़े कार्यों के लिए उन स्थानों पर स्थानीय भाषा का उपयोग किया जाता है. लेकिन हमारे देश में यह मान्यता बनाई गई कि केवल संस्कृत ही ईश्वर की भाषा है और कोई अन्य भाषा इसके समकक्ष नहीं है. संस्कृत प्राचीन भाषा है जिसमें अनेक प्राचीन साहित्य की रचना की गई है, इस बात में कोई संदेह नहीं है. लेकिन मान्यता कुछ इस प्रकार से बनाई गई कि ईश्वर अपने अनुयायियों की प्रार्थना केवल तभी सुनेंगे जब वे संस्कृत के वेदों का पाठ करेंगे.'

अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें राज्य के करूर जिले में एक मंदिर में तिरुमुराईकल, तमिल सैवा मंतरम और संत अमरावती अतरांगरई करूरर के पाठ के साथ अभिषेक करने का निर्देश सरकारी अधिकारियों को देने की मांग की गई है.

यह भी पढ़ें- महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता से होगा बदलाव : सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश

न्यायाधीशों ने कहा कि लोगों द्वारा बोली जाने वाली हर भाषा ईश्वर की भाषा है.

(पीटीआई-भाषा)

चेन्नई : तमिल को 'ईश्वर की भाषा' बताते हुए मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने कहा है कि देशभर में मंदिरों में अभिषेक अजवार और नयनमार जैसे संतों द्वारा रचित तमिल भजनों, अरुणगिरिनाथर की रचनाओं के माध्यम से किया जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति एन किरूबाकरण और न्यायमूर्ति बी पुगालेंधी की पीठ ने हाल के एक आदेश में कहा कि हमारे देश में 'यह विश्वास कराया गया कि केवल संस्कृत ही ईश्वर की भाषा है.'

पीठ ने कहा कि विभिन्न देशों और धर्मों में भिन्न मान्यताएं हैं और पूजा के स्थान भी संस्कृति और धर्म के अनुसार बदलते हैं.

अदालत ने कहा, 'ईश्वर से जुड़े कार्यों के लिए उन स्थानों पर स्थानीय भाषा का उपयोग किया जाता है. लेकिन हमारे देश में यह मान्यता बनाई गई कि केवल संस्कृत ही ईश्वर की भाषा है और कोई अन्य भाषा इसके समकक्ष नहीं है. संस्कृत प्राचीन भाषा है जिसमें अनेक प्राचीन साहित्य की रचना की गई है, इस बात में कोई संदेह नहीं है. लेकिन मान्यता कुछ इस प्रकार से बनाई गई कि ईश्वर अपने अनुयायियों की प्रार्थना केवल तभी सुनेंगे जब वे संस्कृत के वेदों का पाठ करेंगे.'

अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें राज्य के करूर जिले में एक मंदिर में तिरुमुराईकल, तमिल सैवा मंतरम और संत अमरावती अतरांगरई करूरर के पाठ के साथ अभिषेक करने का निर्देश सरकारी अधिकारियों को देने की मांग की गई है.

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न्यायाधीशों ने कहा कि लोगों द्वारा बोली जाने वाली हर भाषा ईश्वर की भाषा है.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Sep 13, 2021, 2:54 PM IST
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