नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर भारतीय रिज़र्व बैंक के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है. याचिका में 2000 रुपये के नोटों को बैंकों द्वारा बगैर किसी पर्ची और आईडी प्रूफ के बदलने के फैसले को चुनौती दी गई है. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि एक अन्य पीठ ने गर्मी की छुट्टियों के बाद मुख्य न्यायाधीश के समक्ष इस मामले को पेश करने के निर्देश पहले ही दिये थे.
याचिकाकर्ता ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का उल्लेख करते हुए कहा कि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई और आरबीआई गवर्नर ने कहा कि 10 दिनों में 1.8 लाख करोड़ नोट बदले गए हैं और यह सब बिना किसी पहचान प्रमाण के बदले गए हैं. चूंकि पीठ इस मामले को अवकाश पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए इच्छुक नहीं थी, इसलिए अधिवक्ता ने कहा कि उस समय तक (जुलाई में जब अदालत फिर से खुलेगी) अपराधियों, नक्सलियों और माफियाओं के पूरे काले धन का आदान-प्रदान हो जाएगा.
पिछले हफ्ते भी याचिकाकर्ता ने तत्काल सुनवाई के लिए मामले का उल्लेख किया था. हालांकि, शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि यह मुद्दा अत्यावश्यक नहीं है. इसे जुलाई में अदालत के फिर से खुलने के बाद सुनवाई के लिए लिया जाएगा. याचिकाकर्ता ने 7 जून को फिर से मामले को पेश किया गया. उस दिन याचिकाकर्ता की याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने के मुद्दे पर रजिस्ट्री से एक रिपोर्ट मांगी और उन्हें 9 जून को फिर से इसे पेश करने के लिए कहा.
याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें आरबीआई के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी. इस याचिका में नागरिकों को 2000 रुपये के नोटों को बगैर पर्ची और आईडी प्रुफ के बदलने की अनुमति को चुनौती दी गई थी.
उन्होंने उच्च न्यायालय के 29 मई के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी थी. 19 मई को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने घोषणा की कि वह मुद्रा प्रबंधन अभ्यास के हिस्से के रूप में संचलन से 2,000 रुपये के मूल्यवर्ग को हटा देगा. आरबीआई ने नागरिकों को इन नोटों को अन्य मूल्यवर्ग के नोटों से बदलने के लिए 30 सितंबर तक का समय दिया है.
(एएनआई)