नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक हजार से अधिक पत्रकारों को बड़ी राहत देते हुए उन्हें हैदराबाद में 2008 में आवंटित भूखंडों (Hyderabad land allotted to journalists) पर कब्जा लेने और अपना घर बनाने की गुरुवार को अनुमति दे दी. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने 1100 पत्रकारों द्वारा गठित एक हाउसिंग सोसाइटी की अंतरिम याचिका अलग कर दी और उन्हें आवंटित भूखंड पर कब्जा दे दिया. पीठ देशभर में विभिन्न हाउसिंग सोसाइटी को भूमि आवंटित किये जाने को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने संबंधी याचिकाओं पर विचार कर रही थी.
पीठ ने कहा, 'हम बाकी आवेदनों पर कोई आदेश नहीं दे रहे हैं. जहां तक इस आवेदन का संबंध है, 1100 पत्रकार हैं, जिनकी मजदूरी 8,000 रुपये से 40,000 रुपये प्रति माह के बीच है और इन पत्रकारों को पहले ही भूखंड आवंटित किए गए थे. अंतरिम आदेशों के कारण प्लॉट का विकास नहीं हो सका.' जब वकील प्रशांत भूषण ने इसका विरोध किया तो सीजेआई ने कहा, 'कृपया इन छोटे लोगों, पत्रकारों को 2008 में आवंटित छोटे भूखंडों का कब्जा लेने की अनुमति दें.' सीजेआई ने कहा कि जहां तक इस तरह के आवंटन को विनियमित करने के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार करने का संबंध है, तो इस मुद्दे को बाद में भी उठाया जा सकता है.
पीठ ने कहा, 'आप देख रहे हैं कि 1,100 पत्रकार हैं, जिन्हें प्रति माह 8,000 रुपये से 40,000 रुपये तक का वेतन मिलता है, और उन्हें जमीन के छोटे टुकड़े दिए गये थे. वे भुगतान भी कर रहे हैं. क्या हम कह सकते हैं कि यह एक चैरिटी है.' न्यायालय ने पत्रकारों की हाउसिंग सोसाइटी को बकाया राशि का भुगतान करने, संपत्ति पर कब्जा लेने और निर्माण कार्य शुरू करने को कहा.
सीजेआई ने कहा, 'हम पत्रकारों को कब्जा लेने और निर्माण करने की अनुमति देते हैं. और जहां तक आईएएस और आईपीएस, विधायकों और सांसदों के आवेदनों का सवाल है, हम इस स्तर पर कोई आदेश पारित करने के इच्छुक नहीं हैं.' संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि पत्रकारों को हलफनामा देना होगा कि उनके पास हैदराबाद में वैकल्पिक जमीन या अपना घर नहीं है.
(पीटीआई-भाषा)