युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि समस्याओं की जननी है. यह सहत्रबार सिद्ध सदा सत्य है. फिर भी दुनिया आखिर विकल्प के तौर पर जंग का ही रास्ता चुनती है. जबकि सच तो ये है कि लड़ाइयों में कारक और अहम के टकराव से ज्यादा महत्वाकांक्षाएं और उन्हीं के वशीभूत रची गई साजिशें ही देखने को मिली हैं. जिनकी परिणति किसी का विनाश और किसी का सर्वसिद्ध स्वार्थ ही बार-बार देखने को मिलता रहा है. प्रथम विश्व युद्ध और फिर द्वितीय विश्व युद्ध इसका सटीक उदाहरण हैं.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद तो बड़े हितसाधक देशों ने बातचीत की टेबल पर बैठकर ख़ास तौर से यूरोपीय देशों जिनमें अरब और अफ्रीकी हिस्से प्रमुख तौर से शामिल थे. उन छिन्न-भिन्न हो गए देशों की सीमाएं अपनी महत्वाकांक्षा के खंजर से दो-दो बार खींचे थे. जिसके नतीजे में कई देश टुकड़ों में बंटकर छिन्न-भिन्न हो गए थे. बड़े हितसाधक देशों के उन कपट कृत्यों का खामियाजा आज भी छोटे देश भुगत रहे हैं. उस दौर के बाद शुरू हुआ संधियों और शत्रुता के बीज बोने का दौर जो कभी नाटो तो कभी सीटो के खेमे में दुनिया को बांटती रही. उस दौर में नया-नया आज़ाद हुए भारत ने किसी खेमे का हिस्सा बनने की बजाय स्वतंत्र रूप से तटस्थ रहने का फैसला किया था. जिसने कई बार दुनिया के झगड़ों को निपटाने में महापंच की भूमिका भी निभाई.
नाटो यानी अमेरिकी अगुवाई वाला उन देशों का संगठन जो 1949 में वजूद में सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देकर आया था, लेकिन अमेरिका की ही अगुवाई में (North Atlantic Treaty Organization) उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका ने कई देशों के खिलाफ प्रोपगंडा और झूठ का वबंडर दुनियाभर में फैलाया और फिर उन्हें तबाह किया. इसी तरह नाटो की तर्ज पर सीटो अमेरिकी थिंक टैंक की नई उपज थी. जिसका एकमात्र उद्देश्य दक्षिणी दुनिया ख़ास तौर से दक्षिण एशियाई देशों का प्रतिनिधि बनकर अपनी चौधराहट या वर्चस्व कायम करना था. सीटो यानी (Southeast Asia Treaty Organization) 1955 से 1977 तक वजूद में रहा. नाटो की तरह सीटो भी अपने सदस्य देशों को साम्यवादियों की विस्तारवादी नीति से दक्षिण-पूर्व एशिया की रक्षा करने की बातें करता था, लेकिन यह भी कुछ नहीं कर सका. आम तौर पर शांत रहने वाले दक्षिणी हिस्सों में हर साल युद्धाभ्यास के नाम पर सीटो ने जितनी अशांति मचाई. उतनी आज तक किसी युद्ध में भी नहीं मची थी. जापान पर अमेरिकी परमाणु हमले को छोड़कर दक्षिण और पूर्व की दुनिया में कभी इतनी तबाही मची नहीं थी. 21वीं सदी के 21 बरस बिताने के बाद नाटो और सीटो का सच देखने, सुनने और पढ़ने के बाद ये बात समझ में आने लगी है कि इनके पीछे असल मकसद आखिर क्या था.
इस दौर में जब दुनिया 18वीं सदी के नौका युग और बैल गाड़ी युग से नॉटिकल माइल्स वाली टाइफून क्लास पनडुब्बियों और सुपर सोनिक फाइटर जेट और ड्रोन युग में हैं. तो दुनिया भी आलमी जंग के नए मुहाने पर ठिठकी है. रूस से सटे यूक्रेन को कल तक नाटो में शामिल करने के लिए सात समंदर पार से जो अमेरिका अपने दंभनाद से दुनिया को हैरान और नई आफत की आशंका से परेशान कर रहा था. वो रीसी हमले में तबाह हो रहे यूक्रेन की विनाशलीला का सिर्फ लाइव दर्शन कर रहा है. हाथी सरीखे रूस के सामने मक्खी की तरह यूक्रेन को ललकारने पुचकारने के लिए युद्ध के दहाने से अमेरिका और तमाम नाटो देश मौन मंथन के दौर से गुजर रहे हैं. रूस की चेतावनी को एडवांस में धमकी समझकर सभी सन्न हो गए हैं. दिखावे के लिए कोई एयर स्पेस रूस के लिए बैन कर रहा है तो कोई SWIFT यानी पैसे ट्रांसफर करने के अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग सिस्टम से रूस को प्रतिबंधित कर रहा है.
अमेरिका के पास सीमाओं में घुसने से पहले ही तमाम मिसाइलों को हवा में मार गिराने वाली तकनीक THAAD (Terminal High Altitude Area Defense) है. अगर वह यूक्रेन को कुछ THAAD दे देता, तो रूसी मिसाइलों की तबाही से यूक्रेन बच सकता था. लेकिन अमेरिका ने ऐसा क्यों नहीं किया. विश्व समुदाय शायद यह सवाल पूछने की हिम्मत कभी न जुटा पाए. इतना ही नहीं रूस ने हमलों के बीच ये धमकी दी कि 500 टन वजनी अंरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को चीन या भारत पर गिरा दे तो दुनिया के मुखालिफ देश और खास तौर से अमेरिका क्या कर लेगा. इस धमकी पर सवाल पूछने की जुर्रत क्या खुद ये देश करेंगे. और क्या इस युद्ध का अगुवा रहा अमेरिका भी रूस से ये सवाल पूछने की हिम्मत करेगा.
बहरहाल यूक्रेन पर रूसी हमले के बीच भारत-चीन पर 500 टन वजनी फुटबॉल मैच ग्राउंड के आकार वाले अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को गिराने की धमकी रूस ने दी है. अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देश इस धमकी पर रूस से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं रखते हैं. क्योंकि युद्ध के हालात में पड़ोसी हो और चाहे पिछलग्गू, गरीब हो या अमीर और चाहे हों सुपरपावर देश. सभी के अपने हित, अपने लाभ व अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं के साथ ही अपनी-अपनी मजबूरियां होती हैं. जिनमें रचे-बसे, कसे और जकड़े देश क्रोधाक्रांत रूस से सवाल पूछने का हिम्मत कभी नहीं जुटा पाएंगे. ऐसे में 500 टन वजनी ISS को भारत पर गिराने की धमकी को लेकर उठने वाले तमाम सवालों के जवाब खंगालने के साथ ही इस धमकी के निहितार्थ को समझना आवश्यक है. इन सवालों के बीत जंग जमीन पर लड़ी जा रही है, लेकिन दशकों से आसमान में तैरते ISS के वजूद में ही इसके निहितार्थ छुपे हुए हैं.
रूस की USA को धमकी! भारत-चीन पर गिरा दूंगा 500 टन वजनी ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’?
बीती सदी में अंतरिक्ष में बैठकर ग्रह, नक्षत्र और तमाम पिंडों के साथ ही ख़ास तौर से पृथ्वी, चंद्रमा और मंगल का अध्ययन करने की सोच ने जन्म लिया था. ये सोवियत रूस के विघटन का दौर था. सोवियत रूस के तितर-बितर होने के बाद ही अमेरिका ने रूस से हाथ मिलाया था. इसी के बाद दोनों देशों के रिश्तों को नया आयाम देने के लिए अंतरिक्ष में कूटनीतिक कुलांचे भरने की शुरुआत हुई थी. जिसे मूर्त रूप देते हुए सदी के आखिरी सालों में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को तैयार करके अंतरिक्ष में स्थापित करने की शुरुआत हो गई थी. 1998 से 2011 तक ISS को स्पेस में कई टुकड़ों में स्थापित किया गया था. जिसे अब उस दर के बाद ही शुरू हुए शीत युद्ध के भारी बमबारी के बीच विश्व युद्ध के मुहाने तक पहुंचने पर भारत या चीन पर गिराने की धमकी दी जा रही है. सोवियत रूस के विघटन के बाद से ही यूक्रेन को लेकर हालात बीच-बीच में तनावपूर्ण बनते रहे. जो अब सीधे युद्ध की भट्ठी में झोंक दिया गया है. अमेरिका का यूक्रेन और रूस को लेकर किरदार धींगा-मुश्ती से आगे नहीं बढ़ सका है. रूसी हमले में तबाह और बर्बाद हो रहे यूक्रेन को अमेरिका से अब तक कोई सार्थक मदद नहीं मिली है. अमेरिका को यूक्रेन में अपने THAAD तैनात करने चाहिए थे, लेकिन वह रूस से परोक्ष जंग लड़ते हुए खुद की साख की फिक्र से बचाना जन पड़ता है.
भारत पर ISS को गिराने की रूसी धमकी और महामिशन का भविष्य
यूक्रेन में तीव्र बमबारी और मिसाइल हमलों के बीच रूस ने ये धमकी देकर दुनिया को डरा दिया है कि 500 टन का इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन क्या भारत या चीन पर गिरा दिया जाए. यूक्रेन पर हमले के बीच रूस के खिलाफ अमेरिका समेत कई देशों ने प्रतिबंधों का एलान किया है. जिसकी प्रतिक्रिया के तौर पर रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (Russian Space Agency) के प्रमुख ने अमेरिका को धमकी दी है कि मॉस्को पर लगाए गए कई प्रतिबंध अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (ISS) पर ‘हमारे सहयोग को नष्ट’ कर सकते हैं. इतना ही नहीं रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकॉसमोस के डायरेक्टर जनरल दिमित्रि रोगोजिन ने ट्विटर पर लिखा- 'अगर आप हमारे साथ सहयोग को रोकते हैं तो ISS को अनियंत्रित होकर कक्षा से बाहर आने और अमेरिका या यूरोप पर गिरने से कौन बचाएगा?' फुटबॉल के मैदान जितना लंबा यह इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर पृथ्वी से लगभग 400 किलो मीटर ऊपर अंतरिक्ष में पृथ्वी का परिक्रमा कर रहा है. इस धमकी में यह भी साफ किया गया है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन अपनी कक्षा में लगातार पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है. जो भारत और चीन से होकर गुजरता है. उसके रास्ते में रूस नहीं आता है. यूक्रेन-रूस के बीच छिड़ी जंग के दरम्यान जब दुनिया दो खेमों में वैचारिक तौर पर बंटती नजर आ रही है. ऐसे विकट वैश्विक संकट के दौर में एक वैश्विक महाशक्ति का इस तरह धमकाना कई तबाहियों की आशंकाओं में गोते लगाने को मजबूर करता है. 1998 से 2011 तक गहन रूस और अमेरिका ने प्रमुख तौर से मिलकर कई अंतरिक्ष उड़ानों के जरिए कई हिस्सों में इसे स्थापित किया था. फिलहाल इस वैश्विक महा मिशन में रूस और अमेरिका प्रमुख तौर से शामिल हैं. जबकि कनाडा, जापान, फ्रांस, इटली और स्पेन जैसे कई यूरोपीय देश भी बतौर सहयोगी इसमें शामिल हैं.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन पर हमले का आदेश देने के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों ने चार बड़े रूसी बैंकों की संपत्ति अवरुद्ध करने, निर्यात नियंत्रण लागू करने और पुतिन के करीबियों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नए प्रतिबंधों की घोषणा भी की. उन्होंने कहा कि रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम सहित उनके एयरोस्पेस उद्योग को प्रतिष्ठाहीन किया जाएगा. अमेरिकी राष्ट्रपति के इस बयान के मायने अब दुनिया अपने-अपने तरीके से निकाल रही है. एक तो ये कि ISS से रूस का प्रमुख तौर से जुड़ाव है. रूसी इंजनों के जरिए ही यह स्पेस स्टेशन संचालित हो रहा है. दूसरा ये कि कई देशों के अंतरिक्ष मिशन को रूस सहयोग देता रहा है. जो रूस का अपना एक एयरोस्पेस इंडस्ट्री की शक्ल ले चुका है. अमेरिकी राष्ट्रपति का इस उद्योग को प्रतिष्ठाहीन बनाने की धमकी या दावा कई तरह से वैश्विक चिंता का कारण बन सकता है. क्योंकि महाशक्तियों के हाथों में कई देशों को अंतरिक्ष मिशन रहे हैं. पिछले कुछ अर्से से भारत भी अपने अंतरिक्ष मिशन में दूसरे कई देशों के उपग्रह भेजने का काम कर चुका है, लेकिन भारत में अभी यह एयरोस्पेस उद्योग का रूप नहीं ले सका है. वैसे यह वैश्विक महामिशन कई बार अपने पथ से भटक चुका है. ऐसे में इसे चलाने वाली ताकतें अगर युद्ध और उन्माद के वैश्विक माहौल में भटकती हैं तो इसे अलग नहीं माना जाना चाहिए.
रूसी सेक्शन है ISS के लिए बहुत अहम, रूस के नियंत्रण में है महामिशन
रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के महानिदेशक दिमित्री रोगोजिन ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि ISS की कक्षा और अंतरिक्ष में स्थान रूसी इंजनों से ही नियंत्रित होते हैं. रोगोजिन ने रूसी भाषा में ट्वीट किया, ‘अगर आप हमारे साथ सहयोग को बाधित करते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को अनियंत्रित होकर कक्षा से बाहर जाने और अमेरिका या यूरोप में गिरने से कौन बचाएगा?’ एक तरह से रूस की अमेरिका को ये सीधी धमकी है. चीन या भारत पर ISS के गिरने की बात वह पहले भी धमकी भरे अंदाज में कह चुके हैं. इसे भी भारत व चीन के लिए परोक्ष धमकी ही समझा सकता है. ये धमकी ऐसे वक्त में आई, जब UNSC में रूस के खिलाफ माहौल बन रहा था. अमेरिका की अगुआई में नाटो के देशों में यूक्रेन की तबाही पर कसक महसूस की जा रही थी.
रूस की धमकी को हल्के में नहीं ले रहा अमेरिका, क्योंकि रूसी सेक्शन ISS के लिए है जरूरी
रूस की धमकी में छिपा ISS का अंधकारमय भविष्य और दुर्घटना बाहुल्य यथार्थ
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को भारत या चीन पर गिराने की रूस की धमकी को अगर ISS मिशन के भविष्य के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पता चलता है कि रूस की धमकी भी एक तीर से कई निशानों वाला है. दरअसल दो दशक से जारी इस महा मिशन के दौरान ISS के कई कल-पुर्जे और सेक्शन जर्जर होने लगे हैं. कुछ अर्से पहले इसमें दरार की भी बातें सामने आई थीं. जिन्हें येनकेन प्रकारेण चलाया जा रहा है. यह तय है कि दिनो-दिन जर्जर होती हालत के नतीजे में यह स्पेस स्टेशन एक दिन कोलैप जरूर होगा. बीते साल ही रूस के अंतरिक्ष यात्रियों ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के एक सेगमेंट में नए दरारों की खोज की थी. जिसके आने वाले समय में और चौड़ा होने की पूरी आशंका भी जताई जा चुकी है. रॉकेट एंड स्पेस कॉर्पोरेशन के चीफ इंजीनियर Vladimir Solovyov ने बताया था कि Zarya मॉड्यूल की कुछ जगहों पर सतही दरारें देखी गई हैं. लेकिन अभी ये नहीं बताया जा सका है कि क्या ये दरारें इतनी चौड़ी हो गई हैं कि इनसे हवा लीक हो सके. ISS के उपकरणों के पुराना होने की वजह से इसके फेल होने की भी आशंका जताई जा चुकी है. इसीलिए इस महामिशन के साल 2025 तक तबाह होने की बातें कही जा चुकी हैं. ISS में हुए कई हादसों को मशीनी गड़बड़ी औऱ मानवीय भूल भी कहा जा चुका है. इशका मतलब साफ है कि भारत-चीन पर इसे गिराने की धमकी के पीछे पहले से कई वजह मौजूद हैं.
स्पेस स्टेशन पर 2024 तक रहेगा रूस
रूस की स्पेस एजेंसी Roscosmos ने बीते साल ही एक सर्विस मॉड्यूल के प्रेशर में गिरावट की बात बताई थी. मॉड्यूल में प्रेशर में गिरावट आना गंभीर समस्या माना जाता है. इसके बाद ही बड़ा हादसा पेश आया था. जब रूस की नउका लैब मॉड्यूल ISS से कनेक्ट हो रही थी. इस दौरान मॉड्यूल के जेट थ्रस्टर्स गलती से कई घंटे तक ऑन छोड़ दिए गए थे. जिसके नतीजे में यह स्पेस स्टेशन अपनी कक्षा से भटक गया था. हालांकि अफसरों का कहना था कि रिकनफिगरेशन का काम करते समय मॉड्यूल के जेट अपने आप ऑन हो गए थे. जिससे पूरा स्पेस स्टेशन भटककर पृथ्वी से लगभग 250 मील ऊपर चला गया था. इस हादसे पर मिशन फ्लाइट डायरेक्टर को स्पेस क्राफ्ट इमरजेंसी का एलान करना पड़ा था. इन तमाम हादसों और तकनीकी गड़बड़ियों के चलते बार-बार यह महामिशन हादसे का शिकार हो रहा है. शायद इसीलिए रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने साल 2024 तक ही इसे ऑपरेशनल रखने की बात कही थी.
प्रशांत महासागर में गिरेगा अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन
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