नई दिल्ली : जाने-माने बंगाली लेखक बुद्धदेव गुहा का कोरोना वायरस संक्रमण से उबरने के बाद हुई समस्याओं के कारण रविवार को निधन हो गया. वह 85 साल के थे.लेखक के परिवार ने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण से उबरने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं के कारण उन्हें यहां के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और रविवार को दिल का दौरा पड़ने के बाद देर रात 11 बजकर 25 मिनट पर उनका निधन हो गया.
उनके परिवार ने बताया कि गुहा कोरोना वायरस संक्रमण से उबरने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं से परेशान थे और सांस लेने में तकलीफ तथा पेशाब में संक्रमण की शिकायत के बाद उन्हें इस माह के शुरु में अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
गुहा अप्रैल में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे और करीब 33 दिन तक अस्पताल में भर्ती रहे थे. गुहा के परिवार में उनकी पत्नी रितु गुहा और दो बेटियां हैं. लेखक की बड़ी बेटी मालिनी बी गुहा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि बुद्धदेव गुहा नहीं रहे.
गुहा के निधन पर पीएम मोदी ने शोक जताया. प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा, 'बुद्धदेव गुहा की रचनाएं बहुआयामी थीं और पर्यावरण के प्रति बहुत संवेदनशीलता दर्शाती थीं. उनकी कृतियों को हर पीढ़ी के लोग पसंद करते थे, खासकर युवा वर्ग. उनका निधन साहित्य जगत के लिए बहुत बड़ा नुकसान है. उनके परिजनों और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं.'
उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस संक्रमण से उबरने के बाद उत्पन्न समस्याओं के कारण गुहा को कोलकाता के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और रविवार को दिल का दौरा पड़ने के बाद देर रात 11 बजकर 25 मिनट पर उनका निधन हो गया.
वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी गुहा के निधन पर शोक व्यक्त किया. उन्होंने लिखा, 'बुद्धदेव गुहा को 'कोलेर कच्छै' , 'कोजागर', 'इकतु उसनोतर जोनया', 'मधुकरी' , 'जंगलहन', 'चोरोबेटी' और उनकी अन्य किताबों के लिए याद किया जाएगा. वह बंगाल के प्रमुख मशहूर काल्पनिक किरदार 'रिजुदा' और 'रुद्र' के भी रचयिता थे.'
बनर्जी ने उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति भी संवेदना व्यक्त की.
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बता दें कि गुहा का जन्म 29 जून 1936 को कोलकाता में हुआ था. उनका बचपन पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के रंगपुर और बारीसाल जिलों में बीता. उनके बचपन के अनुभवों और यात्राओं ने उनके दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी, जो बाद में उनके लेखन में दिखाई दी.
उन्हें 1976 में आनंद पुरस्कार, इसके बाद शिरोमन पुरस्कार और शरत पुरस्कार के अलावा उनके अद्भुत काम के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
'मधुकरी' के अलावा उनकी पुस्तक 'कोलेर कच्छै' और 'सविनय निवेदन' भी काफी मशहूर हुईं. एक पुरस्कार विजेता बंगाली फिल्म 'डिक्शनरी' उनकी दो रचनाओं 'बाबा होवा' और 'स्वामी होवा' पर आधारित है. गुहा एक प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक और एक कुशल चित्रकार भी थे. बच्चों के लिए भी उनकी लेखनी को काफी सराहना मिली तथा उनके किरदार 'रिजुदा' और 'रुद्र' भी काफी लोकप्रिय हुए.
(पीटीआई-भाषा)