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मुफ्त योजनाओं पर SC ने कहा, राजनीतिक दलों को चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि राजनीतिक दलों को चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता. पीठ ने कहा कि आभूषण, टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को मुफ्त बांटने के प्रस्ताव और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं की पेशकश में अंतर करना होगा. SC on freebies distribution.

Supreme Court on freebies distribution
सुप्रीम कोर्ट मुफ्त योजना
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Published : Aug 17, 2022, 7:55 PM IST

Updated : Aug 17, 2022, 8:05 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC on freebies distribution) ने बुधवार को कहा कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता तथा फ्रीबीज (मुफ्त सौगात) शब्द और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर को समझना होगा. शीर्ष अदालत ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का उल्लेख करते हुए कहा कि मतदाता मुफ्त सौगात नहीं चाह रहे, बल्कि वे अवसर मिलने पर गरिमामय तरीके से आय अर्जित करना चाहते हैं.

अदालत ने कहा, 'हम सभी को एक पुरानी कहावत याद रखनी चाहिए कि 'बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता'. चिंता सरकारी धन को खर्च करने के सही तरीके को लेकर है.' प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'आभूषण, टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को मुफ्त बांटने के प्रस्ताव और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं की पेशकश में अंतर करना होगा.'

पीठ में न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं. यह पीठ चुनावों में मुफ्त सौगात के वादों के मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने पर विचार कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त चीजों के वितरण को नियमित करने का मुद्दा जटिल होता जा रहा है. पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए 22 अगस्त की तारीख तय करते हुए सभी हितधारकों से प्रस्तावित समिति के संबंध में अपने सुझाव देने को कहा.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'आप में से कुछ लोगों ने इस बात का सही उल्लेख किया है कि संविधान का अनुच्छेद 38 (2) कहता है कि सरकार को आय में असमानताओं को कम करने, न केवल अलग-अलग लोगों में बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले या विभिन्न कार्य करने वाले लोगों के समूह के बीच दर्जे, सुविधाओं तथा अवसरों में असमानताओं को दूर करने का प्रयास करना है.' उन्होंने कहा, 'आप किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति को ऐसे वादे करने से नहीं रोक सकते जो सत्ता में आने पर संविधान में उल्लेखित इन कर्तव्यों को पूरा करने के मकसद से किये जाते हैं. प्रश्न यह है कि वैध वादा वास्तव में क्या है.'

यह भी पढ़ें- चुनाव से पहले मुफ्त चीजें बांटने के वादे को लेकर SC ने केंद्र से मांगा जवाब

न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'क्या निशुल्क बिजली और अनिवार्य शिक्षा के वादे को मुफ्त सौगात कहा जा सकता है. क्या छोटे और सीमांत किसानों को कृषि को लाभकारी बनाने के लिहाज से बिजली, बीजों और उवर्रक पर सब्सिडी के वादे को मुफ्त सौगात कहा जा सकता है?' उन्होंने कहा, 'क्या हम मुफ्त और सभी को स्वास्थ्य सुविधा देने के वादे को 'फ्रीबीज' कह सकते हैं? क्या प्रत्येक नागरिक को निशुल्क सुरक्षित पेयजल देने का वादा मुफ्त की योजना कहा जा सकता है.'

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC on freebies distribution) ने बुधवार को कहा कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता तथा फ्रीबीज (मुफ्त सौगात) शब्द और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर को समझना होगा. शीर्ष अदालत ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का उल्लेख करते हुए कहा कि मतदाता मुफ्त सौगात नहीं चाह रहे, बल्कि वे अवसर मिलने पर गरिमामय तरीके से आय अर्जित करना चाहते हैं.

अदालत ने कहा, 'हम सभी को एक पुरानी कहावत याद रखनी चाहिए कि 'बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता'. चिंता सरकारी धन को खर्च करने के सही तरीके को लेकर है.' प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'आभूषण, टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को मुफ्त बांटने के प्रस्ताव और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं की पेशकश में अंतर करना होगा.'

पीठ में न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं. यह पीठ चुनावों में मुफ्त सौगात के वादों के मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने पर विचार कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त चीजों के वितरण को नियमित करने का मुद्दा जटिल होता जा रहा है. पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए 22 अगस्त की तारीख तय करते हुए सभी हितधारकों से प्रस्तावित समिति के संबंध में अपने सुझाव देने को कहा.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'आप में से कुछ लोगों ने इस बात का सही उल्लेख किया है कि संविधान का अनुच्छेद 38 (2) कहता है कि सरकार को आय में असमानताओं को कम करने, न केवल अलग-अलग लोगों में बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले या विभिन्न कार्य करने वाले लोगों के समूह के बीच दर्जे, सुविधाओं तथा अवसरों में असमानताओं को दूर करने का प्रयास करना है.' उन्होंने कहा, 'आप किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति को ऐसे वादे करने से नहीं रोक सकते जो सत्ता में आने पर संविधान में उल्लेखित इन कर्तव्यों को पूरा करने के मकसद से किये जाते हैं. प्रश्न यह है कि वैध वादा वास्तव में क्या है.'

यह भी पढ़ें- चुनाव से पहले मुफ्त चीजें बांटने के वादे को लेकर SC ने केंद्र से मांगा जवाब

न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'क्या निशुल्क बिजली और अनिवार्य शिक्षा के वादे को मुफ्त सौगात कहा जा सकता है. क्या छोटे और सीमांत किसानों को कृषि को लाभकारी बनाने के लिहाज से बिजली, बीजों और उवर्रक पर सब्सिडी के वादे को मुफ्त सौगात कहा जा सकता है?' उन्होंने कहा, 'क्या हम मुफ्त और सभी को स्वास्थ्य सुविधा देने के वादे को 'फ्रीबीज' कह सकते हैं? क्या प्रत्येक नागरिक को निशुल्क सुरक्षित पेयजल देने का वादा मुफ्त की योजना कहा जा सकता है.'

Last Updated : Aug 17, 2022, 8:05 PM IST
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