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बिजली संकट के लिए घरेलू कोयले की अनुपलब्धता नहीं, उत्पादन में तेज गिरावट जिम्मेदारः कोयला सचिव - उत्पादन में तेज गिरावट जिम्मेदार कोयला सचिव

कोयला सचिव एके जैन ने मौजूदा बिजली संकट के लिए कोयले की कमी को जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने रविवार को कहा कि इस संकट की मुख्य वजह विभिन्न ईंधन स्रोतों से होने वाले बिजली उत्पादन में आई तीव्र गिरावट है.

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Published : Apr 24, 2022, 5:41 PM IST

नई दिल्ली: कोयला सचिव एके जैन ने कहा कि बिजली संकट के लिए घरेलू कोयले की अनुपलब्धता नहीं बल्कि उत्पादन में तेज गिरावट जिम्मेदार है. महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में कोयले की कमी के कारण बिजली कटौती की स्थिति पैदा होने की खबरों के बीच कोयला सचिव ने अपना बचाव करने की कोशिश की.

उन्होंने एजेंसी से साक्षात्कार में कहा कि ताप-विद्युत संयंत्रों के पास कोयले का कम स्टॉक होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं. जैन ने कहा कि कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी आने के कारण बिजली की मांग बढ़ना, इस साल जल्दी गर्मी शुरू हो जाना, गैस एवं आयातित कोयलों की कीमतों में वृद्धि होना और तटीय ताप विद्युत संयंत्रों के बिजली उत्पादन का तेजी से गिरना जैसे कारक इसके लिए जिम्मेदार रहे हैं.

जैन ने कहा कि यह कोयले का संकट न होकर बिजली की मांग एवं आपूर्ति का बेमेल होना है. उन्होंने कहा कि देश में गैस-आधारित बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आने से यह संकट और बढ़ गया है. उन्होंने कहा कि देश में कुल बिजली आपूर्ति बढ़ाने के लिए पहले से ही कई उपाय किए जा रहे हैं. जैन ने कहा कि भारत में कुछ ताप-विद्युत संयंत्र समुद्री तट के किनारे बनाए गए थे ताकि आयातित कोयले का इस्तेमाल कर सकें. लेकिन आयातित कोयले की कीमत बढ़ने से उन संयंत्रों ने कोयला आयात कम कर दिया है.

ऐसी स्थिति में तटीय ताप-विद्युत संयंत्र अब अपनी क्षमता का लगभग आधा उत्पादन ही कर रहे हैं. कोयला सचिव ने कहा कि दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में स्थित राज्य आयातित कोयले पर निर्भर हैं. जब इन राज्यों में स्थित घरेलू कोयला आधारित संयंत्रों को रेलवे वैगन एवं रेक के जरिये कोयला भेजा जाता है तो रेक को फेरा लगाने में 10 दिन से अधिक समय लगता है. इसकी वजह से अन्य राज्यों में स्थित संयंत्रों तक कोयला आपूर्ति बाधित होती है.

हालांकि रेलवे ने पिछले साल से बिजली क्षेत्र की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अन्य क्षेत्रों में रेक आपूर्ति को कम करके, पहले से कहीं अधिक कोयले की ढुलाई की है. मार्च के महीने में रेकों की अच्छी लदान हुई थी. सार्वजनिक क्षेत्र की कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने अप्रैल के पहले पखवाड़े में एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले 25 फीसदी अधिक कोयला उत्पादन किया है.

यह भी पढ़ें- J-K को 20 हजार करोड़ की सौगात, 370 का जिक्र कर पीएम ने कांग्रेस पर साधा निशाना

उत्पादन बढ़ने के साथ कोयले की आपूर्ति भी 25 फीसदी बढ़ गई है. कोल इंडिया की घरेलू कोयला उत्पादन में 80 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है. कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी ने भी शनिवार को कहा था कि वर्तमान में 7.250 करोड़ टन कोयला सीआईएल, सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) और कोल वाशरीज के विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध है. इसके साथ ही उन्होंने ताप विद्युत संयंत्रों के पास 2.201 करोड़ टन कोयला उपलब्ध होने का भी दावा किया.

नई दिल्ली: कोयला सचिव एके जैन ने कहा कि बिजली संकट के लिए घरेलू कोयले की अनुपलब्धता नहीं बल्कि उत्पादन में तेज गिरावट जिम्मेदार है. महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में कोयले की कमी के कारण बिजली कटौती की स्थिति पैदा होने की खबरों के बीच कोयला सचिव ने अपना बचाव करने की कोशिश की.

उन्होंने एजेंसी से साक्षात्कार में कहा कि ताप-विद्युत संयंत्रों के पास कोयले का कम स्टॉक होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं. जैन ने कहा कि कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी आने के कारण बिजली की मांग बढ़ना, इस साल जल्दी गर्मी शुरू हो जाना, गैस एवं आयातित कोयलों की कीमतों में वृद्धि होना और तटीय ताप विद्युत संयंत्रों के बिजली उत्पादन का तेजी से गिरना जैसे कारक इसके लिए जिम्मेदार रहे हैं.

जैन ने कहा कि यह कोयले का संकट न होकर बिजली की मांग एवं आपूर्ति का बेमेल होना है. उन्होंने कहा कि देश में गैस-आधारित बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आने से यह संकट और बढ़ गया है. उन्होंने कहा कि देश में कुल बिजली आपूर्ति बढ़ाने के लिए पहले से ही कई उपाय किए जा रहे हैं. जैन ने कहा कि भारत में कुछ ताप-विद्युत संयंत्र समुद्री तट के किनारे बनाए गए थे ताकि आयातित कोयले का इस्तेमाल कर सकें. लेकिन आयातित कोयले की कीमत बढ़ने से उन संयंत्रों ने कोयला आयात कम कर दिया है.

ऐसी स्थिति में तटीय ताप-विद्युत संयंत्र अब अपनी क्षमता का लगभग आधा उत्पादन ही कर रहे हैं. कोयला सचिव ने कहा कि दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में स्थित राज्य आयातित कोयले पर निर्भर हैं. जब इन राज्यों में स्थित घरेलू कोयला आधारित संयंत्रों को रेलवे वैगन एवं रेक के जरिये कोयला भेजा जाता है तो रेक को फेरा लगाने में 10 दिन से अधिक समय लगता है. इसकी वजह से अन्य राज्यों में स्थित संयंत्रों तक कोयला आपूर्ति बाधित होती है.

हालांकि रेलवे ने पिछले साल से बिजली क्षेत्र की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अन्य क्षेत्रों में रेक आपूर्ति को कम करके, पहले से कहीं अधिक कोयले की ढुलाई की है. मार्च के महीने में रेकों की अच्छी लदान हुई थी. सार्वजनिक क्षेत्र की कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने अप्रैल के पहले पखवाड़े में एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले 25 फीसदी अधिक कोयला उत्पादन किया है.

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उत्पादन बढ़ने के साथ कोयले की आपूर्ति भी 25 फीसदी बढ़ गई है. कोल इंडिया की घरेलू कोयला उत्पादन में 80 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है. कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी ने भी शनिवार को कहा था कि वर्तमान में 7.250 करोड़ टन कोयला सीआईएल, सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) और कोल वाशरीज के विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध है. इसके साथ ही उन्होंने ताप विद्युत संयंत्रों के पास 2.201 करोड़ टन कोयला उपलब्ध होने का भी दावा किया.

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