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District Reserve Guard: डीआरजी में सरेंडर करने वाले नक्सलियों के अलावा इनकी होती है भर्ती

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में डीआरजी के 10 जवान शहीद होने के बाद से देशभर में शोक की लहर है. प्रधानमंत्री से लेकर देश के तमाम नेताओं ने इस घटना की निंदा करते हुए शहीदों को श्रद्धांजलि दी. डीआरजी में शामिल सभी जवान स्थानीय ही हैं, जो हर समय नक्सलियों से मोर्चा लेने के तैयार रहते हैं. डीआरजी है क्या और इसमें भर्ती कैसे होती है. क्या इन्हें संविदा पर रखा जाता है या परमानेंट जाॅब होती है, आईये जानते हैं.

District Reserve Guard
डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड
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Published : Apr 30, 2023, 7:55 PM IST

Updated : Apr 30, 2023, 9:06 PM IST

रायपुर: डीआरजी का पूरा नाम डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड है. इसका गठन 2008 में किया गया था. डीआरजी जवानों की पोस्टिंग नक्सल प्रभावित जिलों में की जाती है. वर्तमान में छत्तीसगढ़ के 9 जिलों में डीआरजी की पोस्टिंग है. इसमें बस्तर संभाग के सभी 7 जिले शामिल हैं. इसके अलावा राजनांदगांव और कवर्धा में भी डीआरजी के जवानों की तैनाती की गई है. डीआरजी में अधिकतर उन युवाओं को शामिल किया जाता है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र से हैं. उनकी पोस्टिंग भी उसी जिले में की जाती है. इसके अलावा सरेंडर किए नक्सलियों को भी डीआरजी में भर्ती किया जाता है. इसे डीएसपी रैंक के अफसर लीड करते हैं.

परमानेंट होती है इनकी नौकरी: छत्तीसगढ़ पुलिस की तरह डीआरजी भी है. इसकी भर्ती भी पुलिस की तरह ही होती है. कह सकते हैं कि यह पुलिस विभाग की ओर से बनाया गया एक अलग विंग है. पहले इसमें अन्य जिलों के पुलिस जवान भी शामिल थे. वर्तमान में कई जिलों में पुलिस भर्ती से हुए जवान अब भी डीआरजी में अपनी सेवा दे रहे हैं. लेकिन वर्तमान सरकार ने अब स्थानीय लोगों को मौका दिया है. यानी नक्सल प्रभावित जिले के युवा इसमें भर्ती हो सकते हैं. इसकी भर्ती जिला स्तर पर होती रहती है. इनकी नौकरी परमानेंट होती है. 62 साल के बाद इनका भी रिटायरमेंट होता है. इन्हें भी पुलिसकर्मियों की तरह भत्ता के साथ-साथ सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.


सरेंडर नक्सलियों की कुछ समय बाद होती है भर्ती: यदि कोई नक्सली है और उसने आत्मसमर्पण कर दिया है तो उसकी भर्ती तुरंत नहीं होती है. उन्हें कुछ समय बिताना होता है. पुलिस के अफसर यह देखते हैं कि उनकी ओर से कुछ नक्सलियों का इनपुट दिया जा रहा है या नहीं. इसके अलावा उस जवान पर भरोसा किया जा सकता है या नही. पुलिस को जब उन पर पूरा भरोसा हो जाता है तभी उनकी भर्ती होती है. इसके बाद उनकी पोस्टिंग गोपनिय सैनिक के रूप में होती है. इन्हें डीआरजी के जवानों के साथ सर्चिंग पर जाना होता है. इनके बताए इनपुट से यदि सफलता मिलती है और यह नक्सलियों को मारने में कामयाब होते हैं तो इनका प्रमोशन भी होता है.

यह भी पढ़ें- Dantewada IED Blast दंतेवाड़ा में शहीद डीआरजी जवानों को सीएम भूपेश बघेल ने दी श्रद्धांजलि


गोपनीय सैनिक के बाद बनते हैं आरक्षक: डीआरजी के अफसरों के मुताबिक "सरेंडर किए नक्सली को पहले गोपनिय सैनिक बनाया जाता है. इनके काम और विश्वास को देखते हुए बाद में इनका प्रमोशन भी होता है. प्रमोशन के बाद उन्हें आरक्षक के पद पर तैनात किया जाता है. आरक्षक के बाद इनका प्रमोशन प्रधान आरक्षक के रूप में होता है. इसमें भी यदि बेहतर काम करते हैं तो उन्हें एएसआई के पद पर प्रमोशन दिया जाता है."

यानी जिस तरह से पुलिस विभाग के जवानों का प्रमोशन होता है ठीक वैसे ही इनका भी प्रमोशन होता है. वर्तमान में कुछ ऐसे भी अफसर हैं, जो सरेंडर करने के बाद प्रमोशन पाकर टीआई स्तर तक के अफसर बने हैं.

रायपुर: डीआरजी का पूरा नाम डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड है. इसका गठन 2008 में किया गया था. डीआरजी जवानों की पोस्टिंग नक्सल प्रभावित जिलों में की जाती है. वर्तमान में छत्तीसगढ़ के 9 जिलों में डीआरजी की पोस्टिंग है. इसमें बस्तर संभाग के सभी 7 जिले शामिल हैं. इसके अलावा राजनांदगांव और कवर्धा में भी डीआरजी के जवानों की तैनाती की गई है. डीआरजी में अधिकतर उन युवाओं को शामिल किया जाता है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र से हैं. उनकी पोस्टिंग भी उसी जिले में की जाती है. इसके अलावा सरेंडर किए नक्सलियों को भी डीआरजी में भर्ती किया जाता है. इसे डीएसपी रैंक के अफसर लीड करते हैं.

परमानेंट होती है इनकी नौकरी: छत्तीसगढ़ पुलिस की तरह डीआरजी भी है. इसकी भर्ती भी पुलिस की तरह ही होती है. कह सकते हैं कि यह पुलिस विभाग की ओर से बनाया गया एक अलग विंग है. पहले इसमें अन्य जिलों के पुलिस जवान भी शामिल थे. वर्तमान में कई जिलों में पुलिस भर्ती से हुए जवान अब भी डीआरजी में अपनी सेवा दे रहे हैं. लेकिन वर्तमान सरकार ने अब स्थानीय लोगों को मौका दिया है. यानी नक्सल प्रभावित जिले के युवा इसमें भर्ती हो सकते हैं. इसकी भर्ती जिला स्तर पर होती रहती है. इनकी नौकरी परमानेंट होती है. 62 साल के बाद इनका भी रिटायरमेंट होता है. इन्हें भी पुलिसकर्मियों की तरह भत्ता के साथ-साथ सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.


सरेंडर नक्सलियों की कुछ समय बाद होती है भर्ती: यदि कोई नक्सली है और उसने आत्मसमर्पण कर दिया है तो उसकी भर्ती तुरंत नहीं होती है. उन्हें कुछ समय बिताना होता है. पुलिस के अफसर यह देखते हैं कि उनकी ओर से कुछ नक्सलियों का इनपुट दिया जा रहा है या नहीं. इसके अलावा उस जवान पर भरोसा किया जा सकता है या नही. पुलिस को जब उन पर पूरा भरोसा हो जाता है तभी उनकी भर्ती होती है. इसके बाद उनकी पोस्टिंग गोपनिय सैनिक के रूप में होती है. इन्हें डीआरजी के जवानों के साथ सर्चिंग पर जाना होता है. इनके बताए इनपुट से यदि सफलता मिलती है और यह नक्सलियों को मारने में कामयाब होते हैं तो इनका प्रमोशन भी होता है.

यह भी पढ़ें- Dantewada IED Blast दंतेवाड़ा में शहीद डीआरजी जवानों को सीएम भूपेश बघेल ने दी श्रद्धांजलि


गोपनीय सैनिक के बाद बनते हैं आरक्षक: डीआरजी के अफसरों के मुताबिक "सरेंडर किए नक्सली को पहले गोपनिय सैनिक बनाया जाता है. इनके काम और विश्वास को देखते हुए बाद में इनका प्रमोशन भी होता है. प्रमोशन के बाद उन्हें आरक्षक के पद पर तैनात किया जाता है. आरक्षक के बाद इनका प्रमोशन प्रधान आरक्षक के रूप में होता है. इसमें भी यदि बेहतर काम करते हैं तो उन्हें एएसआई के पद पर प्रमोशन दिया जाता है."

यानी जिस तरह से पुलिस विभाग के जवानों का प्रमोशन होता है ठीक वैसे ही इनका भी प्रमोशन होता है. वर्तमान में कुछ ऐसे भी अफसर हैं, जो सरेंडर करने के बाद प्रमोशन पाकर टीआई स्तर तक के अफसर बने हैं.

Last Updated : Apr 30, 2023, 9:06 PM IST
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