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No Confidence Motion : पांच साल पहले ही पीएम मोदी ने कर दी थी इसकी 'भविष्यवाणी', जानें पूरा मामला

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Published : Jul 26, 2023, 2:03 PM IST

Updated : Jul 26, 2023, 2:57 PM IST

पांच साल पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में विपक्षी दलों को लेकर जो बात कही थी, आज वह सच साबित हो गई. विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को लेकर नोटिस दिया है. फरवरी 2019 में पीएम मोदी ने कहा था कि अगर विपक्षी दलों का यही रवैया रहा, तो आप 2023 में भी ऐसे ही अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे ? पढ़ें पूरी स्टोरी.

no confidence motion
अविश्वास प्रस्ताव

नई दिल्ली : कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और भारत राष्ट्र समिति सांसद एन नागेश्वर राव ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इसे स्वीकार कर लिया है. स्पीकर ने कहा कि वह इस पर विचार कर के बहस के लिए समय निर्धारित करेंगे. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

यह वीडियो फरवरी 2019 का है. इसमें पीएम मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में जवाब दे रहे हैं. इसमें वह एक जगह पर यह बोल रहे हैं कि आपलोग (विपक्ष) 2023 में भी ऐसा ही अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कीजिए और हम आपको शुभकामनाएं दे रहे हैं.

पीएम मोदी का यही भाषण आज एक बार फिर से सोशल मीडिया पर साझा किया जा रहा है. इसमें पीएम मोदी यह भी कह रहे हैं कि आपके (कांग्रेस) अहंकार की वजह से ही आपके सदस्यों की संख्या 400 से घटकर 40 हो गई है. इस वीडियो में पीएम मोदी यह भी कह रहे हैं कि हमारी सेवा भावना की बदौलत ही भाजपा दो सीटों से बढ़कर आज यहां तक पहुंच गई है.

इस वीडियो को खूब साझा किया जा रहा है. लोग पीएम मोदी को 'दूरदर्शी' बताकर विपक्षी दलों पर निशाना भी साध रहे हैं. कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने कहा कि उन्होंने इस प्रस्ताव को स्पीकर कार्यालय में औपचारिक रूप से जमा कर दिया है.

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विपक्ष की योजना कभी भी सफल नहीं होगी, क्योंकि देश की जनता विपक्ष को पूरी तरह से समझ चुकी है. उन्होंने कहा कि देश की जनता इन्हें पहले ही सबक सीखा चुकी है. एक दिन पहले पीएम मोदी ने विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा था कि नाम बदलने से कुछ नहीं होता है. उन्होंने कहा कि इंडिया नाम तो ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन मुजाहिदीन में भी शामिल है. हालांकि, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसका जवाब दिया और कहा कि उनका प्रयास जारी रहेगा, पीएम मोदी चाहे कुछ भी बोलें.

अविश्वास प्रस्ताव - आपको बता दें कि मणिपुर मामले पर पक्ष और विपक्ष के बीच खूब बयानबाजी हो रही है. विपक्ष चाहता है कि इस मुद्दे पर जवाब पीएम को देना चाहिए, जबकि सरकार का कहना है कि इस मामले पर कौन जवाब देगा, यह तय करना स्पीकर का अधिकार है या फिर सरकार तय करेगी. सरकार की ओर से बताया गया है कि गृह मंत्री इसका जवाब देंगे. सरकार की ओर से यह बताया गया कि मणिपुर में इससे पहले भी हिंसा हुई थी और तब सरकार की ओर से गृह राज्य मंत्री ने जवाब दिया था.

50 सांसदों का समर्थन जरूरी - अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम के कम 50 सांसदों का समर्थन चाहिए. इसके बाद ही प्रस्ताव पर चर्चा की जाती है. वैसे, लोकसभा में सरकार को बहुमत है. एनडीए के पास 331 सांसद हैं. फिर भी विपक्ष इसे लाकर एक राजनीतिक संदेश देने की कोशिश कर रहा है. यह पहली बार होगा कि 'इंडिया' (विपक्षी दलों का नया गठबंधन) के गठन के बाद इसके सभी घटक सदन में किसी बहस में हिस्सा लेंगे.

कुछ विपक्षी सांसदों ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के उस वक्तव्य को भी दोहराया, जिसमें उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के उद्देश्य को लेकर अपनी राय रखी थी. यह 1963 की बात है. देश में पहली बार किसी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की जा रही थी. इस प्रस्ताव को जेपी कृपलानी लेकर आए थे. नेहरू ने कहा था कि इतना तो तय है कि आपका अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं हो पाएगा, फिर भी आप इसे लेकर आए हैं.

नेहरू ने आगे कहा कि अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य सीटिंग गवर्मेंट को हटाना होता है. लेकिन आपके पास संख्या बल नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि मैं भी मानता हूं कि अविश्वास प्रस्ताव के कारण जो बहस होती है, वह बहुत ही रोचक होती है और इससे सरकार को फायदा पहुंचता है, इसलिए व्यक्तिगत तौर पर मैं इस प्रस्ताव का स्वागत करता हूं. नेहरू ने कहा था कि सरकार इस बहाने सजग हो जाती है और वह अपने कार्य में सुधार भी ला सकती है. इसलिए समय-समय पर ऐसे प्रस्ताव लाए जाने चाहिए, ताकि सरकार उसका फायदा उठा सके.

विपक्षी दलों के नेता इसी भाषण को उद्धृत कर रहे हैं. यहां आपको बता दें कि किसी भी अविश्वास प्रस्ताव से सरकार गिरने का पहला उदाहरण मोराजी देसाई सरकार का है. 1979 में विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद वोटिंग में उनकी सरकार हार गई थी. कांग्रेस के वाई वी चव्हाण इस प्रस्ताव को लेकर आए थे.

अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया -कोई भी सांसद इस प्रस्ताव को ला सकता है, बशर्ते उसे कम के कम 50 सांसदों का समर्थन हो. इसके बाद स्पीकर यह तय करते हैं कि बहस कब होगी. स्पीकर को 10 दिनों के अंदर बहस की तारीख तय करनी होती है. सरकार को बहस के बाद अपना बहुमत साबित करना होता है. अगर सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाती है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है.

ये भी पढ़ें : NDA versus INDIA in Bihar : राजद और जदयू गठबंधन को चुनौती देना आसान नहीं, क्या है भाजपा की रणनीति, जानें

नई दिल्ली : कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और भारत राष्ट्र समिति सांसद एन नागेश्वर राव ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इसे स्वीकार कर लिया है. स्पीकर ने कहा कि वह इस पर विचार कर के बहस के लिए समय निर्धारित करेंगे. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

यह वीडियो फरवरी 2019 का है. इसमें पीएम मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में जवाब दे रहे हैं. इसमें वह एक जगह पर यह बोल रहे हैं कि आपलोग (विपक्ष) 2023 में भी ऐसा ही अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कीजिए और हम आपको शुभकामनाएं दे रहे हैं.

पीएम मोदी का यही भाषण आज एक बार फिर से सोशल मीडिया पर साझा किया जा रहा है. इसमें पीएम मोदी यह भी कह रहे हैं कि आपके (कांग्रेस) अहंकार की वजह से ही आपके सदस्यों की संख्या 400 से घटकर 40 हो गई है. इस वीडियो में पीएम मोदी यह भी कह रहे हैं कि हमारी सेवा भावना की बदौलत ही भाजपा दो सीटों से बढ़कर आज यहां तक पहुंच गई है.

इस वीडियो को खूब साझा किया जा रहा है. लोग पीएम मोदी को 'दूरदर्शी' बताकर विपक्षी दलों पर निशाना भी साध रहे हैं. कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने कहा कि उन्होंने इस प्रस्ताव को स्पीकर कार्यालय में औपचारिक रूप से जमा कर दिया है.

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विपक्ष की योजना कभी भी सफल नहीं होगी, क्योंकि देश की जनता विपक्ष को पूरी तरह से समझ चुकी है. उन्होंने कहा कि देश की जनता इन्हें पहले ही सबक सीखा चुकी है. एक दिन पहले पीएम मोदी ने विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा था कि नाम बदलने से कुछ नहीं होता है. उन्होंने कहा कि इंडिया नाम तो ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन मुजाहिदीन में भी शामिल है. हालांकि, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसका जवाब दिया और कहा कि उनका प्रयास जारी रहेगा, पीएम मोदी चाहे कुछ भी बोलें.

अविश्वास प्रस्ताव - आपको बता दें कि मणिपुर मामले पर पक्ष और विपक्ष के बीच खूब बयानबाजी हो रही है. विपक्ष चाहता है कि इस मुद्दे पर जवाब पीएम को देना चाहिए, जबकि सरकार का कहना है कि इस मामले पर कौन जवाब देगा, यह तय करना स्पीकर का अधिकार है या फिर सरकार तय करेगी. सरकार की ओर से बताया गया है कि गृह मंत्री इसका जवाब देंगे. सरकार की ओर से यह बताया गया कि मणिपुर में इससे पहले भी हिंसा हुई थी और तब सरकार की ओर से गृह राज्य मंत्री ने जवाब दिया था.

50 सांसदों का समर्थन जरूरी - अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम के कम 50 सांसदों का समर्थन चाहिए. इसके बाद ही प्रस्ताव पर चर्चा की जाती है. वैसे, लोकसभा में सरकार को बहुमत है. एनडीए के पास 331 सांसद हैं. फिर भी विपक्ष इसे लाकर एक राजनीतिक संदेश देने की कोशिश कर रहा है. यह पहली बार होगा कि 'इंडिया' (विपक्षी दलों का नया गठबंधन) के गठन के बाद इसके सभी घटक सदन में किसी बहस में हिस्सा लेंगे.

कुछ विपक्षी सांसदों ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के उस वक्तव्य को भी दोहराया, जिसमें उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के उद्देश्य को लेकर अपनी राय रखी थी. यह 1963 की बात है. देश में पहली बार किसी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की जा रही थी. इस प्रस्ताव को जेपी कृपलानी लेकर आए थे. नेहरू ने कहा था कि इतना तो तय है कि आपका अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं हो पाएगा, फिर भी आप इसे लेकर आए हैं.

नेहरू ने आगे कहा कि अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य सीटिंग गवर्मेंट को हटाना होता है. लेकिन आपके पास संख्या बल नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि मैं भी मानता हूं कि अविश्वास प्रस्ताव के कारण जो बहस होती है, वह बहुत ही रोचक होती है और इससे सरकार को फायदा पहुंचता है, इसलिए व्यक्तिगत तौर पर मैं इस प्रस्ताव का स्वागत करता हूं. नेहरू ने कहा था कि सरकार इस बहाने सजग हो जाती है और वह अपने कार्य में सुधार भी ला सकती है. इसलिए समय-समय पर ऐसे प्रस्ताव लाए जाने चाहिए, ताकि सरकार उसका फायदा उठा सके.

विपक्षी दलों के नेता इसी भाषण को उद्धृत कर रहे हैं. यहां आपको बता दें कि किसी भी अविश्वास प्रस्ताव से सरकार गिरने का पहला उदाहरण मोराजी देसाई सरकार का है. 1979 में विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद वोटिंग में उनकी सरकार हार गई थी. कांग्रेस के वाई वी चव्हाण इस प्रस्ताव को लेकर आए थे.

अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया -कोई भी सांसद इस प्रस्ताव को ला सकता है, बशर्ते उसे कम के कम 50 सांसदों का समर्थन हो. इसके बाद स्पीकर यह तय करते हैं कि बहस कब होगी. स्पीकर को 10 दिनों के अंदर बहस की तारीख तय करनी होती है. सरकार को बहस के बाद अपना बहुमत साबित करना होता है. अगर सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाती है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है.

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Last Updated : Jul 26, 2023, 2:57 PM IST
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