जोधपुर : नगर निगम की सफाई कर्मी आशा कंडारा का सपना था कि वह आर्मी जॉइन करे. लेकिन सपने पूरे होने से पहले ही शादी और उसके बाद पति से तलाक जैसे कई उतार-चढ़ाव ने उसे संभलने का मौका नहीं दिया. आशा ने चुनौतियों से कभी हार नहीं मानी और आखिर उम्मीदों को उड़ान देने में कामयाब हुईं. आरएएस 2018 में पहले ही बार में चयनित होने वाली जोधपुर नगर निगम की सफाईकर्मी आशा की सक्सेस स्टोरी बाहर से जितनी फिल्मी दिखती है, उतनी ही चुनौतियों और संघर्ष भरा रहा है उनका जीवन.
आशा ने 12 वीं पास करने के 16 साल बाद ग्रेजुएशन की और उसके बाद तय किया कि मुझे आरएएस अफसर बनना है. राजस्थान की सबसे बड़ी सेवा के लिए चयनित होना है. आशा ने उम्मीदों को कायम रखा और मन लगाकर तैयारी शुरू की. आरएएस भर्ती 2018 के लिए फॉर्म भरा. 2019 में प्री एग्जाम पास किया और उसके बाद मेन्स भी पास कर ली. लेकिन लंबी प्रक्रिया के दौरान परिवार को आर्थिक संबल भी चाहिए था. इसके चलते आशा ने नगर निगम में सफाई कर्मी की भर्ती के लिए भी आवेदन कर दिया.
आरएएस मेन्स एग्जाम देने के 10 दिनों बाद ही आशा को नगर निगम में बतौर सफाई कर्मी नियुक्ति मिल गई और उन्होंने काम भी शुरू कर दिया. लगातार 2 साल तक वह जोधपुर की सड़कों पर अपनी ड्यूटी निभाती रही. लंबी भर्ती प्रक्रिया के बावजूद आशा ने उम्मीदों को बनाए रखा. अंततः मंगलवार रात को खुशनसीब दिन आया जब आशा की मेहनत सफल हो गई. अपने पहले ही प्रयास में आशा ने आरएएस परीक्षा पास कर ली.
ईटीवी भारत के साथ अपनी सक्सेस स्टोरी बताते हुए आशा कहती हैं कि इस सफलता के लिए उन्हें सबसे बड़ा सहयोग उनके माता-पिता का मिला. धैर्य सबसे बड़ी पूंजी है, जिसके पास यह पूंजी है वह कुछ भी कर सकता है. आशा कहती है कि मैं अपने ही नहीं बल्कि सभी समाज के लोगों को यह कहना चाहती हूं कि पढ़ाई करें. बच्चों को पढ़ाएं, बिना पढ़ाई के कुछ नहीं है.
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आशा का कहना है कि मैंने नगर निगम का भी फॉर्म भरा और काम भी किया. कोई भी काम या समाज छोटा या बड़ा नहीं होता, यह लोगों की धारणा है सिर्फ. लेकिन मैं मानती हूं कि सभी तरह के काम बड़े ही होते हैं. जब भी मुझे समय मिलता पढ़ाई करती थी. आशा का कहना है कि ऐसा कोई काम नहीं, जिसे महिला नहीं कर सकती.
आशा के दो बच्चे हैं और वे उनकी शिक्षा को लेकर भी लगातार सक्रिय और जागरूक हैं. उनके बेटे ने ग्रेजुएशन कर ली है तो बेटी ने आईआईटी जेईई के लिए क्वालीफाई किया है. आशा का कहना कि महिला घर के परिवार के साथ भी पढ़ाई कर सकती है, अगर करना चाहे तो. पढ़ाई के लिए समय निकाला जा सकता है. आशा कहती हैं कि वह अबला नारी नहीं है और न ही वह प्रताड़ित हैं. परिवार के सहयोग से ही उन्होंने सफलता हासिल की है.
आशा बताती हैं कि नगर निगम में बतौर सफाई कर्मी उसकी 6 घंटे की ड्यूटी हुआ करती थी. इस दौरान भी जब भी उन्हें समय मिलता है पढ़ाई करती थी. इसके लिए वे हमेशा किताबें भी साथ रखती थीं. कोरोना महामारी के दौरान भी आशा ने शहर की मुख्य सड़कों पर झाड़ू लगाई. लेकिन आशा के जिद और संघर्ष ने ही उन्हें आरएएस बना दिया. वे कहती हैं कि कोई भी काम छोटा नहीं होता है. अगर मन में बड़ा करने की चाहत हो तो हर मुश्किल का हल मिल जाता है.