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उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे : शिवसेना पर किसका कितना हक, जानिए दावे की हकीकत

उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे की लड़ाई अबकी बार पार्टी में बड़ा उलटफेर करने वाली है. अब शिवसेना में असली नकली का खेल शुरू हो गया है. ऐसा तब हुआ है, जब ठाकरे परिवार रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखने के बजाय खुद मुख्यमंत्री व मंत्री बनने की कोशिश कर बैठा है. सत्ता की राजनीति में उद्धव ठाकरे कच्चे खिलाड़ी साबित हुए हैं. कुर्सी खोने के बाद अब पार्टी भी हाथ से बाहर निकलती दिख रही है. Maharashtra Political Crisis फिलहाल सबकी नजर है और फैसला अब भारत निर्वाचन आयोग के हाथ में है...

Uddhav Vs Shinde Claim on Shiv Sena
उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे
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Published : Sep 28, 2022, 2:16 PM IST

नई दिल्ली : महाराष्ट्र में एक बार फिर उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे (Uddhav Thackeray Vs Eknath Shinde) की जंग शुरू होने जा रही है. दशहरा पर शिवाजी पार्क में रैली (Shivaji Park Shiv Sena Dussehra Rally) करने का मौका भले ही उद्धव ठाकरे को मिला है पर शिंदे भी इसी दिन बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (Bandra Kurla Complex) में अपना दमखम दिखाएंगे. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले में निर्वाचन आयोग को सुनवाई करके फैसला लेने के लिए कह दिया है. ऐसे में 'असली शिवसेना' व 'नकली शिवसेना' की जंग एक बार फिर से छिड़ गई है. दोनों तरफ से दावा किया जा रहा है कि असल में शिवसैनिक उनके साथ हैं और शिवसेना के असली हकदार वही हैं.

मंगलवार 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में असली शिवसेना (Shiv Sena) के दावे के मुद्दे पर सुनवायी के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ (Constitution Bench) ने भारत चुनाव आयोग (Election Commission of India) को मामले में सुनवाई का अधिकार देते हुए उद्धव ठाकरे के गुट को बड़ा झटका दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग को एकनाथ शिंदे समूह के असली शिवसेना होने के दावे पर फैसला करने से रोकने से इनकार करते हुए कहा कि इस मामले में भारत निर्वाचन आयोग सुनवाई करते हुए अपना फैसला ले सकता है.

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में शिवसेना के राजनीतिक विवाद के चक्कर में उद्धव और शिंदे गुटों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दायर 7 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया था कि अब संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी और पहले निर्णय लिया जाएगा कि क्या चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगानी है या नहीं ? चूंकि कई संवैधानिक मुद्दे, विशेष रूप से 10 वीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) से संबंधित याचिकाओं में शामिल हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 10वीं अनुसूची पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत है. इसके लिए पांच जजों की बड़ी बेंच का गठन किया गया, जिसमें जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस नरसिंहमन शामिल थे.

देश की शीर्ष अदालत का फैसला बृहन्मुंबई नगर निगम चुनावों के मद्देनजर बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि शिंदे और ठाकरे दोनों गुट चुनाव में असली शिवसेना बनकर चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. पीठ ने कहा कि पार्टी के भीतर विवाद और पार्टी के 'धनुष और तीर' पर चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही पर कोई रोक नहीं होगी.

Uddhav Vs Shinde Claim on Shiv Sena
उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की लड़ाई के अहम बिंदु

महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे (Maharashtra Political Crisis) के अलग होने के बाद दोनों गुट के बीच तीन अहम बिंदुओं पर विवाद बताया जा रहा है-

1. असली शिवसेना कौन है ?

2. शिवसेना के चुनाव चिन्ह पर किसका अधिकार ?

3. बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाला एकनाथ शिंदे गुट संवैधानिक है या असंवैधानिक ?

आपको याद होगा कि एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल में मंत्री थे और भीतर ही भीतर उद्धव ठाकरे से नाराज चल रहे थे. फिर अचानक उद्धव को झटका देते हुए कई विधायकों को अपने पाले में खींचकर एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हो गए. लेकिन अब अहम सवाल यह है कि शिवसेना पार्टी पर किसका दावा सही है और कौन शिवसेना पर असली अधिकारी है. शिवसेना पर दोनों गुट अपने अपने तर्क देकर दावा कर रहे हैं और अब मामला चुनाव आयोग के हाथ में आ गया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उद्धव ठाकरे गुट को झटका माना जा रहा है.

शिवसेना में असली नकली का खेल शुरू
अभी अगर विधायकों और सांसदों की संख्या को देखा जाय तो मौजूदा हालात में शिवसेना के 56 विधायकों में से 40 शिंदे व 16 ठाकरे गुट के साथ हैं. जबकि 18 लोकसभा सांसदों में से 12 शिंदे को समर्थन दे रहे हैं और केवल 6 सांसद बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के साथ हैं. वहीं अगर शिवसेना के राज्यसभा सांसदों को देखा जाय तो सभी 3 राज्यसभा सांसद फिलहाल उद्धव ठाकरे के साथ हैं. इसके साथ साथ 12 राज्यों के प्रमुखों ने एकनाथ शिंदे को समर्थन देने का फैसला करते हुए उनसे मुलाकात की थी और उद्धव ठाकरे को एक तरह से नकार दिया था. इसी वजह से राजनीतिक तौर पर पार्टी पर दावे के संबंध में एकनाथ शिंदे का दावा विधायकों व सांसदों के साथ साथ राज्य इकाइयों में मजबूत दिख रहा है.

दशहरा रैली पर दिखेगा दम
शिवसेना के लिए दशहरा रैली एक वार्षिक आयोजन माना जाता है. यह परंपरा पार्टी की स्थापना के साल 1966 से चली आ रही है. साल 1966 से जब से शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने पार्टी की स्थापना की है तब से दशहरा रैली एक वार्षिक परंपरा रही है. 30 अक्टूबर, 1966 को उन्होंने पार्टी के एजेंडे को पूरा करने के लिए दशहरा रैली का आयोजन किया और तब से शिवाजी पार्क उनके उत्साही भाषणों का पर्याय बन गया था. इसी परंपरा को उनके बाद के राजनेताओं ने जारी रखा है. अबकी बार पार्टी के भीतर विभाजन के बाद दशहरे के दिन होने वाले आयोजनों पर लोगों की नजर है. कहा जा रहा है कि दशहरा रैली में शिवसेना के कौन कौन से नेता शामिल होते हैं और उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के अलावा कौन कौन बड़े नेता उनके साथ आते हैं. फिलहाल उनके सबसे करीबी व खासमखास नेता संजय राउत जेल में हैं. ऐसे में रैली को सफल बनाने का सारा दारोमदार उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे पर ही होगा.

शुरुआती खबरों में ऐसी बातें आयीं थी कि सीएम एकनाथ शिंदे भी शिवाजी पार्क में ही दशहरा रैली करना चाहते हैं. वे शिवसेना को अपनी पार्टी मानते हुए इस बात का दावा कर रहे थे. इस पर उद्धव ठाकरे ने दो टूक जवाब देते हुए कहा था कि हर कीमत पर उनकी शिवसेना की रैली शिवाजी पार्क में होगी. उद्धव ने कहा कि असली शिवसेना की यानी हमारी दशहरा रैली मुंबई के शिवाजी पार्क में ही होगी. राज्यभर से शिवसैनिक इस रैली के लिए पहुंचेंगे. सरकार अनुमति देगी नहीं देगी, ये तकनीकी बाते हैं. वहीं शिंदे गुट के बारे में कहा था कि हम नहीं जानते कोई रैली कर रहा है या नहीं कर रहा, हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.

ठाकरे की टिप्पणी

''शिवसेना गद्दारों से नहीं शिवसैनिकों के खून से बनी है. महाराष्ट्र की मिट्टी गद्दारी के बाद मर्दों को जन्म देती है नामर्दो को नहीं. शिवसेना कोई रास्ते पर पड़ी हुई वस्तु नहीं जो कोई भी उठा कर उसे अपने जेब में डाल ले. शिवसेना को 56 साल पूरे होने जा रहे हैं, ऐसे कई छप्पन आए और चले गए, लेकिन हमें फर्क नहीं पड़ा.''

Uddhav Vs Shinde Claim on Shiv Sena
कितने सांसद विधायक किसके साथ

शिंदे गुट की अलग तैयारी
एकनाथ शिंदे ने दशहरे के दिन होने वाली रैली को लेकर शुरू हुए विवाद व कोर्ट के फैसले के बाद अपने गुट की रैली के लिए बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) को चुन लिया है. वहां की रैली को शिवाजी पार्क से बड़ा बनाने की योजना है. इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी अमले से मदद व सहयोग लिया जाएगा. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्यभर में हजारों बसें व आधा दर्जन ट्रेनों से लोगों को लाने की योजना पर काम किया जा रहा है. इस दौरान मंच पर शिंदे गुट के 40 विधायक, 12 सांसदों के साथ साथ कई राज्यों के पार्टी प्रमुख भी दिख सकते हैं.

ऐसे शुरू हुआ था विवाद
शिंदे व ठाकरे में विवाद पिछले 20 जून को शुरू तब हुआ था जब शिवसेना के 15 और 10 निर्दलीय विधायकों ने तत्कालीन महाविकास अघाड़ी सरकार के खिलाफ बगावती रुख के अपनाकर पहले गुजरात के सूरत शहर में चले गए और कुछ दिन बाद फिर वहां से वे असम के गुवाहाटी पहुंच गए थे. 23 जून के एकनाथ शिंदे ने उनके साथ 35 विधायकों के समर्थन की बात कहते हुए बगावत के खुले संकेत दिए. सके बाद शिंदे ने कहा कि उनके साथ शिवसेना के 55 में से 39 विधायक आ गए हैं. इसके बाद देवेंद्र फडणवीस की मांग पर 28 जून के राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे से बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा तो ठाकरे इस पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट चले गए. जब कोर्ट के द्वारा बहुमत परीक्षण पर रोक से इनकार कर दिया तो 29 जून को उद्धव ठाकरे ने सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया था. 30 जून को एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बन गए.

Uddhav Vs Shinde Claim on Shiv Sena
अब तक का पूरा घटनाक्रम

एक नजर में महाराष्ट्र सियासी संकट के पूरे घटनाक्रम को ऐसे समझने की कोशिश करिए...

  • 20 जून 2022: शिवसेना के 15 विधायक 10 निर्दलीय विधायकों के साथ पहले सूरत और फिर गुवाहाटी गए
  • 23 जून 2022: एकनाथ शिंदे का दावा, मेरे पार 35 विधायकों का समर्थन, जारी किया लेटर
  • 25 जून 2022: डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों को सदस्यता रद्द करने की भेजी नोटिस, बागी विधायक गए सुप्रीम कोर्ट
  • 26 जून 2022: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, शिवसेना, केंद्र, महाराष्ट्र पुलिस और डिप्टी स्पीकर को नोटिस, बागी विधायकों को राहत
  • 28 जून 2022: उद्धव ठाकरे को राज्यपाल का आदेश, बहुमत साबित करने की देवेंद्र फडणवीस ने की थी मांग
  • 29 जून 2022: सुप्रीम कोर्ट का फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार, उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से दिया इस्तीफा
  • 30 जून 2022: एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, भाजपा के देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री बनाए गए
  • 3 जुलाई 2022: विधानसभा के नए स्पीकर ने शिंदे गुट को सदन में दी मान्यता
  • 4 जुलाई 2022: एकनाथ शिंदे ने विश्वास मत हासिल किया
  • 3 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 10 दिन के लिए सुनवाई टली तो शिंदे ने सरकार बना ली
  • 4 अगस्त 2022: SC ने कहा- जब तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित, तब तक चुनाव आयोग कोई फैसला न ले
  • 4 अगस्त 2022: सुनवाई के बाद मामले की सुनवाई तीन बार टली, 8, 12 और 22 अगस्त को कोर्ट का कोई फैसला नहीं
  • 23 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को किया ट्रांसफर, चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक
  • 27 सितंबर 2022: संविधान पीठ ने शिवसेना पर दावेदारी के मामले की सुनवाई के लिए चुनाव आयोग को निर्देश, कार्यवाही से रोक हटायी, अब आयोग ही लेगा फैसला

अब तक शिवसेना छोड़ने वाले बड़े नेता
1996 में पार्टी के गठन के शुरुआती दौर में बाल ठाकरे को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, लेकिन अंततः उन्होंने शिव सेना को सत्ता की सीढ़ियों पर पहुंचाकर ही दम लिया. 1995 में भाजपा-शिवसेना के गठबन्धन ने महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई. 1966 में शिवसेना के गठन के बाद इसको आगे बढ़ाने वाले कई नेता पार्टी छोड़कर बाहर चले गए. नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला तब शुरू हुआ जब मुख्यमंत्री की कुर्सी व पार्टी को लीड करने की जंग नेताओं के बीच शुरू हुयी. हालांकि इसके बाद पार्टी के कई कद्दावर नेताओं ने उनका साथ छोड़ा, लेकिन पार्टी नहीं टूटी. जो नेता गया वह दूसरे दल में शामिल हो गया या अपनी अलग से पार्टी बना ली. अबकी बार पार्टी में बड़ा उलटफेर होने के बाद असली नकली का खेल शुरू हो गया है. ऐसा तब हुआ है जब ठाकरे परिवार रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखने के बजाय खुद मुख्यमंत्री व मंत्री बनने की कोशिश कर बैठा. सत्ता की राजनीति में ठाकरे कच्चे खिलाड़ी साबित हुए और उनके हाथ से पार्टी के विधायक कब व कैसे निकलते गए उन्हें हवा तक नहीं लगी. एकनाथ शिंदे की महत्वाकांक्षा को भाजपा ने हवा दी और कुर्सी पर बैठाने में बड़ी भूमिका निभाते हुए एक बड़ा राजनीतिक दांव (Maharashtra Political Crisis) खेला. इससे भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साध लिए. एक तो उद्धव ठाकरे के हाथ से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली और दूसरा उनकी पार्टी में उनको बेगाना कर दिया.

इसे भी देखें : उद्धव पर निशाना, शिंदे बोले- 50 मजबूत परतों की मदद से जून में ही तोड़ी थी दही हांडी

नारायण राणे (Narayan Rane)
शिवसेना की विकास यात्रा में शामिल कई बड़े नेताओं ने समय समय पार्टी छोड़ी. सबसे पहले 3 जुलाई 2005 को नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ी. पार्टी छोड़ते समय उनका कहना था कि पार्टी के मुखिया बालासाहेब ठाकरे द्वारा उन्हें दरकिनार किया जा रहा था और वह अपने बेटे उद्धव ठाकरे को आगे बढ़ाना चाहते थे. इसके बाद काफी नाटककीय घटनाक्रम में वह शिवसेना छोड़ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए.

छगन भुजबल (Chhagan Bhujbal)
एक जमाने में हार्डकोर शिवसैनिक कहा जाने वाले छगन भुजबल की गिनती ओबीसी समुदाय के बड़े नेता रुप में होती है. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1960 के दशक में शिवसेना से की थी. राजनीति में आने से पहले भुजबल सब्जी और फल विक्रेता के रुप में अपना व्यापार करते थे. मुंबई से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद शिवसेना के दर्शन और बालासाहेब ठाकरे के व्यक्तित्व व बातों से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला कर लिया. इसके बाद भुजबल एक कट्टर शिव सैनिक बन गए. बाद में मतभेदों के कारण उन्होंने 1991 में पार्टी छोड़ दी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए.

इसे भी देखें : उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव की मांग की, बोले-शिवसेना के पास रहेगा चुनाव चिह्न तीर-धनुष

राज ठाकरे (Raj Thackeray)
एक समय में शिवसेना फायर ब्रांड नेताओं में गिने जाने वाले बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने भी पार्टी की गतिविधियों व उपेक्षा किए जाने से नाराज होकर शिवसेना छोड़ दी थी. इनका आरोप था कि बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे द्वारा उनको दरकिनार किया जा रहा था. इसके बाद शिवसेना छोड़ते हुए 9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) का गठन किया.

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नई दिल्ली : महाराष्ट्र में एक बार फिर उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे (Uddhav Thackeray Vs Eknath Shinde) की जंग शुरू होने जा रही है. दशहरा पर शिवाजी पार्क में रैली (Shivaji Park Shiv Sena Dussehra Rally) करने का मौका भले ही उद्धव ठाकरे को मिला है पर शिंदे भी इसी दिन बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (Bandra Kurla Complex) में अपना दमखम दिखाएंगे. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले में निर्वाचन आयोग को सुनवाई करके फैसला लेने के लिए कह दिया है. ऐसे में 'असली शिवसेना' व 'नकली शिवसेना' की जंग एक बार फिर से छिड़ गई है. दोनों तरफ से दावा किया जा रहा है कि असल में शिवसैनिक उनके साथ हैं और शिवसेना के असली हकदार वही हैं.

मंगलवार 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में असली शिवसेना (Shiv Sena) के दावे के मुद्दे पर सुनवायी के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ (Constitution Bench) ने भारत चुनाव आयोग (Election Commission of India) को मामले में सुनवाई का अधिकार देते हुए उद्धव ठाकरे के गुट को बड़ा झटका दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग को एकनाथ शिंदे समूह के असली शिवसेना होने के दावे पर फैसला करने से रोकने से इनकार करते हुए कहा कि इस मामले में भारत निर्वाचन आयोग सुनवाई करते हुए अपना फैसला ले सकता है.

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में शिवसेना के राजनीतिक विवाद के चक्कर में उद्धव और शिंदे गुटों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दायर 7 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया था कि अब संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी और पहले निर्णय लिया जाएगा कि क्या चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगानी है या नहीं ? चूंकि कई संवैधानिक मुद्दे, विशेष रूप से 10 वीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) से संबंधित याचिकाओं में शामिल हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 10वीं अनुसूची पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत है. इसके लिए पांच जजों की बड़ी बेंच का गठन किया गया, जिसमें जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस नरसिंहमन शामिल थे.

देश की शीर्ष अदालत का फैसला बृहन्मुंबई नगर निगम चुनावों के मद्देनजर बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि शिंदे और ठाकरे दोनों गुट चुनाव में असली शिवसेना बनकर चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. पीठ ने कहा कि पार्टी के भीतर विवाद और पार्टी के 'धनुष और तीर' पर चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही पर कोई रोक नहीं होगी.

Uddhav Vs Shinde Claim on Shiv Sena
उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की लड़ाई के अहम बिंदु

महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे (Maharashtra Political Crisis) के अलग होने के बाद दोनों गुट के बीच तीन अहम बिंदुओं पर विवाद बताया जा रहा है-

1. असली शिवसेना कौन है ?

2. शिवसेना के चुनाव चिन्ह पर किसका अधिकार ?

3. बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाला एकनाथ शिंदे गुट संवैधानिक है या असंवैधानिक ?

आपको याद होगा कि एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल में मंत्री थे और भीतर ही भीतर उद्धव ठाकरे से नाराज चल रहे थे. फिर अचानक उद्धव को झटका देते हुए कई विधायकों को अपने पाले में खींचकर एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हो गए. लेकिन अब अहम सवाल यह है कि शिवसेना पार्टी पर किसका दावा सही है और कौन शिवसेना पर असली अधिकारी है. शिवसेना पर दोनों गुट अपने अपने तर्क देकर दावा कर रहे हैं और अब मामला चुनाव आयोग के हाथ में आ गया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उद्धव ठाकरे गुट को झटका माना जा रहा है.

शिवसेना में असली नकली का खेल शुरू
अभी अगर विधायकों और सांसदों की संख्या को देखा जाय तो मौजूदा हालात में शिवसेना के 56 विधायकों में से 40 शिंदे व 16 ठाकरे गुट के साथ हैं. जबकि 18 लोकसभा सांसदों में से 12 शिंदे को समर्थन दे रहे हैं और केवल 6 सांसद बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के साथ हैं. वहीं अगर शिवसेना के राज्यसभा सांसदों को देखा जाय तो सभी 3 राज्यसभा सांसद फिलहाल उद्धव ठाकरे के साथ हैं. इसके साथ साथ 12 राज्यों के प्रमुखों ने एकनाथ शिंदे को समर्थन देने का फैसला करते हुए उनसे मुलाकात की थी और उद्धव ठाकरे को एक तरह से नकार दिया था. इसी वजह से राजनीतिक तौर पर पार्टी पर दावे के संबंध में एकनाथ शिंदे का दावा विधायकों व सांसदों के साथ साथ राज्य इकाइयों में मजबूत दिख रहा है.

दशहरा रैली पर दिखेगा दम
शिवसेना के लिए दशहरा रैली एक वार्षिक आयोजन माना जाता है. यह परंपरा पार्टी की स्थापना के साल 1966 से चली आ रही है. साल 1966 से जब से शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने पार्टी की स्थापना की है तब से दशहरा रैली एक वार्षिक परंपरा रही है. 30 अक्टूबर, 1966 को उन्होंने पार्टी के एजेंडे को पूरा करने के लिए दशहरा रैली का आयोजन किया और तब से शिवाजी पार्क उनके उत्साही भाषणों का पर्याय बन गया था. इसी परंपरा को उनके बाद के राजनेताओं ने जारी रखा है. अबकी बार पार्टी के भीतर विभाजन के बाद दशहरे के दिन होने वाले आयोजनों पर लोगों की नजर है. कहा जा रहा है कि दशहरा रैली में शिवसेना के कौन कौन से नेता शामिल होते हैं और उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के अलावा कौन कौन बड़े नेता उनके साथ आते हैं. फिलहाल उनके सबसे करीबी व खासमखास नेता संजय राउत जेल में हैं. ऐसे में रैली को सफल बनाने का सारा दारोमदार उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे पर ही होगा.

शुरुआती खबरों में ऐसी बातें आयीं थी कि सीएम एकनाथ शिंदे भी शिवाजी पार्क में ही दशहरा रैली करना चाहते हैं. वे शिवसेना को अपनी पार्टी मानते हुए इस बात का दावा कर रहे थे. इस पर उद्धव ठाकरे ने दो टूक जवाब देते हुए कहा था कि हर कीमत पर उनकी शिवसेना की रैली शिवाजी पार्क में होगी. उद्धव ने कहा कि असली शिवसेना की यानी हमारी दशहरा रैली मुंबई के शिवाजी पार्क में ही होगी. राज्यभर से शिवसैनिक इस रैली के लिए पहुंचेंगे. सरकार अनुमति देगी नहीं देगी, ये तकनीकी बाते हैं. वहीं शिंदे गुट के बारे में कहा था कि हम नहीं जानते कोई रैली कर रहा है या नहीं कर रहा, हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.

ठाकरे की टिप्पणी

''शिवसेना गद्दारों से नहीं शिवसैनिकों के खून से बनी है. महाराष्ट्र की मिट्टी गद्दारी के बाद मर्दों को जन्म देती है नामर्दो को नहीं. शिवसेना कोई रास्ते पर पड़ी हुई वस्तु नहीं जो कोई भी उठा कर उसे अपने जेब में डाल ले. शिवसेना को 56 साल पूरे होने जा रहे हैं, ऐसे कई छप्पन आए और चले गए, लेकिन हमें फर्क नहीं पड़ा.''

Uddhav Vs Shinde Claim on Shiv Sena
कितने सांसद विधायक किसके साथ

शिंदे गुट की अलग तैयारी
एकनाथ शिंदे ने दशहरे के दिन होने वाली रैली को लेकर शुरू हुए विवाद व कोर्ट के फैसले के बाद अपने गुट की रैली के लिए बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) को चुन लिया है. वहां की रैली को शिवाजी पार्क से बड़ा बनाने की योजना है. इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी अमले से मदद व सहयोग लिया जाएगा. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्यभर में हजारों बसें व आधा दर्जन ट्रेनों से लोगों को लाने की योजना पर काम किया जा रहा है. इस दौरान मंच पर शिंदे गुट के 40 विधायक, 12 सांसदों के साथ साथ कई राज्यों के पार्टी प्रमुख भी दिख सकते हैं.

ऐसे शुरू हुआ था विवाद
शिंदे व ठाकरे में विवाद पिछले 20 जून को शुरू तब हुआ था जब शिवसेना के 15 और 10 निर्दलीय विधायकों ने तत्कालीन महाविकास अघाड़ी सरकार के खिलाफ बगावती रुख के अपनाकर पहले गुजरात के सूरत शहर में चले गए और कुछ दिन बाद फिर वहां से वे असम के गुवाहाटी पहुंच गए थे. 23 जून के एकनाथ शिंदे ने उनके साथ 35 विधायकों के समर्थन की बात कहते हुए बगावत के खुले संकेत दिए. सके बाद शिंदे ने कहा कि उनके साथ शिवसेना के 55 में से 39 विधायक आ गए हैं. इसके बाद देवेंद्र फडणवीस की मांग पर 28 जून के राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे से बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा तो ठाकरे इस पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट चले गए. जब कोर्ट के द्वारा बहुमत परीक्षण पर रोक से इनकार कर दिया तो 29 जून को उद्धव ठाकरे ने सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया था. 30 जून को एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बन गए.

Uddhav Vs Shinde Claim on Shiv Sena
अब तक का पूरा घटनाक्रम

एक नजर में महाराष्ट्र सियासी संकट के पूरे घटनाक्रम को ऐसे समझने की कोशिश करिए...

  • 20 जून 2022: शिवसेना के 15 विधायक 10 निर्दलीय विधायकों के साथ पहले सूरत और फिर गुवाहाटी गए
  • 23 जून 2022: एकनाथ शिंदे का दावा, मेरे पार 35 विधायकों का समर्थन, जारी किया लेटर
  • 25 जून 2022: डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों को सदस्यता रद्द करने की भेजी नोटिस, बागी विधायक गए सुप्रीम कोर्ट
  • 26 जून 2022: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, शिवसेना, केंद्र, महाराष्ट्र पुलिस और डिप्टी स्पीकर को नोटिस, बागी विधायकों को राहत
  • 28 जून 2022: उद्धव ठाकरे को राज्यपाल का आदेश, बहुमत साबित करने की देवेंद्र फडणवीस ने की थी मांग
  • 29 जून 2022: सुप्रीम कोर्ट का फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार, उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से दिया इस्तीफा
  • 30 जून 2022: एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, भाजपा के देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री बनाए गए
  • 3 जुलाई 2022: विधानसभा के नए स्पीकर ने शिंदे गुट को सदन में दी मान्यता
  • 4 जुलाई 2022: एकनाथ शिंदे ने विश्वास मत हासिल किया
  • 3 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 10 दिन के लिए सुनवाई टली तो शिंदे ने सरकार बना ली
  • 4 अगस्त 2022: SC ने कहा- जब तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित, तब तक चुनाव आयोग कोई फैसला न ले
  • 4 अगस्त 2022: सुनवाई के बाद मामले की सुनवाई तीन बार टली, 8, 12 और 22 अगस्त को कोर्ट का कोई फैसला नहीं
  • 23 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को किया ट्रांसफर, चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक
  • 27 सितंबर 2022: संविधान पीठ ने शिवसेना पर दावेदारी के मामले की सुनवाई के लिए चुनाव आयोग को निर्देश, कार्यवाही से रोक हटायी, अब आयोग ही लेगा फैसला

अब तक शिवसेना छोड़ने वाले बड़े नेता
1996 में पार्टी के गठन के शुरुआती दौर में बाल ठाकरे को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, लेकिन अंततः उन्होंने शिव सेना को सत्ता की सीढ़ियों पर पहुंचाकर ही दम लिया. 1995 में भाजपा-शिवसेना के गठबन्धन ने महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई. 1966 में शिवसेना के गठन के बाद इसको आगे बढ़ाने वाले कई नेता पार्टी छोड़कर बाहर चले गए. नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला तब शुरू हुआ जब मुख्यमंत्री की कुर्सी व पार्टी को लीड करने की जंग नेताओं के बीच शुरू हुयी. हालांकि इसके बाद पार्टी के कई कद्दावर नेताओं ने उनका साथ छोड़ा, लेकिन पार्टी नहीं टूटी. जो नेता गया वह दूसरे दल में शामिल हो गया या अपनी अलग से पार्टी बना ली. अबकी बार पार्टी में बड़ा उलटफेर होने के बाद असली नकली का खेल शुरू हो गया है. ऐसा तब हुआ है जब ठाकरे परिवार रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखने के बजाय खुद मुख्यमंत्री व मंत्री बनने की कोशिश कर बैठा. सत्ता की राजनीति में ठाकरे कच्चे खिलाड़ी साबित हुए और उनके हाथ से पार्टी के विधायक कब व कैसे निकलते गए उन्हें हवा तक नहीं लगी. एकनाथ शिंदे की महत्वाकांक्षा को भाजपा ने हवा दी और कुर्सी पर बैठाने में बड़ी भूमिका निभाते हुए एक बड़ा राजनीतिक दांव (Maharashtra Political Crisis) खेला. इससे भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साध लिए. एक तो उद्धव ठाकरे के हाथ से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली और दूसरा उनकी पार्टी में उनको बेगाना कर दिया.

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नारायण राणे (Narayan Rane)
शिवसेना की विकास यात्रा में शामिल कई बड़े नेताओं ने समय समय पार्टी छोड़ी. सबसे पहले 3 जुलाई 2005 को नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ी. पार्टी छोड़ते समय उनका कहना था कि पार्टी के मुखिया बालासाहेब ठाकरे द्वारा उन्हें दरकिनार किया जा रहा था और वह अपने बेटे उद्धव ठाकरे को आगे बढ़ाना चाहते थे. इसके बाद काफी नाटककीय घटनाक्रम में वह शिवसेना छोड़ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए.

छगन भुजबल (Chhagan Bhujbal)
एक जमाने में हार्डकोर शिवसैनिक कहा जाने वाले छगन भुजबल की गिनती ओबीसी समुदाय के बड़े नेता रुप में होती है. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1960 के दशक में शिवसेना से की थी. राजनीति में आने से पहले भुजबल सब्जी और फल विक्रेता के रुप में अपना व्यापार करते थे. मुंबई से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद शिवसेना के दर्शन और बालासाहेब ठाकरे के व्यक्तित्व व बातों से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला कर लिया. इसके बाद भुजबल एक कट्टर शिव सैनिक बन गए. बाद में मतभेदों के कारण उन्होंने 1991 में पार्टी छोड़ दी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए.

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राज ठाकरे (Raj Thackeray)
एक समय में शिवसेना फायर ब्रांड नेताओं में गिने जाने वाले बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने भी पार्टी की गतिविधियों व उपेक्षा किए जाने से नाराज होकर शिवसेना छोड़ दी थी. इनका आरोप था कि बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे द्वारा उनको दरकिनार किया जा रहा था. इसके बाद शिवसेना छोड़ते हुए 9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) का गठन किया.

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