नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक मेडिकल प्रोफेशनल को केवल इसलिए लापरवाह नहीं माना जा सकता क्योंकि उपचार सफल नहीं हुआ या सर्जरी के दौरान रोगी की मृत्यु हो गई.
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि लापरवाही का संकेत देने के लिए रिकॉर्ड के आधार पर तथ्य उपलब्ध होना चाहिए या फिर उचित चिकित्सा साक्ष्य प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
अदालत ने कहा कि 'रिस इप्सा लोक्विटुर' (केवल कुछ प्रकार की दुर्घटना का होना ही लापरवाही का संकेत देने के लिए पर्याप्त है) का सिद्धांत तब लागू किया जा सकता है जब कथित लापरवाही पूरी तरह स्पष्ट हो और केवल धारणा पर आधारित न हो.
इस मामले में किडनी में स्टोन का पता चलने पर अस्पताल में भर्ती हुई महिला की सर्जरी के बाद मौत हो गई, जिसके उपरांत उसके पति (दावेदार) ने चिकित्सा में लापरवाही का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) से संपर्क किया.
एनसीडीआरसी ने डॉक्टर और अस्पताल को चिकित्सकीय लापरवाही का दोषी ठहराया और मुआवजे के रूप में सत्रह लाख रुपये का मुआवजा ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया. अपील में पीठ ने कहा कि इस मामले में, एनसीडीआरसी के समक्ष दावेदारों द्वारा लगाए गए आरोपों के अलावा डॉक्टरों की ओर से लापरवाही का संकेत देने के लिए कोई अन्य चिकित्सा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है.
कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि हर मामले में जहां उपचार सफल नहीं होता है या सर्जरी के दौरान रोगी की मृत्यु हो जाती है, यह स्वत: यह नहीं माना जा सकता है कि पेशेवर चिकित्सक ने लापरवाही की थी. लापरवाही को इंगित करने के लिए रिकॉर्ड पर सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए या उपयुक्त चिकित्सा साक्ष्य प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
कथित लापरवाही इतनी स्पष्ट होनी चाहिए कि उस स्थिति में रेस इप्सा लोक्विटूर के सिद्धांत को लागू किया जा सकता है, केवल धारणा के आधार पर नहीं.
मौजूदा मामले में, एनसीडीआरसी के समक्ष दावेदारों द्वारा लगाए गए आरोपों के अलावा दोनों शिकायत और कार्यवाही में दायर हलफनामे में शिकायतकर्ता द्वारा डॉक्टरों की ओर से लापरवाही का संकेत देने के लिए कोई अन्य चिकित्सा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की गई जांच को दूसरी सर्जरी और मरीज की स्थिति के मामले में डॉक्टरों या अस्पताल की ओर से लापरवाही साबित करने के लिए चिकित्सा साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता है.