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Budget 2023 : वित्त मंत्री के सामने होगी भारत के राजकोषीय घाटे के अनुमान को कम रखने की चुनौती

सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिये कितनी उधारी की ज़रूरत होगी. कुल राजस्व का हिसाब-किताब लगाने में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है. राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है. पढ़ें इस बार राजकोषीय घाटे को लेकर वित्त मंत्री के सामने क्या है चुनौती वरीष्ठ संवाददाता कृष्णा की रिपोर्ट...

Budget 2023
प्रतिकात्मक तस्वीर
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Published : Jan 31, 2023, 1:44 PM IST

मुंबई : राजकोषीय घाटा एक ऐसा आर्थिक टर्म है जिसपर बजट के दिन सर्वाधिक अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों की नजर होती है. दूसरे शब्दों में राजकोषीय घाटा सरकार के खर्च और आय के अंतर को दिखाता है. जब सरकारी खर्च उसकी आय से अधिक होता है, तब सरकार घाटे में रहती है, यही उसका राजकोषीय घाटा होता है. ये देश की आर्थिक सेहत का हाल दिखाने वाला प्रमुख इंडिकेटर है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बुधवार को लोकसभा में केंद्रीय बजट पेश करेंगी.

केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संसद में केन्‍द्रीय बजट 2022-23 पेश करते हुए कहा था कि 2022-23 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा था. वित्त मंत्री ने इसे राजकोषीय मजबूती के उस मार्ग के अनुरूप है, जिसकी घोषणा 2021-22 में की गई थी. 2021-22 में कहा गया था कि 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को 4.5 प्रतिशत के नीचे लाया जाएगा. इसके अतिरिक्‍त, चालू वर्ष में संशोधित राजकोषीय घाटा जीडीपी का अनुमानत: 6.9 प्रतिशत था. जबकि बजट अनुमान में इसे 6.8 प्रतिशत अनुमानित किया गया था.

वित्त वर्ष 2020-21 के लिए केंद्र की वास्तविक उधारी रिकॉर्ड 18.18 लाख करोड़ थी जो देश के सकल घरेलू उत्पादन का 9.2% है. इस तरह के बड़े पैमाने पर उधार लेने की आवश्यकता से पता चलता है कि केंद्र की वित्त स्थिति कमजोर है और यह अपने व्यय, विकास कार्य और अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है. इसी तरह, एक उच्च राजकोषीय घाटा भी देश की आर्थिक स्थिति के बारे में विदेशी निवेशकों को एक गलत संकेत भेजता है. संप्रभु रेटिंग एजेंसियां उच्च राजकोषीय घाटे वाले देशों की क्रेडिट रेटिंग को अधिक टिकाऊ स्तर पर एक स्पष्ट रोडमैप के अभाव में कम करती हैं.

यही कारण है कि प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने केंद्र और राज्यों दोनों द्वारा उधार लेने में राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के लिए 2003 का राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम बनाया था. वित्‍त मंत्री ने कहा था कि 2022-23 में राजकोषीय घाटे के स्‍तर को निर्धारित करते समय वह मजबूत तथा टिकाऊ बनने के लिए सार्वजनिक निवेश के जरिए विकास को पोषित करने की आवश्‍यकता करने के प्रति सजग रही हैं. 2022-23 के लिए सरकार के राजकोषीय घाटे 16,61,196 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया था. 2021-22 के लिए संशोधित अनुमान 15,06,812 करोड़ रुपये के बजट अनुमान के मुकाबले 15,91,089 करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे का संकेत देते हैं.

साल 2022-23 का बजट पेश करते हुए वित्‍त मंत्री ने कहा था कि आम बजट में पूंजी व्‍यय के लिए परिव्‍यय को एक बार फिर 35.4 प्रतिशत की तेज वृद्धि करने के द्वारा वर्तमान वर्ष के 5.54 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपये किया जा रहा है. इसमें 2019-20 के व्‍यय की तुलना में 2.2 गुना वृद्धि हुई है. 2022-23 में यह परिव्‍यय जीडीपी का 2.9 प्रतिशत होगा. वित्‍त मंत्री ने बताया कि राज्‍यों को अनुदान सहायता के जरिए पूंजी परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए किये गये प्रावधान को मिलाकर पूंजी व्‍यय के साथ, केन्‍द्र सरकार के 'प्रभावी पूंजी व्‍यय' के 2022-23 में 10.68 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो जीडीपी का 4.1 प्रतिशत होगा.

वित्‍त मंत्री ने कहा था कि 2022-23 में कुल व्‍यय के 39.45 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जबकि उधारियों के अतिरिक्‍त कुल प्राप्तियों के 22.84 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है. उन्‍होंने यह भी कहा था कि 2021-22 के बजट आकलनों में अनुमानित 34.83 लाख करोड़ रुपये के कुल व्‍यय के मुकाबले संशोधित अनुमान 37.70 लाख करोड़ रुपये का है. बाजार उधारियां की बात करें तो 2022-23 के लिए सरकार की कुल बाजार उधारियों के 11,58,719 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया था. 2021-22 के लिए इसके संशोधित अनुमानों के 9,67,708 करोड़ रुपये के बजट अनुमानों के मुकाबले 8,75,771 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया था.

चालू वित्त में वर्ष के लिए, सीतारमण ने अनुमान लगाया कि केंद्र को अपने खर्च को पूरा करने के लिए 16.12 लाख करोड़ रुपये उधार लेने की आवश्यकता होगी, जिसे बजट अनुमान के अनुसार रिकॉर्ड 39.45 लाख करोड़ रुपये आंका गया है। हालांकि, एक संभावित परिदृश्य में, केंद्र को इस व्यय को पार करने की उम्मीद है जब वित्त मंत्री बुधवार को खर्च के अपने संशोधित अनुमान प्रस्तुत करते हैं.

राजकोषीय घाटा क्या है : राजकोषीय घाटा को समझें तो यह सरकार के खर्च और आय के अंतर को दिखाता है. जब सरकारी खर्च उसकी आय से अधिक होता है, तब सरकार घाटे में रहती है, यही उसका राजकोषीय घाटा होता है. ये देश की आर्थिक सेहत का हाल दिखाने वाला प्रमुख इंडिकेटर है. ये दिखाता है कि सरकार को अपने खर्चे पूरे करने के लिए आखिर कितना उधार चाहिए. आम तौर पर राजकोषीय घाटा बढ़ने की दो वजह होती हैं. पहली तो राजस्व घाटा, यानी सरकार का बजट में राजस्व कमाने का जो अनुमान था, वो उसका हासिल कम रह जाना. दूसरा सरकार का पूंजीगत खर्च या कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ना.

क्या होता है उच्च राजकोषीय घाटे का असर: उच्च राजकोषीय घाटा बाजाक में निजी कंपनियों और उद्योग के लिए धन को कम कर देता है. केंद्र द्वारा बाजार से उधार ली जाने वाली धनराशि सीधे ब्याज दर को प्रभावित करती है, क्योंकि केंद्र द्वारा बड़े पैमाने पर उधार लिया जाता है, जैसा कि हाल के वर्षों में देखा गया है, निजी क्षेत्र के उधारकर्ताओं के लिए धन की कमी हो सकती है. जिसमें कंपनियां और फर्म और खुदरा उधारकर्ता भी शामिल हैं. नतीजतन, खुदरा उधारकर्ताओं के लिए वास्तविक ब्याज बढ़ जाता है और छोटे और खुदरा खरीदारों को उधार देने के लिए बैंकों और अन्य उधार देने वाली संस्थाओं के पास उपलब्ध धनराशि भी प्रभावित होती है, जिससे उनके लिए होम लोन, ऑटो लोन, और अन्य व्यक्तिगत लोन सस्ती दरों पर जैसे पैसे उधार लेना मुश्किल हो जाता है.

पढ़ें: Economic survey 2023: लोकसभा में वित्त मंत्री ने पेश किया आर्थिक सर्वे, विकास दर 6 से 6.8% रहने का अनुमान

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मुंबई : राजकोषीय घाटा एक ऐसा आर्थिक टर्म है जिसपर बजट के दिन सर्वाधिक अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों की नजर होती है. दूसरे शब्दों में राजकोषीय घाटा सरकार के खर्च और आय के अंतर को दिखाता है. जब सरकारी खर्च उसकी आय से अधिक होता है, तब सरकार घाटे में रहती है, यही उसका राजकोषीय घाटा होता है. ये देश की आर्थिक सेहत का हाल दिखाने वाला प्रमुख इंडिकेटर है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बुधवार को लोकसभा में केंद्रीय बजट पेश करेंगी.

केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संसद में केन्‍द्रीय बजट 2022-23 पेश करते हुए कहा था कि 2022-23 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा था. वित्त मंत्री ने इसे राजकोषीय मजबूती के उस मार्ग के अनुरूप है, जिसकी घोषणा 2021-22 में की गई थी. 2021-22 में कहा गया था कि 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को 4.5 प्रतिशत के नीचे लाया जाएगा. इसके अतिरिक्‍त, चालू वर्ष में संशोधित राजकोषीय घाटा जीडीपी का अनुमानत: 6.9 प्रतिशत था. जबकि बजट अनुमान में इसे 6.8 प्रतिशत अनुमानित किया गया था.

वित्त वर्ष 2020-21 के लिए केंद्र की वास्तविक उधारी रिकॉर्ड 18.18 लाख करोड़ थी जो देश के सकल घरेलू उत्पादन का 9.2% है. इस तरह के बड़े पैमाने पर उधार लेने की आवश्यकता से पता चलता है कि केंद्र की वित्त स्थिति कमजोर है और यह अपने व्यय, विकास कार्य और अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है. इसी तरह, एक उच्च राजकोषीय घाटा भी देश की आर्थिक स्थिति के बारे में विदेशी निवेशकों को एक गलत संकेत भेजता है. संप्रभु रेटिंग एजेंसियां उच्च राजकोषीय घाटे वाले देशों की क्रेडिट रेटिंग को अधिक टिकाऊ स्तर पर एक स्पष्ट रोडमैप के अभाव में कम करती हैं.

यही कारण है कि प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने केंद्र और राज्यों दोनों द्वारा उधार लेने में राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के लिए 2003 का राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम बनाया था. वित्‍त मंत्री ने कहा था कि 2022-23 में राजकोषीय घाटे के स्‍तर को निर्धारित करते समय वह मजबूत तथा टिकाऊ बनने के लिए सार्वजनिक निवेश के जरिए विकास को पोषित करने की आवश्‍यकता करने के प्रति सजग रही हैं. 2022-23 के लिए सरकार के राजकोषीय घाटे 16,61,196 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया था. 2021-22 के लिए संशोधित अनुमान 15,06,812 करोड़ रुपये के बजट अनुमान के मुकाबले 15,91,089 करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे का संकेत देते हैं.

साल 2022-23 का बजट पेश करते हुए वित्‍त मंत्री ने कहा था कि आम बजट में पूंजी व्‍यय के लिए परिव्‍यय को एक बार फिर 35.4 प्रतिशत की तेज वृद्धि करने के द्वारा वर्तमान वर्ष के 5.54 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपये किया जा रहा है. इसमें 2019-20 के व्‍यय की तुलना में 2.2 गुना वृद्धि हुई है. 2022-23 में यह परिव्‍यय जीडीपी का 2.9 प्रतिशत होगा. वित्‍त मंत्री ने बताया कि राज्‍यों को अनुदान सहायता के जरिए पूंजी परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए किये गये प्रावधान को मिलाकर पूंजी व्‍यय के साथ, केन्‍द्र सरकार के 'प्रभावी पूंजी व्‍यय' के 2022-23 में 10.68 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो जीडीपी का 4.1 प्रतिशत होगा.

वित्‍त मंत्री ने कहा था कि 2022-23 में कुल व्‍यय के 39.45 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जबकि उधारियों के अतिरिक्‍त कुल प्राप्तियों के 22.84 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है. उन्‍होंने यह भी कहा था कि 2021-22 के बजट आकलनों में अनुमानित 34.83 लाख करोड़ रुपये के कुल व्‍यय के मुकाबले संशोधित अनुमान 37.70 लाख करोड़ रुपये का है. बाजार उधारियां की बात करें तो 2022-23 के लिए सरकार की कुल बाजार उधारियों के 11,58,719 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया था. 2021-22 के लिए इसके संशोधित अनुमानों के 9,67,708 करोड़ रुपये के बजट अनुमानों के मुकाबले 8,75,771 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया था.

चालू वित्त में वर्ष के लिए, सीतारमण ने अनुमान लगाया कि केंद्र को अपने खर्च को पूरा करने के लिए 16.12 लाख करोड़ रुपये उधार लेने की आवश्यकता होगी, जिसे बजट अनुमान के अनुसार रिकॉर्ड 39.45 लाख करोड़ रुपये आंका गया है। हालांकि, एक संभावित परिदृश्य में, केंद्र को इस व्यय को पार करने की उम्मीद है जब वित्त मंत्री बुधवार को खर्च के अपने संशोधित अनुमान प्रस्तुत करते हैं.

राजकोषीय घाटा क्या है : राजकोषीय घाटा को समझें तो यह सरकार के खर्च और आय के अंतर को दिखाता है. जब सरकारी खर्च उसकी आय से अधिक होता है, तब सरकार घाटे में रहती है, यही उसका राजकोषीय घाटा होता है. ये देश की आर्थिक सेहत का हाल दिखाने वाला प्रमुख इंडिकेटर है. ये दिखाता है कि सरकार को अपने खर्चे पूरे करने के लिए आखिर कितना उधार चाहिए. आम तौर पर राजकोषीय घाटा बढ़ने की दो वजह होती हैं. पहली तो राजस्व घाटा, यानी सरकार का बजट में राजस्व कमाने का जो अनुमान था, वो उसका हासिल कम रह जाना. दूसरा सरकार का पूंजीगत खर्च या कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ना.

क्या होता है उच्च राजकोषीय घाटे का असर: उच्च राजकोषीय घाटा बाजाक में निजी कंपनियों और उद्योग के लिए धन को कम कर देता है. केंद्र द्वारा बाजार से उधार ली जाने वाली धनराशि सीधे ब्याज दर को प्रभावित करती है, क्योंकि केंद्र द्वारा बड़े पैमाने पर उधार लिया जाता है, जैसा कि हाल के वर्षों में देखा गया है, निजी क्षेत्र के उधारकर्ताओं के लिए धन की कमी हो सकती है. जिसमें कंपनियां और फर्म और खुदरा उधारकर्ता भी शामिल हैं. नतीजतन, खुदरा उधारकर्ताओं के लिए वास्तविक ब्याज बढ़ जाता है और छोटे और खुदरा खरीदारों को उधार देने के लिए बैंकों और अन्य उधार देने वाली संस्थाओं के पास उपलब्ध धनराशि भी प्रभावित होती है, जिससे उनके लिए होम लोन, ऑटो लोन, और अन्य व्यक्तिगत लोन सस्ती दरों पर जैसे पैसे उधार लेना मुश्किल हो जाता है.

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