लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की ब्राह्मणों को खुश करने की नीति और अयोध्या व राम मंदिर दौरा उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में वापसी की रणनीति पर पानी फेर सकता है. सप्ताहांत में अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरूआत करने वाले बसपा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यक समुदाय में मतभेद पैदा कर दिया है.
अयोध्या में जब सतीश चंद्र मिश्रा मंच पर आए तो जय श्री राम के जयकारे मंच गूंज उठा, बसपा ने राम जन्मभूमि और हनुमान गढ़ी मंदिरों के दौरे के साथ अपने अभियान की शुरूआत की और कहा कि बसपा के सत्ता में आने पर मंदिर का निर्माण किया जाएगा. आपको बता दें कि यह पहली बार है जब बसपा के किसी नेता ने पार्टी के मंच पर अपने हिंदू झुकाव को दिखाया था. अंबेडकर नगर से बसपा नेता मोहम्मद क्वैस ने पूछा, बसपा ने हमें दिखाया है कि यह भाजपा से अलग नहीं है. अयोध्या में पार्टी का एजेंडा स्पष्ट था जब मंच से जय श्री रामके नारे लगे और सतीश चंद्र मिश्रा ने उन्हें रोका तक नहीं इसके अलावा, उन्होंने राम मंदिर को गति देने का वादा किया, क्या यह बसपा का 2022 का एजेंडा है?
उन्होंने कहा, हमें नहीं पता कि बहनजी (मायावती) को इस तरह हिंदू कार्ड खेलने के लिए किसने राजी किया है, लेकिन चुनाव में हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. हमारे कार्यकर्ता अभी भी मिले है. मुलायम-कांशी राम, हवा में उड़ गए जय श्री राम के नारे को याद करते हैं और अब राम के लिए यह अचानक आत्मीयता?
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बसपा के बागी विधायक असलम रैनी ने कहा, बसपा अपने विनाश की ओर बढ़ रही है. दशकों के दलितों को लुभाने के बाद, पार्टी अचानक भाजपा की सहायक बन गई है. बसपा पहले ही अपने प्रमुख ओबीसी नेताओं को खो चुकी है. लालजी वर्मा और राम अचल राजभर जैसे वरिष्ठ नेताओं के निष्कासन ने ओबीसी के बीच पार्टी के आधार को कम कर दिया है.
आपको बता दें कि अभी तक बसपा के पास चुनावों में ओबीसी का कोई चेहरा नहीं है. पार्टी के पदाधिकारी ने कहा, जैसा कि, पार्टी में सत्ता पदानुक्रम में ओबीसी और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नगण्य है. पार्टी का नेतृत्व लोकसभा और राज्यसभा में ब्राह्मणों द्वारा किया जाता है. भाईचारा समिति को पुनर्जीवित करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा जब तक कि हमारे पास ऐसे नेता नहीं हैं जो हमारे ऊपर प्रभाव रखते हैं.
(आईएएनएस)