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नई शिक्षा नीति से देश को ज्ञान आधारित महाशक्ति बनाएंगे : निशंक

इस नई शिक्षा नीति में किन बातों पर जोर दिया गया है और इस नई शिक्षा नीति से कैसे हमारे देश के छात्र लाभान्वित होंगे, इस पर ईटीवी संवाददाता अनामिका रत्ना ने खास बातचीत की केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से. प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश...

केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक
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Published : Aug 12, 2020, 9:09 PM IST

Updated : Aug 13, 2020, 7:17 AM IST

नई दिल्ली : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार एक लंबे अर्से बाद नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 लाई गई है. इससे पहले 1986 में एनईपी ड्राफ्ट की गई थी और 1992 में इसमें जरूरी बदलाव किए गए. इस तरह लगभग 34 साल बाद एक बाद फिर अहम बदलावों के साथ सरकार नई शिक्षा नीति लेकर आई है. एनईपी-2020 में तमाम विषय ऐसे हैं, जिनके विषय में लोगों की जिज्ञासा अब भी बनी हुई है. आइए केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से जानते हैं, ऐसे ही प्रश्नों के जवाब...

प्रश्न- निशंक जी जब यह नई शिक्षा नीति तैयार की जा रही थी, तब मुख्य चुनौतियां क्या आईं?

उत्तर - इतने व्यापक रूप में जब कोई नीति आती है, तो पूरे देश के लिए आती है. इसे तैयार करने में हमने बहुत व्यापक तरीके से राज्यों के साथ चर्चा की है. लाखों छात्रों के अभिभावकों के साथ ही 1000 से भी अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से बात की है. 45000 से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं, उनसे बात की है. हमने शिक्षकों, शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों से बात की है. यानी बहुत व्यापक परामर्श के बाद हम यह नई शिक्षा नीति लाए हैं. मुझे लगता है कि यह पूरी दुनिया का सबसे बड़ा विमर्श होगा और ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि मंथन के बाद जो अमृत निकलता है, यह नई शिक्षा नीति वही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जिसका पूरे देश ने बहुत अच्छे तरीके से स्वागत किया है.

रमेश पोखरियाल 'निशंक' के साथ विशेष साक्षात्कार

प्रश्न- क्या सरकार इस नई शिक्षा प्रणाली को पूरे भारत में लागू करने के लिए वित्तीय रूप से तैयार है?

उत्तर - स्वभाविक है, क्योंकि शिक्षा का विषय राज्यों का भी विषय है और राज्यों के साथ ही नहीं हमने तो ढाई लाख ग्राम समितियों के साथ भी परामर्श लिए हैं. हमारे पास सवा दो लाख सुझाव आए थे, उससे भी ज्यादा सुझाव आए थे और सचिवालय बना कर 1820 विशेषज्ञों की टीम को लगाकर व्यापक विश्लेषण के बाद यह शिक्षा नीति हम लेकर आए हैं. इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि किसी से परामर्श नहीं हुआ. यह दुनिया में शायद पहली ऐसी नीति है, जो सबसे व्यापक परामर्श के बाद आई है.

प्रश्न- उच्च शिक्षा आयोग की जरूरत क्यों पड़ी? यह एक हस्तक्षेप नहीं है?

उत्तर - मुझे लगता है कि हस्तक्षेप नहीं है. व्यापक सुविधाएं देने की बात है. अभी तक यूजीसी था, आईसीटी था, एनसीटीई था, अभी तीन-चार चीजें अलग-अलग करके अपनी स्वायत्तता को लेकर परेशानी महसूस करते थे. हमें लगा कि एक ही छत के नीचे यह तमाम चीजें आनी चाहिए. इसलिए यह आयोग बनाएंगे और 34 काउंसिल 12 पाठ्यक्रम तय करेगा. एक जो मूल्यांकन और मान्यता देगा, एक जो प्रशासनिक तौर पर उसे सुनिश्चित करेंगे और एक काउंसिल जो उसका वित्तीय प्रबंधन देखेगा. चार काउंसिल बनाए जाएंगे, लेकिन उसके अधीन बनाए जाएंगे, ताकि लोगों को भटकना नहीं पड़े. उच्चतम और उत्कृष्ट शिक्षा हम कैसे दे सकते हैं. यह पूरा ध्यान करके यह निर्णय लिया गया है.

प्रश्न- आपने वोकेशनल ट्रेनिंग की अनिवार्यता की है, जो एक अच्छी बात है, लेकिन देश में इन विषयों के इतने शिक्षक नहीं हैं. ऐसे में क्या योजना है मंत्रालय की?

उत्तर - देखिए हमने वोकेशनल स्कीम शुरू की है, लेकिन वह पूरी इच्छा के साथ शुरू की है. हमारा बच्चा, जो अभी तक क्या करता था कि जो वह पढ़ रहा है, उसके जीवन में नहीं उतर पाता था. एक तरफ उसकी पढ़ाई अलग थी. दूसरी तरफ व्यावहारिकता अलग थी या भविष्य में उसको अपनी पढ़ाई का पूरा लाभ मिल पाएगा या नहीं, भविष्य में वह कितना अपनी पढ़ाई का फायदा ले पाएगा या नहीं. इसलिए हमने शिक्षा के साथ शैक्षणिकता और व्यवसाय के बीच जो खाई थी उसे पाट दिया है.

प्रश्न- आपने विदेशी विश्विद्यालयों को भी निमंत्रित किया है. इन पर सरकार का नियंत्रण कैसे रहेगा? इनमें बाकी विश्विद्यालयों से क्या अलग होगा?

उत्तर - आपको तो मालूम है कि लगभग साढे़ सात से आठ लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं हिंदुस्तान के. यदि आप देखेंगे तो हिंदुस्तान का पैसा भी और प्रतिभा भी लगभग एक डेढ़ लाख करोड़ प्रतिवर्ष बाहर चला जाता है और जो प्रतिभा जाती है वह फिर लौट कर नहीं आती है. प्रतिभा भी चली गई उस देश के विकास में अपनी प्रतिभा को भी डोनेट कर दिया. उन देशों को विकसित करता है और हमारा पैसा भी उसके साथ चला जाता है. अब ऐसा नहीं हो इसकी हम कोशिश कर रहे हैं. चौतरफा हमने स्टे इन इंडिया शुरू किया है हमने गुणवत्ता बढ़ाई हैं. लगातार क्षमता बढ़ाई है और अब जो बाहर विद्यार्थी जाते थे, उन्हें भारत की धरती पर ही वह पढ़ाई मिलेगी. जो दुनिया के विशेषज्ञ हैं, उन्हें हम भारत में आने के लिए निमंत्रण देते हैं, तो वह हमारे अनुबंध के साथ होगा.

प्रश्न- विश्वविद्यालय में ग्रेडिंग की बात कही गई है, क्या इससे असमानताएं नहीं बढ़ेंगी इन विश्वविद्यालय के बीच?

उत्तर - नहीं, असमानता क्यों बढ़ेगी यदि आपका मूल्यांकन हो रहा है. आप सभी प्रकार की जो आपके मानक हैं, आप उनको पूरा कर रहे हैं, तो आप और आगे बढ़ेंगे. आप मूल्यांकन के आधार पर ही तो प्रगति का आकलन करेंगे. अभी हमारे एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं देश में. 45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं. इन 45000 कॉलेजों में से सिर्फ 8000 कॉलेजों को स्वायत्तता है. अब हम चाहते हैं कि वह अपने मानकों को पूरा करते रहें, ताकि हम अधिक से अधिक कॉलेजों को स्वायत्तता दे सकें और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और उनके साथ जो संबद्धीकरण है, 11 विश्वविद्यालयों के सात-आठ सौ कॉलेज जुड़े हैं, जिनके साथ इंसाफ नहीं हो सकता था. इसलिए यह नीति यह भी कहती है कि चरणबद्ध तरीके से एक विश्वविद्यालय के अंतर्गत 300 से अधिक विद्यालयों को मान्यता नहीं दे सकेंगे. इसीलिए जो संबंध और समृद्ध कॉलेज हैं या विश्वविद्यालय हैं, उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें आगे बढ़ाएंगे और इसमें जो मूल्यांकन है, वही मूल्यांकन उनके समृद्धि का रास्ता तय करेगा.

प्रश्न- क्या इस नई शिक्षा नीति से शिक्षा के खर्च में छात्रों को ज्यादा वहन करना पड़ेगा, क्योंकि विश्विद्यालय खुद से मनमानी फीस वसूल सकेंगे?

उत्तर - ऐसा तो नहीं है. क्यों लोगों को यह बात जेहन में आएगी? हां, हमने कुछ नए फैसले जरूर लिए हैं. आमूलचूल परिवर्तन किया है. टेन प्लस टू को बिल्कुल बदलकर रख दिया है. 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 कर दिया है हमने. उच्च शिक्षा में भी क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं हमने. मुझे भरोसा है कि नई शिक्षा नीति से देश को ज्ञान आधारित महाशक्ति के रूप में विकसित कर सकेंगे और उसका रास्ता बहुत तेजी से बन रहा है.

नई दिल्ली : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार एक लंबे अर्से बाद नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 लाई गई है. इससे पहले 1986 में एनईपी ड्राफ्ट की गई थी और 1992 में इसमें जरूरी बदलाव किए गए. इस तरह लगभग 34 साल बाद एक बाद फिर अहम बदलावों के साथ सरकार नई शिक्षा नीति लेकर आई है. एनईपी-2020 में तमाम विषय ऐसे हैं, जिनके विषय में लोगों की जिज्ञासा अब भी बनी हुई है. आइए केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से जानते हैं, ऐसे ही प्रश्नों के जवाब...

प्रश्न- निशंक जी जब यह नई शिक्षा नीति तैयार की जा रही थी, तब मुख्य चुनौतियां क्या आईं?

उत्तर - इतने व्यापक रूप में जब कोई नीति आती है, तो पूरे देश के लिए आती है. इसे तैयार करने में हमने बहुत व्यापक तरीके से राज्यों के साथ चर्चा की है. लाखों छात्रों के अभिभावकों के साथ ही 1000 से भी अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से बात की है. 45000 से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं, उनसे बात की है. हमने शिक्षकों, शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों से बात की है. यानी बहुत व्यापक परामर्श के बाद हम यह नई शिक्षा नीति लाए हैं. मुझे लगता है कि यह पूरी दुनिया का सबसे बड़ा विमर्श होगा और ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि मंथन के बाद जो अमृत निकलता है, यह नई शिक्षा नीति वही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जिसका पूरे देश ने बहुत अच्छे तरीके से स्वागत किया है.

रमेश पोखरियाल 'निशंक' के साथ विशेष साक्षात्कार

प्रश्न- क्या सरकार इस नई शिक्षा प्रणाली को पूरे भारत में लागू करने के लिए वित्तीय रूप से तैयार है?

उत्तर - स्वभाविक है, क्योंकि शिक्षा का विषय राज्यों का भी विषय है और राज्यों के साथ ही नहीं हमने तो ढाई लाख ग्राम समितियों के साथ भी परामर्श लिए हैं. हमारे पास सवा दो लाख सुझाव आए थे, उससे भी ज्यादा सुझाव आए थे और सचिवालय बना कर 1820 विशेषज्ञों की टीम को लगाकर व्यापक विश्लेषण के बाद यह शिक्षा नीति हम लेकर आए हैं. इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि किसी से परामर्श नहीं हुआ. यह दुनिया में शायद पहली ऐसी नीति है, जो सबसे व्यापक परामर्श के बाद आई है.

प्रश्न- उच्च शिक्षा आयोग की जरूरत क्यों पड़ी? यह एक हस्तक्षेप नहीं है?

उत्तर - मुझे लगता है कि हस्तक्षेप नहीं है. व्यापक सुविधाएं देने की बात है. अभी तक यूजीसी था, आईसीटी था, एनसीटीई था, अभी तीन-चार चीजें अलग-अलग करके अपनी स्वायत्तता को लेकर परेशानी महसूस करते थे. हमें लगा कि एक ही छत के नीचे यह तमाम चीजें आनी चाहिए. इसलिए यह आयोग बनाएंगे और 34 काउंसिल 12 पाठ्यक्रम तय करेगा. एक जो मूल्यांकन और मान्यता देगा, एक जो प्रशासनिक तौर पर उसे सुनिश्चित करेंगे और एक काउंसिल जो उसका वित्तीय प्रबंधन देखेगा. चार काउंसिल बनाए जाएंगे, लेकिन उसके अधीन बनाए जाएंगे, ताकि लोगों को भटकना नहीं पड़े. उच्चतम और उत्कृष्ट शिक्षा हम कैसे दे सकते हैं. यह पूरा ध्यान करके यह निर्णय लिया गया है.

प्रश्न- आपने वोकेशनल ट्रेनिंग की अनिवार्यता की है, जो एक अच्छी बात है, लेकिन देश में इन विषयों के इतने शिक्षक नहीं हैं. ऐसे में क्या योजना है मंत्रालय की?

उत्तर - देखिए हमने वोकेशनल स्कीम शुरू की है, लेकिन वह पूरी इच्छा के साथ शुरू की है. हमारा बच्चा, जो अभी तक क्या करता था कि जो वह पढ़ रहा है, उसके जीवन में नहीं उतर पाता था. एक तरफ उसकी पढ़ाई अलग थी. दूसरी तरफ व्यावहारिकता अलग थी या भविष्य में उसको अपनी पढ़ाई का पूरा लाभ मिल पाएगा या नहीं, भविष्य में वह कितना अपनी पढ़ाई का फायदा ले पाएगा या नहीं. इसलिए हमने शिक्षा के साथ शैक्षणिकता और व्यवसाय के बीच जो खाई थी उसे पाट दिया है.

प्रश्न- आपने विदेशी विश्विद्यालयों को भी निमंत्रित किया है. इन पर सरकार का नियंत्रण कैसे रहेगा? इनमें बाकी विश्विद्यालयों से क्या अलग होगा?

उत्तर - आपको तो मालूम है कि लगभग साढे़ सात से आठ लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं हिंदुस्तान के. यदि आप देखेंगे तो हिंदुस्तान का पैसा भी और प्रतिभा भी लगभग एक डेढ़ लाख करोड़ प्रतिवर्ष बाहर चला जाता है और जो प्रतिभा जाती है वह फिर लौट कर नहीं आती है. प्रतिभा भी चली गई उस देश के विकास में अपनी प्रतिभा को भी डोनेट कर दिया. उन देशों को विकसित करता है और हमारा पैसा भी उसके साथ चला जाता है. अब ऐसा नहीं हो इसकी हम कोशिश कर रहे हैं. चौतरफा हमने स्टे इन इंडिया शुरू किया है हमने गुणवत्ता बढ़ाई हैं. लगातार क्षमता बढ़ाई है और अब जो बाहर विद्यार्थी जाते थे, उन्हें भारत की धरती पर ही वह पढ़ाई मिलेगी. जो दुनिया के विशेषज्ञ हैं, उन्हें हम भारत में आने के लिए निमंत्रण देते हैं, तो वह हमारे अनुबंध के साथ होगा.

प्रश्न- विश्वविद्यालय में ग्रेडिंग की बात कही गई है, क्या इससे असमानताएं नहीं बढ़ेंगी इन विश्वविद्यालय के बीच?

उत्तर - नहीं, असमानता क्यों बढ़ेगी यदि आपका मूल्यांकन हो रहा है. आप सभी प्रकार की जो आपके मानक हैं, आप उनको पूरा कर रहे हैं, तो आप और आगे बढ़ेंगे. आप मूल्यांकन के आधार पर ही तो प्रगति का आकलन करेंगे. अभी हमारे एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं देश में. 45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं. इन 45000 कॉलेजों में से सिर्फ 8000 कॉलेजों को स्वायत्तता है. अब हम चाहते हैं कि वह अपने मानकों को पूरा करते रहें, ताकि हम अधिक से अधिक कॉलेजों को स्वायत्तता दे सकें और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और उनके साथ जो संबद्धीकरण है, 11 विश्वविद्यालयों के सात-आठ सौ कॉलेज जुड़े हैं, जिनके साथ इंसाफ नहीं हो सकता था. इसलिए यह नीति यह भी कहती है कि चरणबद्ध तरीके से एक विश्वविद्यालय के अंतर्गत 300 से अधिक विद्यालयों को मान्यता नहीं दे सकेंगे. इसीलिए जो संबंध और समृद्ध कॉलेज हैं या विश्वविद्यालय हैं, उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें आगे बढ़ाएंगे और इसमें जो मूल्यांकन है, वही मूल्यांकन उनके समृद्धि का रास्ता तय करेगा.

प्रश्न- क्या इस नई शिक्षा नीति से शिक्षा के खर्च में छात्रों को ज्यादा वहन करना पड़ेगा, क्योंकि विश्विद्यालय खुद से मनमानी फीस वसूल सकेंगे?

उत्तर - ऐसा तो नहीं है. क्यों लोगों को यह बात जेहन में आएगी? हां, हमने कुछ नए फैसले जरूर लिए हैं. आमूलचूल परिवर्तन किया है. टेन प्लस टू को बिल्कुल बदलकर रख दिया है. 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 कर दिया है हमने. उच्च शिक्षा में भी क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं हमने. मुझे भरोसा है कि नई शिक्षा नीति से देश को ज्ञान आधारित महाशक्ति के रूप में विकसित कर सकेंगे और उसका रास्ता बहुत तेजी से बन रहा है.

Last Updated : Aug 13, 2020, 7:17 AM IST
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