नई दिल्ली : सैन्य और रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हाल ही में भारत-चीन सीमा तनाव चीन ने जान बूझकर पैदा किया है. दरअसल पूरा विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा है और दूसरी तरफ अमेरिका में घरेलू मुद्दों ले हालात बदल रहे हैं, ऐसे में मौके का फायदा उठाकर चीन सीमा पर तनाव पैदा कर हालात अपने पक्ष में करना चाहता है.
चीन की यह हरकत छह दशक पहले उसकी रणनीति की याद दिलाता है, जब उसने 1962 की सर्दियों के दौरान क्यूबा मिसाइल संकट का लाभ उठाकर भारत पर हमला किया था. जिसने दो महाशक्तियों को परमाणु युद्ध की कगार पर ला खड़ा किया था.
क्यूबा संकट, जो 1962 में कुछ समय के लिए उभरा था, 16 अक्टूबर को दोनों महाशक्तियों के बीच पूर्ण गतिरोध में बदल गया. चार दिन बाद 20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने भारत पर तब हमला किया, जब महाशक्ति अमेरिका और तत्कालीन यूएसएसआर (सोवियत संघ) - क्यूबा में सोवियत मिसाइलों की तैनाती पर एक अभूतपूर्व संकट में थे और भारत-चीन युद्ध में हस्तक्षेप करने की स्थिति में नहीं थे.
अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने 22 अक्टूबर, 1962 को क्यूबा की नौसैनिक नाकेबंदी का आदेश दिया, जिसे अंततः दो महाशक्तियों के बीच गहन बातचीत के बाद 21 नवंबर, 1962 को हटा लिया गया था.
चीन ने भारत के खिलाफ अपने युद्ध की शुरुआत 20 अक्टूबर, 1962 को की और अपने सैन्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के बाद नवंबर, 1962 में एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी थी.
चीनी नेता झोउ एनलाई ने 19 नवम्बर, 1962 को एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की, जो 21 नवंबर, 1962 से लागू तब लागू हुआ, जब अमेरिका ने क्यूबा के नौसैनिक नाकेबंदी को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया.
यह बहुत ही सोच समझकर उठाया गया कदम : विष्णु प्रकाश
पूर्व राजनयिक विष्णु प्रकाश ने कहा कि यह टाइमिंग बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह घुसपैठ और गतिरोध और जो जानमाल की हानि हुई है, वो आकस्मिक नहीं हो सकती और न ही यह स्थानीय स्तर पर घटित कोई छोटी-मोटी घटना है.
विष्णु प्रकाश ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में बताया कि विश्व के हालात और स्थानीय हालातों को भांपते हुए यह बहुत ही सोच समझकर उठाया गया कदम है. बिना उच्च आधिकारिक अनुमति के यह संभव नहीं है.
दक्षिण कोरिया में भारत के राजदूत और कनाडा में उच्चायुक्त रहे विष्णु प्रकाश ने कहा कि इस वर्ष की शुरुआत में कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद से चीन के लगभग अपने सभी पड़ोसी देशों से संबंध बिगड़े हैं.
चीन ने भारत पर चोट करने का यही समय सही समझा : दीपेंद्र सिंह हुड्डा
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि हर देश अपनी योजनाओं को लागू करने के लिए सही समय का इंतजार करता है. चीन ने भी वही किया है. उसने कोविड-19 से जूझते देश के संकट पर चोट करने का यह सही समय समझा.
डीएस हुड्डा ने ईटीवी भारत को बताया कि चीन ने देखा कि फिलहाल भारत कोरोना और आर्थिक मुद्दों से जूझ रहा है तो उसने सोचा कि भारत पर चोट करने का यही सही समय है.
रातों-रात यह सब नहीं हुआ, इसके पीछे लंबी तैयारी है : डॉ. राजेश्वरी
भारत के अग्रणी थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) में न्यूक्लियर एंड स्पेस पॉलिसी इनिशिएटिव की प्रमुख और एक प्रतिष्ठित सहयोगी डॉ. राजेश्वरी राजगोपालन कहती हैं कि चीन पिछले 5-6 वर्षों से अपनी सैन्य और सामरिक क्षमताओं को मजबूत कर रहा है. साथ ही वह अपने पड़ोसियों के साथ यथास्थिति को बदलने का अवसर देख रहा है.
राजगोपालन ने ईटीवी भारत को बताया कि रातों-रात यह सब नहीं हुआ है. इसके पीछे लंबी तैयारी है. उन्होंने कहा कि चीन की सेना और वायु सेना अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में संयुक्त अभ्यास आयोजित करके अपने कौशल को मांज रही है.
डॉ. राजेश्वरी ने कहा, 'हम पिछले 5-7 वर्षों में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और चीन-भारत सीमा क्षेत्रों में पीएलए अभ्यास देख रहे हैं. हमने पाया है कि उन्होंने अपनी संयुक्त क्षमताओं को बढ़ाते हुए पीएलए और पीएलए वायु सेना दोनों को अपनी परिचालन क्षमताओं में किसी भी अंतराल में विशेष रूप से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में काम करने के लायक बनाया है.'
उन्होंने कहा कि चीन इस साल जनवरी से अपने सभी पड़ोसियों की मुसीबतें बढ़ा रहा है और उसने भारत को भी नहीं बख्शा है.
डॉ. राजेश्वरी ने कहा कि साफ तौर पर चीन काफी समय से इसकी योजना बना रहा है और वह आज के माहौल को एक मौके के रूप में देख रहा है, जब दुनिया कोरोना वायरस से लड़ने में लगी हुई है. यह समस्या पिछले महीने की शुरुआत में शुरू हुई, जब पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच विवाद के वीडियो सामने आए.
दोनों ही देशों ने भारी हथियार और सेना मोर्चे पर भेज रखी है. लेकिन स्थिति बिगड़े नहीं, इसके लिए दोनों देश के राजनयिक और साथ ही साथ उच्च मिलिट्री अधिकारियों ने एक दूसरे से बातचीत जारी रखी है.
एक प्रतीकात्मक कदम के रूप में दोनों देशों ने गत छह जून को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर अपने शीर्ष कमांडरों के बीच वार्ता के बाद कुछ भिड़ंत वाले क्षेत्रों में अपने सैनिकों को लगभग 2.5 किलोमीटर पीछे खींच लिया था, जिसके बाद स्थानीय सैन्य कमांडर स्तर पर वार्ता हुई.
भारत-चीन के बीच वार्ता होने के बावजूद सोमवार रात दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प से बातचीत के प्रयासों को धक्का लगा है. भारतीय सेना के एक कर्नल सहित जहां 20 जवान मारे गए हैं वहीं चीन की तरफ से सरकारी तौर पर किसी नुकसान की पुष्टि नहीं की गई है.
भारत के विदेश मंत्रालय ने छह जून को वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच हुई सहमति का उल्लंघन और चीन पर गलवान घाटी क्षेत्र में यथास्थिति बदलने का आरोप लगाया.
विष्णु प्रकाश ने चीनी रणनीति के बारे में एक सवाल के जवाब में कहा कि दो कदम आगे और एक कदम पीछे ले जाना चीन की जानी-मानी रणनीति है.
जनरल बिपिन रावत ने, जो चीन के साथ 2017 के डोकलाम गतिरोध के दौरान सेना प्रमुख थे, भी भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए चीन की सलामी स्लाइसिंग की नीति को भांप लिया था.
विष्णु प्रकाश ने कहा कि चीन रेंग रेंगकर अपना फैलाव करने में पुराना माहिर है. उनका कहना है कि चीन ने निश्चित रूप से एक खतरनाक कूटनीति तैयार की है, जो बहुत ही आक्रमक और दबंगई वाला रहा है.
उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि आप उनके तरीके को देखिए कि किस तरह उन्होंने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के अन्य देशों के साथ व्यवहार किया है वैसा ही व्यवहार ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों के साथ भी किया है.
रणनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत एकमात्र पड़ोसी देश नहीं है, जिसने हाल के दिनों में चीनी विस्तारवादी नीतियों का नुकसान उठाया है.
ओआरएफ की डॉ. राजेश्वरी राजगोपालन ने कहा कि चीनी मानते हैं कि वे काफी मजबूत हो चुके हैं और उनके मुकाबले अमेरिका काफी कमजोर है. यह शी जिनपिंग का भी मानना है, इसलिए चीनी अति आत्मविश्वास और अहंकार से भरे हैं.
हालांकि वह चेतावनी देती हैं कि चीनी नीतियों के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया होगी क्योंकि इसने वर्ष की शुरुआत से ही ताइवान, वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया सहित कई अन्य देशों को निशाना बनाया है. उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि हर कोई चीन की दादागीरी के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है.'