उदयपुर. ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए वन विभाग के सहयोग से ग्रीन पीपल सोसायटी, साइक्लोमिनिया तथा बेला बसेरा रिसोर्ट के संयुक्त तत्वावधान में साइकिल पर प्रकृति के त्रिदिवसीय रोमांच 'पेडल टू जंगल' के छठे संस्करण का समापन रविवार को देवगढ़ में हुआ. कार्यक्रम संयोजक रिटायर्ड सीसीएफ राहुल भटनागर ने बताया कि पीटीजे-6 के प्रतिभागियों को जंगली पहाड़ी रास्तों में साइकिल चलाने के साथ-साथ अरावली की हसीन वादियों के साथ मेवाड़-मारवाड़ के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों से रूबरू करवाया गया.
स्मृति चिह्न व प्रमाण पत्र वितरण
समापन समारोह के तहत सभी प्रतिभागी सुबह साइकिलिंग करते हुए देवगढ़ पहुंचे जहां मुख्य अतिथि मुख्य वन संरक्षक आरके सिंह. विशिष्ठ अतिथि राजसमन्द डीएफओ डॉ.एएन गुप्ता एवं रावत वीरभद्र सिंह ने सफल आयोजन की बधाई देते हुए सभी प्रतिभागियों को मोमेेंटो व सर्टिफिकेट वितरित किए. इस अवसर पर वन विभाग के सहयोग व सराहनीय कार्य के लिए वनपाल राजवीर सिंह, सहायक वनपाल तुलसीराम मीणा व चालक भैरूलाल बावरी को भी सम्मानित किया. प्रतिभागियों ने भी अपने विचार रखे.
10 वर्ष से लेकर 70 वर्ष के संभागी
कार्यक्रम संयोजक भटनागर ने बताया कि आयोजन की विशेष बात यह रही कि इसमें 10 वर्षीय बालिका से लेकर 70 वर्षीय प्रतिभागी शामिल रहे. उन्होंने बताया कि इस यात्रा में पांच राज्यों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और मेवाड़ मारवाड़ की वन संस्कृति से रूबरू हुए.
गोरमघाट से शुरू सफर देवगढ़ में थम
भटनागर ने बताया कि इस तीन दिवसीय सफर का शुभारंभ शुक्रवार को कामली घाट से विधायक सुदर्शन सिंह रावत के मुख्य आतिथ्य में हुआ. पहले दिन गोरमघाट भ्रमण कर ऐतिहासिक रेलवे लाइन ब्रिज को पार करते हुए पाली स्थित रेनिया तालाब पर कैम्प किया. दूसरे दिन शनिवार को प्रतिभागी रवाना होकर हलावट राजकीय विद्यालय पहुंचे जहां विद्यार्थियों से पर्यावरण विषय पर बात की व प्रतिभागियों ने अपनी ओर से कोस्ट ऑफ एक्टिविटी के तहत् 120 जोड़ी जूते बच्चों को वितरित किए.
यहां से प्रतिभागियों ने साइकिल का सफर करते हुए ऐतिहासिक धार्मिक स्थान माइलीमाता, जाम्बूमाता होते हुए महाराणा प्रताप से जुड़े स्थान दिवेर पहुंच कैम्प किया. मार्ग में प्रतिभागियों को इस क्षेत्र के वन्यजीवों व अरावली की वनस्पति के बारें में जानकारी दी गई. दिवेर में प्रताप स्मारक मेराथन ऑफ मेवाड़ पर इतिहासविद् नारायण उपाध्याय ने यहां के ऐतिहासिक महत्व से अवगत कराया. इस सफर का समापन देवगढ़ में हुआ.