उदयपुर. जिले में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां माता रानी अग्नि स्नान करती है. यह मंदिर जयपुर से महज 60 किलोमीटर की दूरी पर कुराबड रोड पर ईडाणामाता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. बता दें कि ये मंदिर देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. मेवाड़ के शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ ईडाणामाता का मंदिर भी है.
बता दें कि ये देश का एकमात्र मन्दिर है, जहां माता रानी अग्नि स्नान करती हैं. सबकी मनोकामना पूरी करने वाली ईडाणा माता को मेवल महाराणी भी कहते हैं. बताया जाता है कि ईडाणा माता एक बरगद के पेड़ के नीचे प्रकट हुई थी. कालांतर में इस क्षेत्र से गुजर रहे एक संत को स्वंय माता रानी ने एक कन्या के रूप में दर्शन देते हुए यही रहने का निवेदन किया. संत ने भक्ति-आराधना आरंभ की तो कुछ ही दिनों में यहां चमत्कार होने लग गए.
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कहा जाता है कि माता के चमत्कार के कारण अन्धों को दिखाई देने लगा, लकवा वाले ठीक होने लगे, नि:सन्तानों को औलादों का सुख प्राप्त होने लगा. सबकी मनोकामनाएं पूरी होने लगी. ऐसे में धीरे-धीरे प्रचार-प्रसार होने से आज राजस्थान के साथ ही यहां गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं आने लगे. बता दें कि अग्नि स्नान करने वाली मेवल महारानी का अग्नि स्नान भी बड़ा रोचक होता है. यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि माताजी के ऊपर भार होते ही माताजी अग्नि स्नान कर लेती है.
जानकारी के अनुसार माताजी को चुनरी और अन्य कपड़े आदि का चढ़ावा चढ़ाया जाता है. माता रानी के ऊपर इनका भार जैसे ही होता है, वैसे ही वो अग्नि का स्नान कर लेती है. चढ़ावे के पहने कपडे़ को जला देती है. इस दौरान नजदीक के बरगद के पेड़ को भी चपेट में ले लेती है. लेकिन माता रानी की मूर्ति पर कोई भी असर नहीं होता. अग्नि स्नान के वक्त माताजी की मूर्ति सही सलामत रहती है. दूसरी तरफ माताजी के समीप अखण्ड ज्योत भी जलती रहती है. उसे भी कोई असर नहीं होता है. पहले चिती दर्शन हर रविवार को होते थे. लेकिन, इनदिनों किसी-किसी को ही दर्शन नसीब हो पाते हैं. चिती की झलक मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
ऐसी मान्यता है कि माताजी कि प्रतिमा खुले में विराजित है. उनके उपर कोई भी छाया का नामोंनिशान तक नहीं है. जबकी वहां पर धर्मशालाएं, आवासीय परिसर और ट्रस्ट भी हैं. माताजी के दर्शन हेतु दूर- दराज से श्रद्धालु आते हैं. हर रविवार को मेला लगता है. भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने पर प्रसाद का आयोजन होता है. साथ ही चैत्र और शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक हवन यज्ञ का कार्यक्रम होता है. अष्टमी और नवमी को देवी मां के दरबार में काफी भीड़ लगती रहती है.